देश के जम्मों राज म हमर बड़का तिहार देवारी(दीपावली) बड़ धूमधाम से मनाए जाथे। दुनिया के ओना-कोना म रहवइया हमर देश के मनखे मन घलो उंहा देवारी मनाथें, फेर हमर राज छत्तीसगढ़ म देवारी तिवार के अलग बिषेशता हे। काबर हमर राज म देवारी तिहार के माध्यम ले मनखे मन प्रकृति, पशुधन अउ अनदाई के पूजा करके ओखर महात्तम बताथें। लोक कला, लोक संस्कृति अउ लोक परंपरा संरक्षण अउ संवर्धन करे के संदेश दे जाथे। महात्मा गांधी के सोच सुराजी गांव व्यवस्था ल बनाये रखे बर ये तिहार बड़ भूमिका निभाथे। जनमानस म जम्मो झन के मुंह ले इही बात सुने बर मिलथे के शहर ले ज्यादा गांव म देवारी तिहार के आनंद हे.
सनातन मान्यता
वइसे तो सामान्यतः ये मान्यता हे कि देवारी तिवार पांच दिन के होथे, जेन मर धनतेरस, नरक चाउदस, सुरहूत्ती(लक्ष्मी-पूजा), गोबरधन पूजा अउ भाईदूज। पौराणिक अउ सनातनी कथा के अनुसार माने जाथे के धन अउ आरोग्य के देवता धन्वंतरि के जनम कातिक अंधियारी पाख के तेरस के दिन समुद्र मंथन ले हो रिहिस। धनतेरस के दिन धन्वंतरि अउ माता लक्ष्मी के पूजा के करे जाथे।
दूसरइया दिन नरक चउदस होथे। अइसे माने जाथे कि कातिक महिना के अंधियारी पाख के चउदस के दिन भगवान श्रीकृष्ण ह नरकासुर के वध करे रिहिस, ये दिन बिसेस पूजा अउ बेरा उगे के पहिली नहाय के महात्तम हे। माने जाथे के ये दिन के पूजा अउ नहाय ले मनखे के अकाल मरना ह टल जथे.
फेर तीसरइया दिन आथे सुरहूत्ती(लक्ष्मी-पूजा), अइसे माने जाते थे के इही दिन भगवान श्रीराम ह रावण ल मार के बनवास ले अयोध्या अपन घर आइस, ते पाय के उंहा के रहवासी मन दीया जलाईन अउ देवारी मनाईन। ये दिन भगवान गणेश, मां सरस्वती अउ माता लक्ष्मी के घलो पूजा करे जाथे। चउथईया दिन आथे गोबरधन पूजा। मान्यता अनुसार इही दिन त्रेतायुग म भगवान श्रीकृष्ण बिरिजवासी मन ल मूसलाधार बरसा ले बचाय के खातिर गोबरधन पर्वत ल अपन छिनी अंगठी म उठाके बिरिजवासी मन के रक्षा करे रिहिस, तेन दिन ले गोबरधन ल भगवान श्रीकृष्ण के रूप म पूजथें। फेर आखिरी दिन भाईदूज होथे। येखर मान्यता हे के यमुना जी के बिहाव के बाद बहिनी के बुलउवा म धर्मराज यम ह कातिक महिना के अंजोरी पाख के दूज के दिन यमुना जी घर गिन, त यमुना ह यम के खूब सत्कार करिन, तब ले ये तिथि म भाई के सत्कार करके परंपरा हे.
