लेखक : प्रितपाल सिंह अरोरा, अम्बिकापुर. श्री गुरु नानक देव सिख धर्म के संस्थापक प्रथम गुरु थे. भक्ति कालीन युग पुरुषों की परंपरा में आपका नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है. आप से पूर्व और समकक्ष कबीर, दादू, नामदेव, चैतन्य जैसे धर्म गुरुओं की समकालीन परंपरा दिखती है, जो भक्ति के माध्यम से निम्न और मध्यम वर्गीय जनता के पक्ष में खड़ी होती है. इन्हीं में से एक प्रसिद्ध नाम है ‘‘गुरु नानक देव‘‘ जिनका जन्म 1469 ई., तलवंडी, ननकाना साहब, पाकिस्तान में हुआ था.
500 वर्षों से ऊपर हो गए आज भी उनकी याद भुलाए नहीं भूलती. अब तो इसलिए भी जब हमारा देश जातियों, उपजातियों, आदिवासी ,गैर आदिवासी, ऊंच-नीच, गरीब अमीर तथा अलग-अलग धर्मों में बांटा जा रहा है. कमोबेश इन्हीं स्थितियों में पांच छह सौ वर्ष पूर्व उन महापुरुषों ने अपना भक्ति और सामाजिक आंदोलन शुरू किया जो निम्न और मध्यम वर्ग से आए थे.
गुरु नानक देव भक्ति आंदोलन की एक महत्वपूर्ण कड़ी थे. हालांकि भक्ति कालीन धर्मगुरुओं की हर पल यही कोशिश रही कि आम जनता अध्यात्म के माध्यम से आपसी सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखे और व्यक्ति के दृष्टिकोण से नैतिक बने. गुरु नानक के विचार अन्य समकालीन महापुरुषों के विचारों से समान दृष्टिकोण रखते हुए भी दलित वर्ग के प्रति करुणा और अन्य धर्मों के प्रति सहनशीलता के साथ साथ न्याय पूर्ण समाज के लिए भाववादी दृष्टि विशेष रूप से दिखती है.
नानक जी की यात्राएं इन्हें उदासी कहते हैं. पहली यात्रा में गुरु नानक पूर्व की ओर निकले हरिद्वार, मथुरा, बनारस, गया, असम, नागालैंड, बर्मा, जगन्नाथ पुरी इत्यादि होते हुए नानक ने पहली यात्रा संपन्न की. दूसरी यात्रा गुरु नानक जी ने तमिल नाडु, लंका, मालाबार, कोंकण, मुंबई, राजस्थान होते हुए पूरी की. तीसरी यात्रा उत्तर में हिमालय की ओर लद्दाख तथा तिब्बत, भूटान तक तथा चैथी यात्रा पश्चिम की ओर अफगानिस्तान, अरब, बगदाद ,तुर्की ,मक्का -मदीना होते हुए तक पूरी की. हर तरह के धार्मिक गुरुओं से उन्होंने चर्चाएं की. धार्मिक कर्मकांड और पाखंडों का विरोध किया मेहनतकशों के हक में उनके सुख दुख में सहभागी होने के संकेत दिए. इन यात्राओं के दौरान उन्होंने जनता के सभी वर्गों से संपर्क किया और एक निर्दोष समाज का आग्रह किया.
गुरु नानक के विचार पद्य रूप में गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं जिनसे हम उनके विचारों का विश्लेषण भिन्न-भिन्न शीर्षको के तहत कर सकते हैं। जिसमें नैतिकता है, करुणा है, सामाजिक विवेक है. देश के प्रति संवेदना है. ईश्वरीय प्रेम है. योग के संबंध में विचार हैं.
इन विचारों में क्रूर सत्ता का विरोध भी है. धार्मिक पाखंडों का खंडन भी है. जाति प्रथा का विरोध भी है. ढोंगी फकीर गुरु, मौलवियों, पंडों, योगियों से किए गए संवाद भी हैं. उन्हें नैतिकता की ओर जाने की समझाइश भी है.
