रांची। 2021 में पेरिस में विश्प कप तीरंदाजी में एक ही दिन में तीन गोल्ड पर निशाना साधने वाली रांची की दीपिका कुमारी को कौन नहीं जानता? इसी प्रतियोगिता में गोल्ड जीतने वाली झारखंड के टाटा आर्चरी एकेडमी की अंकिता और कोमोलिका भी उन तीरंदाजों में शुमार हैं, जिन्होंने पूरे देश को गर्व का मौका दिया है।
जकार्ता (इंडोनेशिया) में आयोजित 18वें एशियन गेम्स में भारत की झोली में चांदी डालने वाली झारखंड के छोटे से शहर वेस्ट बोकारो की मधुमिता उन खेल सितारों में एक हैं, जिनसे देश ने आगे भी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में बड़ी उम्मीदें बांध रखी हैं। लेकिन, जरा ठहरिए। यह फेहरिश्त यहीं खत्म होनेवाली नहीं है। तीर-धनुष से जुड़ी झारखंड की पहचान दुनिया के फलक तक पहुंचाने और इसके जरिए खुद की जिंदगी को ऊंचाई देने के ख्वाब यहां के सैकड़ों तीरदांजों की आंखों में सोते-जागते पल रहे हैं।
राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदकों का अंबार लगा देनेवाले तीरंदाजों की एक बड़ी फौज झारखंड में जगह-जगह खुले ट्रेनिंग सेंटरों में तैयार हो रही है। खास बात यह कि इनमें से ज्यादातर तीरंदाज उन घर-परिवारों से निकले हैं, जहां दो वक्त की रोटी भी बड़ी जद्दोजहद के बाद जुट पाती है। मसलन, दीप्ति कुमारी की ही कहानी सुनिए। उसने इसी महीने जमशेदपुर में आयोजित 40वीं राष्ट्रीय तीरंदाजी प्रतियोगिता में गोल्ड जीता है।
रांची के जोन्हा गांव की रहनेवाली इस लड़की के पिता केईनाथ महतो एक व्यक्ति के यहां ड्राइवर की नौकरी करते हैं। पगार मुश्किल से छह से सात हजार। साल 2013 में दीप्ति सातवीं कक्षा में पढ़ती थी। तीरंदाजी का शौक चढ़ा तो पिता को पड़ोसियों से उधार लेकर उसके लिए बांस का तीर-धनुष खरीदना पड़ा। तब का दिन है और आज का दिन, उसने राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में तकरीबन दर्जन से भी ज्यादा पदक जीतकर अपने पिता और परिवार वालों को खुशी और गर्व के कई मौके दिये हैं। इन्हीं उपलब्धियों की बदौलत 2019 में इंडो तिब्बत बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी) में उसे नौकरी मिल गयी। पिता केईनाथ महतो कहते हैं, ‘मुझे तो लोग अब राह चलते रोककर पूछते हैं, आप तो दीप्ति के बाबूजी हैं ना!’
धनबाद के दामोदरपुर की रहनेवाली तीरंदाज ममता टुडू की कहानी भी ऐसी ही रही। टाटा फीडर सेंटर से तीरंदाजी सीखनेवाली ममता ने वर्ष 2010 और 2011 में अंडर 16 वर्ग में तीरंदाजी की नेशनल चैंपियन रहीं, लेकिन परिवार की कमजोर माली हालत के चलते पिछले वर्ष कोरोना लॉकडाउन के दौरान उसे सड़कों पर चना व झालमुड़ी बेचने को मजबूर होना पड़ा। मीडिया में उसकी बदहाली की खबरें चलीं तो सार्वजनिक क्षेत्र की स्टील कंपनी सेल ने उसे अपने आर्चरी ट्रेनिंग सेंटर में नौकरी दी।
पिछले हफ्ते गोवा में आयोजित चौथे यूथ गेम चैंपियनशिप में रांची के शौर्य सिद्धार्थ ने 14 वर्ष से कम आयु वर्ग 50 मीटर दूरी की तीरंदाजी कंपाउंड प्रतिस्पर्धा में गोल्ड मेडल जीता तो उन्हें ट्रेनिंग देने वाले तीरंदाज अनुज कुमार गुप्ता ने सीनियर कंपाउंड बॉयज कैटेगरी में 50 मीटर की दूरी वाली प्रतिस्पर्धा में स्वर्ण पदक हासिल किया है। शौर्य झारखंड के पूर्व डिप्टी सीएम और आजसू पार्टी के सुप्रीमो सुदेश महतो के पुत्र हैं, जबकि अनुज रांची स्थित प्रेस क्लब में चलने वाले आर्चरी ट्रेनिंग सेंटर में बच्चों को कोचिंग देने के अलावा खुद भी प्रैक्टिस करते हैं। सुदेश महतो सिल्ली में चलनेवाले तीरंदाजी ट्रेनिंग सेंटर को व्यक्तिगत तौर पर भरपूर मदद करते हैं। वह कहते हैं- “हमारे यहां के बच्चों ने हमारे सपनों को ऊंची उड़ान दी है।”
वरिष्ठ खेल पत्रकार अजय कुकरेती कहते हैं “अब देश-विदेश में कहीं भी तीरंदाजी की प्रतियोगिता होती है तो ऐसा शायद ही हो कि वहां झारखंड का कोई न कोई प्रतिभागी शामिल न हो। ऐसी प्रतियोगिताओं में झारखंड के तीरंदाज लड़के-लड़कियों की सफलताओं की दर अत्यंत उत्साहजनक है। जमशेदपुर, रांची, बोकारो, चाईबासा, दुमका, सरायकेला सहित झारखंड के अन्य जिलों में कुल मिलाकर दो दर्जन से भी ज्यादा तीरंदाजी प्रशिक्षण केंद्र चल रहे हैं, जहां लगभग सात से आठ सौ तीरंदाज रोज घंटों निशाना साधते हैं। इनमें से नौ ट्रेनिंग सेंटर तो झारखंड सरकार की मदद से चल रहे हैं। इनमें कुछ आवासीय सेंटर हैं और कुछ डे-बोडिर्ंग।”
रांची के सिल्ली में दो ट्रेनिंग सेंटर है। एक आवासीय सेंटर है और दूसरा है बिरसा मुंडा आर्चरी एकेडमी। एशियन गेम्स में सिल्वर जीतने वाली मधुमिता इसी एकेडमी से निकली हैं। सबसे प्रमुख और मशहूर तीरंदाजी ट्रेनिंग सेंटर है जमशेदपुर स्थित टाटा आर्चरी एकेडमी, जिसने दीपिका कुमारी, कोमोलिका, अतनू भगत जैसे नामवर तीरंदाजों को पैदा किया है। चाईबासा में सेल और बोकारो में इलेक्ट्रो स्टील की मदद से तीरंदाजी सेंटर संचालित होता है। रांची खेलगांव में झारखंड सरकार की ओर से तीरंदाजी का सेंटर फॉर एक्सीलेंस चलाया जाता है। इसके अलावा जोन्हा, सरायकेला, दुमका में चलनेवाले आर्चरी ट्रेनिंग सेंटर में अहले सुबह से लेकर शाम तक सैकड़ों तीरंदाजों को लक्ष्य पर निशाना लगाते देखा जा सकता है। 400 से भी ज्यादा तीरंदाज ऐसे हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में देश और राज्य का नाम रोशन किया है।
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