लक्ष्मीकांत बंसोड़, बालोद। कहते हैं न भूख के दर्द का एहसास उसी को होता है जो कभी भूखा रहा हो. भूख से आज न जाने कितने ही लोग अपनी जान गंवा देते हैं. ये पेट की भूख ही है जो एक लंगड़े को उसकी बेबसी और लाचारी ने कांटों पर चलना सीखा दिया.

कहानी है डौंडी विकासखण्ड के ग्राम चिखली के रहने वाले जितेंद्र यादव की. एक पैर से 60% दिव्यांग जितेंद्र पर माता-पिता की जिम्मेदारीहै. कहने को तो तीन भाई भी हैं, लेकिन परिवार की हालत को देखते हुए दो भाई अपनी पत्नियों के साख गुजर-बसर करने के लिए घर छोड़ चुके हैं. वहीं छोटा भाई मजदूरी करता है. पैरों से विकलांग होने की वजह से जितेंद्र ने पेट पालने के लिए बकरियां चरानी शुरू कर दी है.

विडम्बना यह है कि उसके पास चलने के लिए कोई साधन नहीं है. लड़खड़ाते हुए लकड़ियों के सहारे तो कभी बिना किसी के सहारे अपना काम करता है. दिव्यांग ने बताया कि वो सरकारी मदद के लिए कई दफा पंचायत के चक्कर लगा चुका है, लेकिन किसी ने एक नहीं सुनी. न ही सरकारी अमला मुझसे मिलने आया, न कोई मदद दी.

महिला बाल विकास एवं समाज कल्याण के मन्त्री अनिला भेड़िया के विधानसभा क्षेत्र में रहने वाले जितेंद्र की जानकारी मन्त्री के प्रतिनिधि पीयूष सोनी को हुई तो उन्होंने असवन्ति को लेकर की गई लल्लूराम डॉट कॉम की पहल की सराहना करते हुए जितेंद्र को भी सरकार की गाइडलाइन के तहत सुविधाएं मुहैया कराने की बात कही. बालोद कलेक्टर जन्मजेय मोहबे ने बताया कि जितेंद्र को विकलांगता के परसेंट के हिसाब से ट्राइसाइकिल दी जाएगी, और भी किसी प्रकार की मदद की आवश्यकता हो तो वह भी की जायेगी.