लेखक- डॉ हिमांशु द्विवेदी,

प्रधान संपादक, हरिभूमि

 

सनावद से लौटकर डा. हिमांशु द्विवेदी

स्थान पूर्वी निमाड़ जिले के पुन्हांसा कस्बे की मुख्य सड़क से तकरीबन 18 किलोमीटर भीतर की ओर विधानसभा क्षेत्र मांधाता का गांव पामाखेड़ी का मुहाना। मुख्य गांव अभी भी दो किलोमीटर दूरी पर है। रात के सात बजने को हैं। सूरज खो चुका है और चांद का कुछ अता पता नहीं है। आसपास में मौजूद सागौन के पेड़ों से गुजरती हवा की सांय-सांय की आवाज और तापमान का गिरता पारा माहौल को और सर्द किया जाता है। ऐसे माहौल में जब लोग घर में घुसने की बेसब्री दिखाते हैं, ऐसे में निर्माणाधीन सड़क पर गाड़ियों और लोगों की आमद बढ़ती ही जाती है। कारण सिर्फ एक है। दशहरे से सपत्नीक नर्मदा परिक्रमा पर निकले मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह अपने साथियों के साथ कुछ ही देर में यहां से गुजरने वाले हैं। दरअसल आज उनका रात्रि विश्राम पामाखेड़ी में ही प्रस्तावित है।

यात्रा के इंतजार में भीड़ जुटती जा रही है। चाय की गुमटी पर बिक्री भी इसी अनुपात में बढ़ रही है। काफी संख्या कांग्रेस नेताओं और उनके कार्यकर्ताओं की है, लेकिन स्थानीय ग्रामीण भी बढ़ी संख्या में मौजूद हैं। इनमें महिलाएं और बच्चे भी काफी हैं। मोड़ पर एक निर्माणाधीन हनुमान जी का मंदिर है, जिस पर अभी प्लास्टर भी नहीं हुआ है। मंदिर के पुजारी स्थानीय लोगों की मदद से दरी बिछवा देते हैं। थोड़ी देर में आसपास के घरों से चार-छह प्लास्टिक की कुर्सियां भी जुटा ली गई हैं।

यात्रा के आने में समय है, लिहाजा लोग समय यात्रा पर चर्चा में ही काट रहे हैं। बातचीत के केंद्र में दिग्विजय सिंह का संकल्प और उसमें सक्रीय सहयोग दे रही उनकी पत्नी अमृता सिंह हैं। लोग अचंभित हैं कि दिग्गी राजा के इस उम्र में यात्रा संकल्प से और उससे भी ज्यादा चकित हैं उनके ‘मौन’ से। गत साढ़े तीन माह से दिग्विजय सिंह ने कोई राजनीतिक वक्तव्य नहीं दिया है और न बारह सौ किलोमीटर की अब तक तय यात्रा में यातायात के किसी साधन का ही प्रयोग किया है। जगह-जगह पर लगे होर्डिंग में दिग्विजय सिंह के साथ उनकी पत्नी अमृता सिंह की भी फोटो बराबरी में ही लगी है।

दिग्विजय भले ही स्वयं राजनीतिक चर्चा से तौबा किए हुए हैं, लेकिन चर्चा सिर्फ और सिर्फ यात्रा से प्रदेश की राजनीति पर पड़ने वाले प्रभाव पर है। लोगों का मानना है कि इस यात्रा के माध्यम से दिग्गी राजा जहां एक बार फिर अपने आपको जनता से जोड़ पाने में सफल हो पा रहे हैं, वही अपनी हिंदू विरोधी छवि को भी पूरी तरह से खत्म कर दे रहे हैं। एक पूर्व विधायक तो उन्हें भविष्य का सबसे बड़ा हिंदू नेता भी करार देते हैं।

यात्रा के दौरान अतिरिक्त सक्रीय ऐसे कांग्रेसियों की संख्या बढ़े पैमाने पर है जो इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव के अखाड़े में ताल ठोकने का इरादा रखते हैं। उन्हें उम्मीद है कि उनकी यह सक्रीयता दिग्विजय सिंह के समर्थन में टिकट दिलाने में मददगार रहेगी और ‘नर्मदा यात्रा’ कांग्रेस के वोट भी बढ़ा देगी। पामाखेड़ी में भी क्षेत्र से टिकट के दावेदार पूर्व विधायक रामचरण और गत चुनाव में प्रत्याशी नारायण पटेल भी मौजूद हैं।