सुरहूत्ती के दीया
हमर राज म देवारी म कुछ अउ उछाह होथे। हमर राज म गोबरधन पूजा ल देवारी कहे जाथे। उही दिन हमर राज के मनखे मन बर बिसेस होथे। गोबरधन पूजा के पहिली दिन सुरहूत्ती होथे, जेन दिन गांव म कुछ अलगे परंपरा हे। वइसे तिहार के तइयारी पंदरा-महिना दिन पहिली शुरू हो जथे। जेखर घर माटी के हे वो हर छाब-मूंद के घर ल सुघराथे, फेर लिपथे-बाहरथे। जेखर घर पक्का हे तेन साफ-सफाई करके लीपथे-बहारथे। सुरहूत्ती के दिन अपन-अपन पुरखा के मठ यानि समाधि के जगह ल घलो छाब-मूंद के लिपथे बाहरथें।
उही दिन गांव के बईगा गांव के देबी-देवता के स्थान ल साफ करथे। जेन म तीनसला देव, सांड़-साहड़ीन, बरमबावा, ममा-भांचा, ठाकुरदेव, बूढ़ा महादेव, बूढ़ी माता शीतला, परेतिन दाई समेत गांव के जम्मों देबी-देवता के स्थान ल साफ-सफाई करथे। बईगा उहां सफेद, करिया अउ लाल रंग के ध्वजा लगाथे। फेर बईगा हूम देथे अउ दिया जलाथे। बईगा घलो गांव के आने मंदिर के पुरोहित कस ग्राम देबी-देवता के पूजा करइया पुरोहित होथे, जेन ह गांव के परंपरा अनुसार हूंम देथे अउ पूजा करथे.
सुरहूत्ती के दिन गांव के किसानमन अपन कृषि औजार, गाड़ी अउ घर म रखे लकड़ी अउ लोहा के सामान ल धो-मांज के रखथे। सुरहूत्ती के बिहनिया ले मझनिया तक एक जुउर सब झन साफ-सफाई म दिन बिताथे, फेर दूसरइया जूअर अपन-अपन पुरखा के डीही-डोंगर(पैतृक निवास), खेत-कोठार अउ पुरखा के समाधि, कृषि औजार, मशीन, गाड़ी म दीया जलाथें। गांव के देबी-देवता के जम्मों स्थान के संगे संग सब अपन-अपन खेत म घलो दीया जलाथें। गांव म अक्सर ये बात सुने बर मिलथे के तोर डीही म दीया बरईया नई हे। डीही म दीया बारे बर मनखे मन परदेश ले गिरत-अपटत अपन-अपन गांव अउ घर आथें। पुरखा के सुरता करके उंखर मठ म दीया नई जलाय त गांव म बड़ अपसगुन मानथें। येखर सेती हमर राज म सुरहत्ती दीया जलाये के बड़ महात्तम हे। कोनो कोनो गांव म दुर्गा दाई कस लक्ष्मी दाई के मूर्ति घलो रखथें। सुरहूत्ती के महात्तम अतकेज आय.
गोबरधन पूजा, कासन अउ अंखरा
सुरहूत्ती के दूसइया दिन गोबरधन पूजा होथे। ये दिन हमर गांव म राउत, ठेठवार, यादव अउ गांव के चरवाहा के बिसेस महात्तम रहिथे। हमर राज म किसान के प्रमुख साथी उंखर पशुधन आय। ते पाय के पशुधन के बड़ ध्यान रखे जाथे। साल म एक बेर उंखर बिसेस पूजा घलो होथे। गोबरधन पूजा के दिन राउत मन गरूवा नई चराय। वो दिन किसान मन अपन-अपन गरुवा ल खुदे चराथें। फेर धोके जतन करथें.
गोबरधन पूजा के बिहिनिया रउतईन मन किसान मन के घर-घर जाके जेन धान के कोठी(भंडार) रथे ओमा हांथा(दीवार पर फूल) देथें। हांथा हर रंगोली कस फूल होथे, जेन म चउंक जइसे डिजाइन होथे। हांथा म मंहूर, टेहर्रा, सेमी पत्ता अउ भेंगरा के पत्ता के रंग के उपयोग करे जाथे। किसान मन रउतइन मन ल सेर-सीधा(रूपए-अनाज) अउ कपड़ा देके बिदा करथें। मंझनिया राउत मन आके किसान मन के घर म गाय ल सोहई बांधथें.
