रायपुर. गांधी जी की अर्थव्यवस्था के मॉडल में सबसे अहम औजार था सहकारिता. संपत्ति विहीन वर्ग की सहकारिता होती है स्वसहायता समूह. गांधी जी अक्सर कहा करते थे कि मैं एक महिला बनना चाहता हूं क्योंकि संघर्ष की जो क्षमता महिलाओं में है, वो पुरुषों में नहीं है. इसीलिए उन्होंने भारत में पहली बार महिलाओं को आह्वान किया था. स्त्रियों के भीतर इस शक्ति को गांधी जी उनसे प्रेरित आंखें ही पहचान सकती हैं.
लता नेताम एक ऐसी ही महिला है जिसे गरियाबंद में एक साहसिक नेतृत्व का नाम माना जा सकता है. लता चुनौतियों का डटकर मुकाबला करने और हालात को बदलने में यकीन रखती हैं. लता नेताम आदिवासी समाज से गिनी चुनी महिलाओं में से एक हैं. जो विषम परिस्थितियों को संघर्ष करते हुए अपने हक में बदलने की कोशिश कर रही हैं. वे गरियाबंद में ग्राम स्वराज की सोच को अमलीजामाम पहनाने और महिलाओं को सशक्त बनाने के काम में दो दशक से जुटी हुई हैं. लता नेताम स्त्रियों के खिलाफ हिंसा और उनकी शिक्षा को लेकर काम कर रही हैं.
गरियाबंद के आदिवासी समाज की सोच में उनकी कोशिशों से काफी बदलाव आ रहा है. लता नेताम जब दसवी में थी तो उनके पिता की मौत हो गई. छह भाई बहनों की ज़िम्मेदारी तेरह वर्ष की उम्र में नेताम के कंधों पर आ गई. उस वक़्त गरियाबंद में जारी एक आंदोलन ने लता की ज़िंदगी बदल दी और वो संघर्ष के रास्ते पर बढ़ चलीं. लता ने अपनी मां के साथ मिलकर 6 छोटे भाई बहनों को पालने की ज़िम्मेदारी निभाई. इस दौरान उन्होने काम करते हुए बीएड तक पढ़ाई पूरी की.
बेहद ही कम उम्र में पिता के साया उठ जाने के बाद यह घरेलू परिस्थिति ने लता नेताम को झकझोर दिया. वे संघर्ष के रास्ते आगे बढ़ रही हैं और आज एक संघर्ष के साथी बन दबे कुचले समाज के अंतिम व्यक्ति तक हर एक योजना को पहुँचाने के प्रयास के साथ उनको उनके अधिकार दिलाने में जुटी हुई है.
लता नेताम ने पंचायतों को मज़बूत करने का काम कर रही है. ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने और महिलाओं को आगे लाने के लिए उन्होंने काम किया है. लता नेताम महिला हिंसा के खिलाफ गरियाबंद की सशक्त आवाज हैं. जिस जंगली इलाकों में पहले महिलाएँ हर अन्याय और उपेक्षा को सह लेती थीं. आज वो अपने हक और अधिकार की बात करती हैं. लता के काम की वजह से इलाके की करीब 50 महिलाओं ने अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाई है.
लता नेताम बच्चों तक गांधी विचारधारा को शिक्षण के माध्यम से पहुंचाने का काम कर रही हैं. उन्होंने जंगल के स्कूलों में पुस्कालय खुलवाए. स्कूल छोड़ चुकी बच्चियों के हाथों में फिर से बस्ते पकड़ाए. जिस जंगल में पाँचवीं तक पढ़कर सबसे ज़्यादा शिक्षित हुआ करता था, वहाँ लता की प्रेरणा से लोग ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट हो रहे हैं. जंगल की इस बेटी ने जंगलों को बचाने के लिए भी लोगों को जागरुक किया. उन्होंने समुदाय को जैविक खेती की तरफ मोड़ने का काम किया है. वे स्थानीय बीजों को बचाने रखने का अभियान भी चला रही हैं.