इन यात्राओं में उनके साथ दो शिष्य हमेशा मौजूद रहे बाला और मुसलमान शिष्य मर्दाना कहते हैं कि जगन्नाथ पुरी के मंदिर में जब पुजारियों ने इन्हें इसलिए प्रवेश नहीं करने दिया कि आपके साथ मुसलमान शिष्य का प्रवेश निषेध है, तो गुरु नानक देव मंदिर के अंदर नहीं गए और समुद्र किनारे बैठकर ईश्वर की आराधना इस प्रकार की ‘‘गगन में थाल रवि चंद दीपक बने तारिका मंडल जनक मोती, धूप मलिआनलो, पवन चवरो करे.
गुरु नानक जी ने पद्य में ईश्वर के बृहद स्वरूप की आरती रची. जिसे उनके शिष्यों में आज भी हिंदू और मुसलमान दोनो बड़ी श्रद्धा से पढ़ते हैं. साहित्यकार नानकजी की रचनाओं ( वाणी) सुनकर,पढ़कर इन्हें महाकवि कहते हैं. समाज का भला चाहने वाले उन्हें समाज सुधारक का दर्जा देते हैं. धार्मिक अनुयाई उन्हें धर्मगुरु और दलित,मजदूर,किसान और निम्न वर्ग के लोग उन्हें अपना मुक्तिदाता कहते हैं.
गुरु नानक के साहित्य का उद्देश्य इस पंक्ति से स्पष्ट होता है. ’ विद्या विचारी तां पर उपकारी’ यानी जो सचमुच विद्वान है उन्हें अपने ज्ञान का उपयोग परोपकार में लाना चाहिए. आप के सिद्धांतों शिक्षाओं को हम तीन हिस्सों में बांट सकते हैं.
किरत करो अर्थात श्रम करो, नाम जपो याने ईश्वर का स्मरण करो और वंड छको अर्थात बांट कर खाओ याने नानक ने ईमानदारी और नैतिकता के गुणों पर विशेष ध्यान दिया है. वह कहते हैं ‘‘हक पराया नानका उस सूअर उस गाय‘‘. यानी दूसरों का हक मारने वालों के लिए गाय और सुअर खाने के सामान है.
आप के संबंध में एक घटना और प्रसिद्ध है. अपनी यात्रा के दौरान वह गांव में गरीब जुलाहे के घर में ठहरते हैं. गांव के जमींदार के पूछने पर कहते हैं कि तुम्हारे द्वारा गरीबों का हक मारकर की गई कमाई की रोटी से मुझे खून की गंध आती है. जबकि इस गरीब मेहनतकश की रोटी से दूध का आभास होता है. आज की स्थितियों का आकलन इस घटना से हमें जरूर करना चाहिए. ना सिर्फ आर्थिक व्यवस्था, मेहनतकशों की दयनीय स्थिति, बल्कि आज के समय में झूठे गुरुओं की भी समीक्षा होनी चाहिए.
गुरु जी ने सभी इंसानों को एक ही ईश्वर का रूप माना कबीर ने भी कहा था ‘‘एक नूर ते सब जग उप जेया, कौन भले को मंदे‘‘. इसी वाणी के तर्ज पर लगभग भक्ति कालीन महापुरुषों की विचारधारा आगे बढ़ी है. गुरु नानक ने भी कहा ‘‘ना हिंदू ना मुसलमान‘‘, सभी इंसान एक ही ईश्वर की संतान हैं. उनमें भेद नहीं किया जा सकता. ‘‘सब में ज्योति ज्योति है सोई‘‘ सकल रूप वरन मन माही (सारे रूप और वर्ण मन के अंदर ही हैं) ना सिर्फ धर्मों के आधार पर बंटे लोगों के संबंध में गुरु जी के विचार जातियों वर्गों के बंटवारे को अस्वीकार करते हैं बल्कि वर्ण व्यवस्था के बोझ से दबे जा रहे हैं. ‘‘नीच‘‘ कहे जाने वालों के बारे में उनकी यह सोच थी कि ‘‘नीचा अंदर नीच जाति, नीची हूं अति नीच, नानक तीन के संग साथ, वडे यां सेओं क्या रीस. ‘‘अर्थात नीच कहे जाने वाले में जो ज्यादा नीच हैं, उनमे भी जो नीच हैं, नानक उनके साथ है. बड़े कहै जाने वालों से उसे क्या लेना देना. फिर कहते हैं कि परमात्मा के द्वार पर कोई जाति नहीं है. यह भी कि जाति का अहंकार व्यर्थ है वास्तव में सभी जीवो में एक ही ज्योति है. बहुत कुछ उनकी रचनाओं में और भी लिखा है जैसे जातियों में भेद नहीं किया जा सकता बल्कि सभी मनुष्यों में एक ही निराकार सुपर पॉवर की ज्योति है. गुरु नानक देव जी ने बचपन से ही कर्मकांडों को नकारना शुरू कर दिया था.