सोहई बनाये बर राउत मन बड़ मेहनत करथें। काबर सोहई बनाय बर परसा(पलाश) के जड़ ल 15 दिन पहिली काट के लाथें। फेर आगी(आग) म भुजंथे।ओखर बाद परसा के बांख(रेशा) निकालथे। फेर सोहई तैयार करे जाथे। सोहई म डोरी (रस्सी) केकसी बनखर (खरपतवार की प्रजाति) के बनाए जाथे। जेन ल 15 दिन पहिली पानी म सरो (सड़ाकर) के बनाए जाथे। येखर अलावा मंजूर पंखा (मोर पंख) के घलो सोहई बनाथे। जेन म टेलर के इहां के नवा कपड़ा के कतरन लाके सजाय जाथे। सोहई म महूर अउ टेहर्रा रंग घलो लगाथें। सोहई एक प्रकार ले गाय के गहना होथे। मंझनिया किसान के घर जाके राउत गाय ल सोहई पहिनाथे अउ दोहा पारथे। फेर कोठी के भिथिया(दीवार) म राउतइन के बनाए हांथा म गोबर अउ धान ल मिलाके थापा मारथे अउ आशीष देथे। येखर बाद किसान मन राउत मन ल रुपए, अनाज अउ कपड़ा देके मान करथे। कोनो-कोनो किसान मन अकादशी के दिन अउ कोनो कोनो पुन्नी के दिन सोहई बंधवाथे।
किसान घर ले आके मंझनिया के बेरा राउत मन पहिली अपन-अपन घर के अपन इष्ट देवता गोरइंया ल मनाथें। फेर अपन-अपन घर के कोठा अउ अंगना म गोबरधन बनाके पूजा करथे। गोबरधन गोबर के आकार के पूतरा होथे, जेन म मेमरी, सिलयारी, धान के संगे संग रिकम-रिकम के फूल लगाके सजाये जाथे। बीच म कलश रथे, जेन ल राउत घर के दाई-माई मन बारथें। हूम-धूप देके जम्मों परिवार के मनखे मन पूजा करथें। राउत मन कस जम्मों किसान मन अपन-अपन घर म गोबरधन बनाथें। फेर गाय-गरुवा ल खिचड़ी(घर का बना भोजन) खवाथें। जेन म सोंहारी, बरा, भजिया, पूजा के दिन के बिसेस कड़ही, दार-भात मिलाके खिचरी बनाथें। ये दिन गरूवा ल कोनो जूठा नई देवय। गरूवा ल खिचड़ी खवाके भोजन-परसाद पाथें। खिचरी खवाके गांव के जम्मों गरूवा ल एक जगह ठोंकथें(इकट्ठा)। जिहां गांवभर के एक ठन मुख्य गोबरधन बने रहिथे.
राउत मन अपन गोरइंया ल जगाके किसान मन ला जोहारे(सम्मान के साथ बुलाने) ल जाथें। राउत मन नाचत-गावत बाजा-गाजा के संग किसान के घर जाथें। फेर किसान मन राउत ल बुलाय बर उंखर घर आथें। ये बीच राउत मन अंखरा (डंडा से करतब) खेलथें। जब किसान राउत घर बुलाय बर जाथे त राउत कासन जागथें। मान्यता हे कासन के बेरा राउत के देवता ह राउत ल सताथे, त किसान मन ओखर मान करके नरियर, हूंम देके वोला मनाथें। फिर गांव के एक स्थान म बने गोबरधन ल गांवभर के गाय-गरूआ मन खूंदवाथें। फेर गांवभर एक-दूसर के माथा गोबरधन के टीका लगाथें। कोनो-कोनों गोबरधन घलो बदथें। मतलब एक-दूसर ल मित्र बनाथें अउ एक-दूसर ल गोबरधन कहिके जिनगीभर एक-दूसर के सुख-दुख म काम आथें। ये दौरान राउत मन खूब दोहा पारथें, जेन वीर रस, श्रृंगार रस अउ ज्ञानवर्धक होथे.