रात अब जब गहराने लगी थी कि पास के पेड़ों के बीच से टिमटिमाहट दिखाई देने लगी। मानो तमाम जुगनू नैराश्य के अंधेरे से उम्मीद की लौ जगाने की कोशिश में हों। हमारे आसपास के लोगों की हलचल बढ़ जाती है। पुलिस कर्मी भी हिलने ढुलने लगते हैं। पूछने पर पता चला कि वो टिमटिमाहट जुगनुओं की नहीं, तमाम टार्च की रोशनी है जो परिक्रमावासी हाथ में थामे चले आ रहे हैं। कुछ लोग उत्साह में या दिग्विजय सिंह को अपना चेहरा सबसे पहले दिखाने की होड़ में पेड़ों के बीच में दौड़ लगा वहां पहुंचने की कोशिश करते हैं, जहां से यात्रा आ रही है। कुछ ही देर में यात्रा मुख्य सड़क पर थी। सबसे आगे एक कार्यकर्ता का हाथ थामे पूर्व सांसद रामेश्वर नीखरा और अमृता सिंह थी। साथ ही एक शख्स धर्म की ध्वजा लिए हुए चल रहा था। तकरीबन ढाई सौ श्रद्वालु इस नर्मदा परिक्रमा का हिस्सा बन कदमताल करते नजर आ रहे थे।

सुबह से अब तक तय हो चुकी 8 किलोमीटर की पथरीली पदयात्रा की थकान भी कई के चेहरे पर साफ नजर आ रही थी। इस भीड़ के बीच में ही सिर पर सफेद पट्टा बांधे एक चमकता चेहरा दिखाई दिया । ‘यह चेहरा था’ दिग्विजय सिंह का।

हाथ में पीतल की मूठ वाली छड़ी पकड़े दिग्विजय सिंह अपने सिर पर सफेद गमछा बांधे अपने चिर परिचित अंदाज में हंसते-हंसाते हुए भीड़ में घिरे चले आ रहे थे। लोगों में उन्हें माला पहनाने और पैर छूने की होड़ लग जाती है। झुंझलाने की जगह वह लोगों को धैर्य से समझाने की कोशिश करते हैं। इस बीच एक साथी कान में कुछ कहता हुआ फोन पकड़ा देता है। वह खड़े-खड़े तीन चार मिनिट तक ही फोन पर बात करते हैं। अब यात्रा हनुमान मंदिर के सामने हैं। पुजारी मंदिर के अंदर आरती की तैयारी में जुट जाते हैं और दिग्विजय लोगों से मुलाकात करने में।

इंदौर-भोपाल से भी काफी लोग मिलने के लिए आए हैं। अधिकांश लोग यही से मिलकर लौट जाने वाले हैं।

यात्रा की खास बात यह है कि दिग्विजय न तो किसी को आने का ही न्यौता दे रहे हैं, और न किसी को रुकने का आग्रह ही करते हैं। जो आने की इच्छा जताता है, उसके लिए शब्द होता है ‘स्वागत’ है। और जब कोई जाने के लिए बोलता है तो दोनों हाथ जोड़कर बोले हैं ‘आने के लिए धन्यवाद’।

आरती के बाद सिंह दंपत्ति पुजारी का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेते हैं। इस दौरान तमाम बच्चे माला लिए इकट्ठे हो जाते हैं। कंधे पर लटके बैग को खोलकर वह दस-दस रुपए के कुछ नोट निकालते हैं और माला देने वाले हर बच्चे के हाथ में वह पैसे थमाते जाते हैं।

इसी दौरान वह हमसे भी रूबरू होते हैं। राजनैतिक बातचीत से वह पहले ही इंकार कर चुके हैं तो उस संकल्प को तुड़वाने का कोई प्रयास हम भी नहीं करते। संक्षिप्त बातचीत में वह अपनी अब तक की यात्रा को नर्मदा मैया की कृपा ही बताते हैं। उम्मीद जताते हें कि 25 मार्च तक वह परिक्रमा पूरी कर लेंगे। बातचीत के दौरान उनके चेहरे से टपकता तेज अहसास ही नहीं होने देता कि आप किसी राजनीतिज्ञ से बात कर रहे हैं। जिस यात्रा के कारण सूर्य की तपिश से चेहरा काला पड़ जाना चाहिए था, उसकी जगह उनका रंग और अधिक निखर गया है। अहसास होता है कि मानो आप किसी तपस्वी के सानिध्य में हैं। वैसे यह अनुभव गलत भी नहीं क्योंकि अभी तो राजा दिग्विजय सिंह वाकई साधक बन साधना ही कर रहे हैं। भले ही बाकी परिदृश्य इसके सियासी मायने निकालने में व्यस्त है।

लोग अचंभित हैं कि यात्रा के दौरान घटित तमाम बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ घटनाक्रमों से दिग्विजय सिंह जैसा मंझा हुआ राजनीतिज्ञ अपने आपको दूर कैसे रखे हुए हैं। यहां तक कि सोनिया गांधी के अध्यक्ष पद छोड़ने से लेकर राहुल गांधी की ताजपोशी तक पर उन्होंने प्रतिक्रिया पूछे जाने पर उन्होंने एक ही जवाब दिया ‘नर्मदे हर’। उनका यह संकल्प यात्रा के प्रति जनता में समर्थन और सम्मान दोनों बढ़ा रहा है। यहां तक कि तमाम मीडिया के लोग भी अब उनसे राजनीतिक बात करने से परहेज कर रहे हैं क्योंकि हर सवाल का एक ही जवाब है ‘नर्मदे हर’।