Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

IAS को भी फोन टेपिंग का खौफ !

My phone is being taped….सूबे के स्वास्थ्य महकमे के प्रमुख सचिव जब ऐसा संदेश अपने व्हाट्स स्टेटस पर लगाएंगे तो सवाल उनके स्टेटस से ज्यादा व्यवस्था पर खड़े होंगे. जाहिर है अब तक उनसे सवाल-जवाब हो चुका होगा या होना बाकी होगा, लेकिन उनके स्टेटस ने खूब माहौल बना रखा है. पूछताछ भरे अंदाज मे्ं चर्चा उठ खड़ी हुई है कि, ‘ क्या फोन टेपिंग अब भी !’  वैसे एक किस्सा सुनिए. नई सरकार बनने के ठीक कुछ वक्त बाद सीएम साहब साइंस काॅलेज के एक कार्यक्रम में थे, जहां उन्होंने खुलासा किया था कि रमन सरकार में तब के चीफ सेक्रेटरी उनसे व्हाॅट्स एप पर बात किया करते थे, फोन टेपिंग का डर था, लेकिन अब राज्य में लोग बेधड़ बातें कर रहे हैं. जब उन्होंने ये बातें कहीं, तब उनका आशय तो यही था कि फोन टेपिंग अब खत्म हो गई. करने वाले नाप दिए गए. करवाने वाले ने राज्य छोड़ दिया. लेकिन प्रमुख सचिव साहब के एक स्टेटस ने संशय का तीर छोड़ दिया. खैर कई एजेंसियां की नजर उन पर है, तो उनकी बात थोड़ी अलग ही होगी. इतना तो संभलना ही चाहिए. साथ ही उन्हें दूसरों की भी चिंता रही होगी कि बात करें, पर अपने रिस्क पर. वैसे व्हाट्स एप, सिग्नल, फेसटाइम पर बात करना एक ट्रेंड बन गया हैं. यहां सभी को सभी से डर है.  सुरक्षित काॅल करने वालों का भी अपना वर्ग है. पिछड़ा तबका व्हाट्स एप, सिग्नल जैसे एप के जरिए बातचीत करता है, तो इलिट क्लास फेसटाइम पर. प्रमुख सचिव साहब किस पर हैं !
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जांच के आदेश

प्रशासनिक महकमे में बड़ा ओहदा संभाल चुके एक पूर्व आईएएस के खिलाफ जांच का आदेश सुर्खियों में है. ब्यूरोक्रेसी में इसकी जबरदस्त चर्चा है. बताते हैं कि सीएम के जनशिकायत वाले पोर्टल में पूर्व आईएएस की जमीन से जुड़े एक मामले की शिकायत दर्ज की गई थी. बकायदा सीएम सचिवालय ने उस पर संज्ञान लिया और मामले की जांच आगे बढ़ाई. सितंबर महीने के आखिरी दिनों में जांच के लिए चिट्ठी भेज दी गई. वैसे यह जांच सामान्य जांच की तरह नहीं है. मामला हाईप्रोफाइल है. वैसे जिस पूर्व आईएएस के खिलाफ जांच की चिठ्ठी जारी हुई, उनकी मजबूती के किस्से भी सुनने को मिलते रहे हैं. ऐसे में ये समझ के परे हैं कि चिट्ठी जारी हुई तो कैसे हुई. इसके पीछे का समीकरण फिलहाल उलछा हुआ है.
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….और ऐसे बदले गए डीजीपी

वैसे तो सरकार बदलने के दो महीने बाद से ही यह चर्चा आम थी कि डीजीपी बदले जाएंगे. फिर सुप्रीम कोर्ट की दो साल नहीं हटाए जाने वाली गाइडलाइन आड़े आ गई. इसके बाद चर्चा शुरू ही हुई ही थी, कोरोना अड़चन बनकर खड़ा हो गया. शिव भक्त है अवस्थी. बार-बार कृपा बरसती रही. इस बार मामला थोड़ा अलग हो गया. पुलिस विभाग पर सीएम की नजर पड़ गई. समीक्षा पे समीक्षा. शिकायतों का सबसे ज्यादा अंबार भी इसी विभाग से, सो कुछ होना तय था. आईजी-एसपी कांफ्रेंस में दिए गए कई निर्देशों पर अमल नहीं होने की नाराजगी थी ही. पुराने मामले भी फूट पड़े. बताते हैं कि जेलों में बंद आदिवासियों की रिहाई, चिटफंड, गांजा तस्करी जैसे मामलों के साथ-साथ सोमानी अपहरण कांड मामले में सीएम के इंक्रीमेंट दिए जाने की घोषणा पर अमल नहीं होना भी डीजीपी को हटाने का बड़ा आधार बना. बताते हैं कि सीएम ने सोमानी कांड में आईजी, तब के एससपी और एक एडिशनल एसपी का इंक्रीमेंट बढ़ाए जाने वाली अपनी घोषणा पर अमल की बात डी एम अवस्थी से पूछी. उन्होंने नियम कानून का हवाला देते हुए नोटशीट सीएम को भेजे जाने का जिक्र किया. जो बात मौखिक कहीं जा सकती थी, उस पर भी नोटशीट. वह भी जब घोषणा खुद सीएम की हो. नागवार गुजरना ही था.
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खाया पिया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आना