बिपत्ति दूर करथे गौरा-गौरी
गांव म गौरा गौरी के स्थापना आदिवासी मन ज्यादा करथे। भले ओमा बरछो जात (सभी जाति) के मनखे मन सहयोग करथे। सुरहूत्ती अउ गोबरधन पूजा के रात सबले पहिली फूल कुचरथें। गौरा चौरा के बीच म एक ठन गड्ढा होथे, ओम 7 जात के फूल अउ एक ठन कूकरी अंडा ल दाई-माई मन डारथे। फेर दाई-माई मन पूजा करके हूंम देथे। फेर 7 झन मनखे उल्टा मूसर म 6 बार छुवाथे अउ 7वइया बेरा म कुचरथें। फेर दिया जलाके गौरा माटी बर जाथें। फेर माटी कोड़े के बेरा म अगरबत्ती जला के, हूंम देके 7 मनखे 7 बार छुवा के माटी कोड़थे। माटी ल नवा टुकना, साफ कांसा के बर्तन म नवा धोती म तोप(ढंक) के लाथे। गौरा के माटी आगू अउ गौरी के माटी पाछू होथे। दोनों के माटी म ल मिलाय नहीं। दोनों के मूर्ति ल एक जगह नई बनाय। कहूं एक मनखे दोनों मूर्ति ल बनाही त पहिली गौरा के मूर्ति ल बनाही ओखर बार हाथ ल बढ़िया धो के दूसर स्थान पहुंच के गौरी के मूर्ति ल बनाही। ओखर बाद पिड़हा में गौरा-गौरी के मूर्ति ल रखके ओमा अंडी तेल चुपरे जाथे। फेर ओमा सनपना (रेपर) ल चिपकाथें। ये बूता रातभर चलही तेखर बाद बिहिनिया चार बजे जब गांव के सुआ नचइया मन पहुंचही त गौरा-गौरी ल परघांही। ओखर बाद ओला गौरा चैंरा म स्थापित करहीं.
पूजा-पाठ हूम देके बिहनिया दस-गियारा बजे ओल गांव ल घूमा के नरियर फोर के ठंडा (विसर्जन) करहीं। ये बीच म गांव के दाई-दीदी अउ बईगा मन गौरा गीत के माध्यम ले गौरा-गौरी ल जगाथें, सूताथें, तेल लगाथें, परघाथें अउ बिदाई करथें। गांव के मनखे मन गौरा चढ़ते। मनखे ल जेन-जेन देवता आथे, वोला ओइसने मनाय जाथे। कोना देवता नरियर म मानथे, कोनो देवता ल सांट(कुश से बनी रस्सी) मार के मनाए जाथे, त कोनो देवता के हाथ म बूड़ा(जलती हुई बाती से गरम तिल गिरना) चुहवाथें। गौरा-गौरी ल ठंडा(विसर्जन) करथें त माटी के मूर्ति ल ठंडा करथें पर सनपना ल ठंडा नई करैं.
गौरा-गौरी ठंडा करके नरियर फोर के खुरहोरी के परसाद देथें। परसाद संग गौरा गौरी के मूर्ति म लगे सनपना ल घलो टुकड़ा-टुकड़ा बांटथें। अइसे माने जाथे के गौरा-गौरी म लगे सनपना ह सिद्ध हो जाए रहिथे तेखर पाए के कोनो ओला लईका मनके ताबीज म डार देथें, कोनो परवा (छत या छप्पर) म खोंच देथें नई तो कोना ओला संदूक म धर देथें। माने जाथे के एखर ले घर-परिवार म कोनो बिपत्ति नई आय.