पंडित द्वारा जनेऊ संस्कार के समय उन्होंने कहा कि ऐसा जनेऊ पंडित जी पहनाइए, जिसमें दया रूपी कपास हो ,संतोष रूपी सूत हो ,संयम की गांठ हो जो सच की लपेट से तैयार किया गया हो. ऐसा जनेऊ पहना सको तो पहनाओ. जो ना मेला, हो ना जले , ना नष्ट हो.
एक और घटना में उन्होंने नदी के किनारे खड़े लोगों को पितरों को जल चढ़ाते देखकर उल्टी तरफ जल को उलिचना शुरु कर दिया. पूछने पर कहा कि तुम्हारा जल यदि मृतकों को पहुंच सकता है तो मेरा उलीचा हुआ जल , मेरे खेतों तक क्यों नहीं पहुंच सकता?
मक्का में वे जब मस्जिद की ओर पैर करके सोए थे तो उन्हें इस बात के लिए टोका गया कि पवित्र मस्जिद की ओर पैर करके ना सोवें, उधर रब है. तब नानक कहते हैं कि मेरे पैर उधर कर दो जिधर खुदा नहीं है.
गुरु जी ने इस प्रकार मूर्ति पूजा, व्रत, रोजे, तिलक, देवी देवताओं की पूजा, हवन जैसे धार्मिक कर्मकांडों से आम जनता को दूर रहने का उपदेश दिया और कहा कि ईश्वर एक है उसके और जनता के बीच में दूसरा कोई ईश्वर अल्लाह या प्रभु के नाम से स्वीकार नहीं किया जा सकता. उनका कहना था कि ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग सिर्फ गुरु के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है.
जपुजी रचना में उन्होंने ‘‘एक ओंकार‘‘ का पहला संदेश दिया जो ‘‘एकेश्वरवाद‘‘ और उसकी सर्वव्यापकता की प्रतिबद्धता प्रदर्शित करता है. आज का समाज जिसमें दर्शन और धर्म की भिन्न-भिन्न प्रणालियां विकसित हैं, नानक जी ने अपने शिष्यों को उनकी बुराइयों से बाहर निकालने का भरपूर प्रयास किया था, पर दुख है कि गुरु नानक की परंपरा से गुरु ग्रंथ साहब तक के इस दौर तक सिखों में पुनः वही विकृतियां धीरे-धीरे प्रवेश हो रही हैं, जिन से बचाने का उपाय गुरु नानक से शुरू हुआ था. मूर्ति पूजा, जातिवाद, पितृ पूजा, व्रत, त्यौहार और अन्य कई धार्मिक ,सामाजिक निषेधात्मक रूढ़ियां अधिकांश शिष्यों में घर कर गई हैं. जरूरत है इनसे बाहर निकलने की गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं इमानदारी से पढ़ कर उस पर चलने से ही बचा जा सकता है.
गुरु नानक देव जी ने अपनी यात्राओं में योगियों, साधु-संतों, ब्राह्मण- पंडितों, मौलवियों और फकीरों से भेंट मुलाकाते कीं और चर्चाएं भी. गलत व आडंबर पूर्ण गतिविधियों में संलग्न इन गुरुओं के प्रति उन्होंने कहा कि –‘‘उन लोगों के चरण स्पर्श करने की जरूरत नहीं है जो अपने को गुरु या पीर कहते हैं, पर भीख मांगते फिर रहे हैं. सच्चा मार्ग तो वे प्राप्त करते हैं जो श्रम करते हैं और मिल बांट कर खाते हैं.‘‘ दरअसल भक्ति कालीन समय में हिंदू और मुसलमान दोनों तरह के पुरोहितों, राजनैतिक शासकों और उनके समर्थित स्वार्थों के विरुद्ध संघर्ष एकऐतिहासिक आवश्यकता बन गया था. ऐसे में स्थानीय बोलियों को एकता में पिरोकर लोगों की चेतना को जागृत करना ,सामाजिक आचरण में सदाचार, दया, प्रेम, करुणा का समावेश करना उनके आंदोलन के मार्ग थे. गुरु नानक की रचनाओं में इन गुरुओं के प्रति समझाइश भी मिलती है और आलोचना भी.
