लक्ष्मीकांत बंसोड़, बालोद। जिले के नक्सल मुक्त होने का तमगा मिलने के बाद भी हिड़कापार गांव बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहा है. ग्रामीणों को राशन के लिए 12 किलोमीटर तो पढ़ाई के लिए बच्चों को 15 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है. ग्रामीणों की माने तो अपनी समस्याओं को लेकर कई बार शासन-प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन उन्हें अब तक आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला है.

बालोद जिला के डौंडी ब्लॉक के ग्राम पंचायत नलकसा के आश्रित गांव हिड़कापार में 27 परिवार निवास करते हैं. कभी लाल आतंक की साए में जीने वाला गांव समय के साथ प्रशासन की कवायद से जिला नक्सल मुक्त तो हो गया, लेकिन आज भी रहवासियों को उनकी समस्याओं से मुक्ति नहीं मिल पाई है.

इस गांव की सबसे बड़ी समस्या एकमात्र जंगल से होकर जाने वाली पथरीले व उबड़-खाबड़ सड़क है. इसी रास्ते से होकर शासन द्वारा मिलने वाले खाद्य सामग्री लेने अपने मूल पंचायत 12 किलोमीटर दूर नलकसा जाना पड़ता है, वह भी महीने में एक बार नहीं बल्कि दो से तीन बार चक्कर काटने के बाद ही मिलता है. इसके साथ ही स्वास्थ्य और मूलभूत सामानों के लिए 15 किलोमीटर दूर दल्ली या डौंडी पर निर्भर होना पड़ता है.

यही नहीं प्राइमरी के बाद उच्च शिक्षा के लिए 12 किलोमीटर दूर कोटागांव की ओर रुख करते हैं. यही वजह है कि ग्रामीण अपनी बालिकाओं को उच्च शिक्षा ग्रहण करने दूसरे शहर या गांव अपने परिजनों के यहां भेज देते हैं. ग्रामीणों की माने तो प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन उन्हें आजतक बस आश्वासन ही मिला है.

बरसात के दिनों में बढ़ जाती है मुसीबत

बारिश के दिनों में बारिश के रास्ते की मिट्टी के बह जाने से पत्थरों पर चलना मुश्किल हो जाता है.  चट्टान बाहर आ जाने से इस मार्ग में चलना मुश्किल हो जाता है. जिसके चलते बच्चों की शिक्षा प्रभावित होता है. ग्रामीणों का कहना है कि उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य दे नहीं सकते तो कम से कम एक अच्छे मार्ग देकर उनकी राह आसान कर सकतेहैं. इसके साथ ही शासन से मिलने वाली खाद्य सामग्री गांव में पहुंचाए जाने से ग्रामीणों को समस्याओं से दो-चार नहीं होना पड़ेगा. डौंडी जनपद सीईओ ने प्रशासन की टीम गांव भेज जल्द ही सुविधा मुहैया कराने की बात कही है.