मातर के उछाह
कोनो-कोना गांव म गोबरधन पूजा के बाद मातर घलो होथे। मातर ह राउत मन के तिहार आय, जेन म गेरवा (मवेशी बांधते की रस्सी), छांद(मवेशी के दोनों पैर को बांधने की रस्सी), दउंरी (मिसाई करते समय मवेशी को एक कतार में बांधते की रस्सी), खूंटा(मवेशी बांधते का लकड़ी) अउ खोंड़हर (गोठान में गड़ाए गए नक्कासीदार लकड़ी, जो देवता का प्रतीक है) के पूजा करे जाथे।
बिहिनिया दईहान (गोठान) इंखर पूजा करे जाथे। जेन म गेरवा खैरी कुकरी(दो रंगों वाली मुर्गी), छांद म कुकरा(मुर्गा), दउंरी म म करिया कुकरा(काला मुर्गा), खूंटा म खैरी कुकरा( लाल और काला दो रंगों वाला मुर्गा) अउ खोंड़हर म करिया बोकरा (काला बकरा) के बलि दे जाथे। ये सब बूता बिहिनिया नौ-दस बजे तक होथे। बिहिनया दईहान म डांड़ खेलाए जाथे, जेन म एक लाठी म मेमरी के डारा अउ एक ठन कुकरी ल बांध के गाय के सिंग म सात बार छुआना हे अउ गाय के सिंग म ओ कुकरी ल मारना हे। लउठी ल घुमावत-घुमावत सिंग म छुआना हे। ये म कुकरी मर जथे। फेर येखर बाद एक गाय के पीला बछूरा(छोटा बछड़ा) ला उठाके, ओखर गोड़(पैर) ल धरके घूमान हे, जेन म बछूरी के महतारी गाय ह राउत ल दौंड़ाना चाहिए, ये जरूरी हे। मंझनिया तक ये बूता अउ नेंग(रस्म) चलथे फेर राउत मन भोजन प्रसाद पाके गांव म नाचे-कूदे पर निकलथे। ये बीच राउत मन आल्हा-उदल के वीर-गाथा के और छत्तीसढ़ के परंपरिक लोकगीत गाथें। हाना अउ दोहा पारथे। संग मर गुदूम बाजा, दफड़ा, मोहरी, झांझ मंजीरा के संग नचईया कुदईया घलो रहिथें। राउत मन मातर के उछाह मन नाचथें-गाथें। कहीं मातर म मड़ई-मेला अउ रात म संस्कृतिक कार्यक्रम घलो होथे.
हमर लोक संस्कृति
हमर राज के बड़ समृद्विशाली परंपरा ह नंदावत रिहिस, जेन ल छत्तीसगढ़ के तीसरइया मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ह पुनर्जीवित कर दिस। काबर के उंखर राज म छत्तीसगढ़ के तीज-तिहार ल प्रशासन ह घलो महात्तम दे लगिस। गोबरधन पूजा करे बर सरकार के मुखिया के संगे संग उंखर मंत्री अउ विधायक घलों आगू आय लगिन। मुखिया अपन आवास म ये जम्मो तिहार ल मनावत हे। वो हर देवारी म खुदे सांट लेवत हे। उंखर राज कलेक्टर घलो राउत नाचा नाचत हे अउ एसपी घलो जसगीत गावत हे.
हमर राज के तीज तिहार के वैज्ञानिक कारण के संगे-संगे पर्यावरण संरक्षण ले जुड़े हे। वर्तमान राज सरकार ह ये दिशा म बरोबर ध्यान देवत हे। येखर बर मुखिया ल प्रदेश के जनता के ओर ले साधुवाद हे। संगी हो सरकार के संगे संग हमन ल घलो अपन लोक संस्कृति अउ परंपरा ल बचाना हे, ये जिम्मेदारी केवल सरकार के नो है, ये जिम्मेदारी हमरो आय, हमन ल सरकार के भरोसा नई बईठना हे, हमन ल अपन भूमिका निभाना हे, देवारी तिहार के गाड़ा-गाड़ा बधाई.