मुसलमानों की पवित्रता के तत्व उन्होंने अपनी वाणी में इस तरह बताए हैं कि ‘‘दया को मस्जिद बनाओ, श्रद्धा को मुसल्ला(चटाई), हक की कमाई को कुरान, लज्जा को सुन्नत मानो, शील स्वभाव को रोजा, सच्चाई को पीर (दयापूर्ण), जो बात खुदा को अच्छी लगे वही तुम्हारी तस्वीह हो,(जाप की माला). खुदा ऐसे ही मुसलमान की लाज रखता है.
पूजा करने वाले पंडित को गुरु जी कहते हैं कि तू पुस्तक पढ़ता है, संध्या वंदन करता है, बगुले की तरह समाधि लगाता है, गले में माला और ललाट पर तिलक लगाता है, हे भाई ! अगर तू वास्तव में ब्रह्म को जानता तो इन सारे दिखावों की व्यर्थता भी जान जाता.
साधु और योगियों की कड़ी साधना और योगाभ्यास देखकर नानक जी को लगा कि ऐसे योग्य व्यक्तियों पुरुषों को जो जनता की जीवनधारा से कटे हुए थे, मानव के हितार्थ और सहज मार्गी होना चाहिए जिसमें धार्मिक शिक्षा चिंतन और भक्ति के साथ मानवता की सेवा भाव सम्मिलित हो. ‘‘योगियों ‘‘से उनकी चर्चा भी उनके लेखन में मिलती है.
नानक ने सांप्रदायिक तत्वों पर जोर देने वाली प्रवृत्ति को अस्वीकार करते हुए उन लोगों की भर्त्सना की जो मतभेदों को बढ़ाते हैं. हिंदुओं और मुसलमानों से उन्होंने निष्पक्षता और सद्भावना का समान रूप से बर्ताव किया, उनके विचार में सच्चा हिंदू वही है जो करुणा और सच्चाई का आचरण करता है. यही उनके धर्म के आदर्श रूप हैं. मुसलमानों को भी यही शिक्षा नानक देते हैं कि वह समस्त मानवता के प्रति भाईचारे का भाव बनाए रखें. मक्का में रहते हुए कई मुस्लिम उपदेशकों से उनकी चर्चा हुई. उन्होंने कहा कि हिंदू या मुसलमान जो अच्छे कर्म नहीं करता उसका अंतिम समय कष्ट में होगा.
गुरु नानक ने राजनीतिक चक्र में पीसी जा रही जनता को देखकर बिना भय के अपनी बात कही थी. बाबर की सेनाओं के अत्याचार से कराहती जनता को देखकर उन्होंने ईश्वर से पूछा.‘‘एती मार पई कुर्लाने, तैं की दरद ना आया? अर्थात, इतनी मार आम लोगों को पड़ रही है, अत्याचार हो रहा है, लोग त्रस्त हैं, हे ईश्वर तुझे तरस नहीं आया? फिर कहते हैं कि – यदि बलवान किसी बलवान को मारे तो मन में रोष नहीं होता.
व्यवस्था के प्रति उनकी पंक्ति प्रसिद्ध है कि ‘‘ राजे सींह, मुकद्दम कुत्ते, जाए जगावन बैठे सुत्ते‘‘,. अर्थात राजा शेरों के समान और उनके मातहत मुकद्दम कुत्तों के समान जनता को नोच रहे हैं, जिन्हें जगाना या समझाना बहुत जरूरी है. देखा जाए तो हमारे देश की स्थितियां वैसी ही हो रही हैं जैसी कि नानक के समय में थी.