खूब सुन रखा था अब इस कहावत को चरितार्थ होते देख भी लिया. मामला सरगुजा से जुड़ा है, जहां एक एल्युमिनियम प्लांट शुरू होना था. सुनाई पड़ा था कि किसी अग्रवाल के मालिकाना हक वाले इस प्रस्तावित प्लांट के दो और साइलेंट पार्टनर हैं. एक बीजेपी के सांसद और दूसरे सूबे के एक मंत्री. भले ही दोनों सियासी दंगल में अपने-अपने तीखे बयानों से खूब पकड़म पकड़ाई करते हो, लेकिन यहां गलबहिया कराने का पूरा इंतजाम था, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. स्थानीय स्तर पर विरोध तो था ही, ऊपर से सरगुजा से ही आने वाली केंद्रीय मंत्री भी डंडा लेकर खड़ी हो गईं. बोलीं, देखती हूं कैसे प्लांट शुरू होता है. सुनते हैं कि उन्होंने दिल्ली तक शिकायत ले जाने का मन बना लिया था. पर जब सांसद-मंत्री को राजनीति खतरे में जाती दिखी, तो अपना बचाव करने में ही भलाई समझी. अब चिठ्ठी-पत्री का दौर शुरू हो गया है. दलीलें दी जा रही हैं कि स्थानीय स्तर पर प्रस्तावित प्लांट को लेकर गहरी नाराजगी है, सो ना खोला जाए…..
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जिला पंचायत सीईओ की परेशानी 
पेसा के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए नए नियम लागू करने मंत्री टी एस सिंहदेव ने 17 तारीख को एक बड़ी बैठक बुलाई है. इस बैठक में बस्तर, सरगुजा समेत अन्य संभागों के आदिवासी विधायकों को आमंत्रित किया गया है. बैठक रायपुर के सर्किट हाउस में रखी गई है. बकायदा पंचायत सचिव ने आधिकारिक ग्रुप में तमाम विधायकों को न्यौता देने की जिम्मेदारी जिला पंचायत सीईओ को सौंप दी है. अब सीईओ पशोपेश में हैं कि करें तो क्या करें? विधायकों को न्यौता दे भी तो कैसे दें. और दूसरा विधायक क्या इस बैठक का हिस्सा बनेंगे? हाउस इस पर कैसी प्रतिक्रिया देगा, यह देखना दिलचस्प है.
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पाॅवरफुल रमन !

सियासत कब किस करवट बैठ जाए, कोई नहीं जानता. सत्ता से हटते ही पूर्व CM डाॅक्टर रमन सिंह दिल्ली की बैठकों में पिछली पंक्ति पर बैठे नजर आते थे. अबकी बार राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने गए, तो ओहदे और सम्मान में इजाफा दिखा. बैठक शुरू होने के पहले अनुशासित सिपाही की तरह रमन तीसरी पंक्ति में जाकर बैठ गए, लेकिन जब आला नेताओं की नजर उन पर पड़ी, तो बकायदा पहली पंक्ति में जगह दी गई. वह भी उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के ठीक बाजू. वैसे पहली पंक्ति में बैठने वालों में अमित शाह, राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी सरीखे के नेता शामिल थे. वैसे पिछले दिनों पूर्व CM रमन सिंह के जन्मदिन पर किसी ने टिप्पणी दर्ज करते हुए पूछा था कि आप सत्तर पार हो गए, तो तपाक से उन्होंने जवाब दिया, अभी मेरी उम्र इतनी नहीं की मार्गदर्शक मंडल में चला जाऊं……
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बस्तर, दिवाली और नेताजी….

इस दिवाली बस्तर के कांग्रेस नेताओं ने खूब चर्चा बटोरी. यहां के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने कलेक्टरों, डीएफओ सरीखे अधिकारियों से खूब भौंहे टेढ़ी की. सुनते हैं कि दिवाली के पहले स्थानीय विधायक, प्रभारी मंत्री समेत दूसरे जनप्रतिनिधियों ने अधिकारियों को खूब टाॅस्क दे रखा था, लेकिन इस दफे डिमांड नोट ज्यादा की थी. मांगा दस था, पहुंचा एक. सो कलेजा फट पड़ा. सम्मान भी कोई चीज थी, सो लौटाना ही बेहतर विकल्प नजर आया. अब चर्चा है कि त्यौहार बाद जनप्रतिनिधियों की तबादले की पैरवी वाली चिट्ठी आने का सिलसिला शुरू हो सकता है. फेरबदल में कुछ नपें, तो समझ लीजिएगा कि दिवाली वाली नाराजगी थी…..