संदीप सिंह ठाकुर, लोरमी। मुंगेली जिले के लोरमी तहसील अंतर्गत 6 वनग्रामों का राजस्व गांव में विस्थापित कर दिया गया है, लेकिन उन्हें जीवन-यापन करने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। वहीं बाघ संरक्षित करने के लिए NTCA की ओर से जारी गाइडलाइन के अनुसार अचानकमार टाइगर रिजर्व एरिया में रहने वाले बैगाओं को विस्थापित किया गया है।

बता दें मामला विस्थापित गांव सांभरधसान-बांकल-बोकराकछार, जल्दा और बहाऊड़ का सामने आया है. जहां पर 150 से अधिक राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र बैगा आदिवासी परिवार के लोगों को सरकार के द्वारा पुनर्वास नीति के तहत विस्थापित किया गया है, लेकिन सरकार के नुमाइंदे उन्हें मूलभूत सुविधा देना भूल गए।

जहां पर कहने को तो सारी सुविधाएं विभाग के अनुसार दे दी गई है, लेकिन विस्थापित परिवार के लोगों को सरकार के नीति के अनुसार 5-5 एकड़ जमीन सहित पक्का मकान बनाकर दिया गया है. मैदानी इलाके में आबंटित सैकड़ों एकड़ जमीन कृषि करने योग्य समतल नहीं है, आदिवासी परिवार के लोगों को जमीन तो दे दिया गया है, लेकिन अधिकतर लोगों के जमीन पथरीले हैं।

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साथ ही इस नीति के तहत जो पक्का मकान आदिवासी परिवार के लोगों को दिया गया है. इसमें गुणवत्ताहीन मटेरियल का उपयोग कर मकान का निर्माण किया गया है, जिसके चलते कई घरों से बरसात के दिनों में छत की दरार के चलते पानी टपकने की शिकायत है.  कई घरों में ग्रामीण अपनी जान जोखिम में डालते हुए रहनेे को मजबूर हैं।

इसके अलावा जल्दा की महिलाओं ने बताया कि उनके बच्चों को छात्रवृत्ति की सुविधा पिछले कई सालों से नहीं मिल रही है, वही जल्दा गांव के ही ग्रामीणों ने बताया कि यहां विस्थापन के नाम पर केवल विभाग के द्वारा खानापूर्ति कर दी गई है, उन्हें 74 परिवार के लोगों में किसी को भी ट्यूबवेल की सुविधा नहीं दी गई है, जिसके चलते खेती करने में उन्हें कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।

सांथ ही बांकल के विस्थापित बैगा परिवार के लोगों को एकतरफ रोजगार की सुविधा विभाग के तरफ से मुहैया नहीं कराई जा रही है तो दूसरी तरफ मनरेगा योजना के तहत यदि ग्रामीण काम करते हैं तो उन्हें समय पर मजदूरी की राशि का भुगतान नहीं किया जा रहा है। वही इन समस्याओं को लेकर विस्थापित गांव बांकल के ग्रामीणों ने बताया कि सरकार के द्वारा उन्हें घने जंगल से हटाकर आबादी वाले क्षेत्र में बसा तो दिया गया है लेकिन उन्हें जो मूलभूत सुविधाएं मिलनी चाहिए वह नहीं मिल रही है और इसको लेकर विभाग के अधिकारियों को कई दफा इसकी सूचना दी गई है लेकिन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों के द्वारा किसी तरीके से कोई पहल नहीं किया गया है।

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विस्थापित गांव बांकल-बोकराकछार-सांभरधसान में 85 परिवार के लोग रहते हैं जहां 12 ट्यूबवेल खुदवाया गया है जिसमे केवल तीन ही चालू है, वही दो बोर को आज दस साल बीत जाने के बाद भी मोटर नही लगा है, और विभाग मोटर लगाना भूल गई है, अब इनकी खेती बरसात के दिनों में होने वाले बारिश पर निर्भर है, सोलर पैनल सालो से बंद पड़े हुए हैं।

रमेश कुमार बैगा ने मांग करते हुए कहा कि सभी का खेत मरम्मत होना चाहिए पानी का साधन होना चाहिए, इस दौरान उन्होंने आरोप लगाते हुए यह भी कहा कि स्थानीय विधायक धर्मजीत सिंह चुनाव के समय दो तीन बार वोट मांगने के लिए आये थे लेकिन चुनाव जीतने के बाद से विधायक जी भी नदारत हैं. उनकी सुध कोई भी अधिकारी कर्मचारी सहित स्थानीय जनप्रतिनिधि नहीं ले रहे हैं जबकि चुनाव के समय वोट मांगने के लिए सभी पार्टी के जनप्रतिनिधि गांव पहुंचते हैं।

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आपको बता दें सरकार ठेकेदारों के माध्यम से वन विभाग की मॉनिटरिंग में विस्थापन के नाम से करोड़ों रुपए खर्च की, लेकिन विस्थापित परिवार के लोग आज भी मूलभूत सुविधा के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं इनकी सुध लेने वाला कोई नही है।
मिली जानकारी के मुताबिक विस्थापित 6 गांवों के पुनर्वास स्थल के विकास के नाम पर 24 करोड़ 90 लाख रुपए खर्च तो कर दिए गए, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है।

इस संबंध में जिला कलेक्टर अजित वसंत ने कहा कि मनरेगा मजदूरी के संबंध में जिला पंचायत और वनमंडलाधिकारी से जानकारी ली जायेगी, सांथ ही बिजली सहित अन्य सुविधाओं के लिए विभागीय अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि वो उन गांवों का निरीक्षण कर रिपोर्ट सौपे. जो कमियां पाई जाएंगी उसको दुरुस्त किया जाएगा।

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