आज देश स्वतंत्र है पर उससे भी बढ़कर स्थितियां पैदा हो रही हैं. ऊंच-नीच का जाति भेद आज भी वैसा ही है, कट्टरपंथी ताकतें एक दूसरे के धर्मावलंबियों के प्रति हिंसात्मक रूप धारण करती जा रही हैं, देश में कई जगह होने वाले एकपक्षीय दंगे और हिंसा ,इस बात के गवाह हैं कि हम में से कुछ लोग आज भी शरीर से मनुष्य और सोच से पशु के समान होते जा रहे हैं. धर्म के नाम पर कर्मकांड हो ,पाखंड हो, राजनीति के नाम पर नेताओं का हाल, भ्रष्टाचार, श्रम की जगह पर पूंजी का बोलबाला, मेहनतकशों को उनका हक तो दूर की बात है ,अमीर और अधिक अमीर हो रहा है, गरीब और गरीब. पूरा देश धन और पूंजी के चक्रव्यूह में फंस चुका है. अश्लीलता आसमान पर है. पाश्चात्य संस्कृति ने हमारे आने वाली पीढ़ी का बचपन छीन कर उन्हे जवान बना दिया है, जवानों को बूढ़. विरोध में सच बोलने पर पाबंदी, और भी बहुत सी बातें,जिनकी चर्चा आज के समय की करें तो पहले की बात रह जाएगी.
नानक कहते हैं कि ‘‘कूड़ नीखुटे नानका, ओड़की सच रही ‘‘अर्थात बुराई का नाश होगा केवल भलाई कायम रहेगी. उन्होंने धर्म के बारे में कहा ‘‘कि धर्म केवल शब्दों का जाल नहीं है जो व्यक्ति मनुष्य जाति को समान मानता है वही सच्चा धार्मिक है.
गुरु नानक की पद्य रूप में लिखी गई कविताओं में ब्रजभाषा, सिंधी, हरियाणवी, राजस्थानी, और हिमाचल की पंजाबी से शब्दों को ग्रहण किया गया है. फारसी और अरबी के शब्दों का व्यवहार इन रचनाओं में है. आपके मौलिक लेखन में पंजाबी में मध्यकालीन हिंदी का पुट है. पंजाबी लोकगीतों को लय बद्ध कर वाणी को संजोया गया है ताकि याद रखने में आसानी हो.
गुरु नानक के अनेक पद सूक्ति के रूप में प्रसिद्ध हो चुके हैं, जिन्हें जनमानस बोलचाल में प्रयोग में लाता है. जैसे ‘‘विद्या विचारी तां पर उपकारी‘‘ अर्थात ज्ञान चिंतन को मानवता की सेवा हेतु प्रेरित करना चाहिए. ‘‘‘‘नानक दुखिया सब संसार‘‘‘‘,याने नानक कहता है कि सारा संसार दुखों में जकड़ा है. इत्यादि इत्यादि. नानक जी की वाणी रचनाओं में पौराणिक कथाओं और भारतीय मिथकों का समावेश भी है. प्रतीकों व बिंबों के इस्तेमाल भी किए गए हैं. जिन्हे शिष्य बड़े मनोयोग से आज तक गाते हैं. गुरु नानक की शिक्षाएं मध्ययुगीन हिंदी और पंजाबी की भक्ति कविताओं के रूप में गुरु ग्रंथ साहिब में सुरक्षित हैं. यह भारतीय साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं. आज का निरंतर विकास करता समाज तथा व्यवस्थाएं, इनसे नैतिकता और भक्ति की सीख ले सकती हैं.
जबकि भारत का किसान अपने अधिकारों की रक्षा करने हेतु अपने दूसरे वर्ष के आंदोलन में प्रवेश कर रहा है ,सड़कों पर उतर चुका है, हमें गुरु नानक देव की याद इसलिए भी आती है कि जिन्होंने अपने अंतिम वर्ष खेती- किसानी करते हुए बिता दिए तथा श्रम को सबसे ऊंचे स्थान पर रखा, (आज उसी श्रम को, जमीन को ,पूंजीपति और राजनीति का घालमेल उनसे छीन लेना चाहते हैं,) सभी धर्मों में मेल, इंसान- इंसान में फर्क नहीं, ईश्वर निराकार है वह सब में एक ही है, दबे और शोषितों के पक्ष में ,किसानों और मजदूरों में, नानक,,,
हमारे विचारों में आज भी जिंदा हैं.
लेखक : प्रितपाल सिंह अरोरा, अम्बिकापुर