दिल्ली. मुंबई पर हुए 26/11 आतंकी हमले को 13 साल पूरे हो गए हैं. साल 2008 में हुए उस आतंकी हमले में 166 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि सैकड़ों लोग घायल हुए थे. उन्हीं लोगों में से एक थी देविका रोटावन, वो उस वक्त महज 9 साल की थी. इस हमले में देविका के पैर में गोली लगी थी, उन्हें कई महीने अस्पताल में गुजारने पड़े और इस केस की वह सबसे छोटी उम्र की गवाह भी थी, जिसके बाद आतंकी कसाब को फांसी दी गई.
कसाब ने मारी थी गोली
26 नवंबर, 2008 को शिवाजी चर्मिनल की घेराबंदी के दौरान अजमल कसाब ने देविका को गोली मारी थी. रातोंरात देविका को दुनिया जानने लगी. उन्हें कोर्ट में कसाब की पहचान के लिए बुलाया गया था. कसाब उस आतंकी हमले में अकेला बचा आतंकी था.
अफसोस स्कूल में कहते थे “कसाब की बेटी”
देविका जब स्कूल गई तो उन्हें वो सब देखना पड़ा जिसकी उन्हें कभी कल्पना भी नहीं की थी. जिसके बाद स्कूल में कोई उनका दोस्त नहीं बचा था, सभी सहपाठी उनसे दूर भागने लगे थे. देविका का कहना है कि उन्हें सब कसाब की बेटी कहते थे. वह रोते हुए अपने घर जाती थीं क्योंकि लड़कियां उन्हें परेशान करती थीं. जिसके बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और दूसरे स्कूल में दाखिला लिया. लेकिन यहां भी मुश्किलें कम नहीं हुईं. देविका ने एक आतंकी की पहचान की थी, इस स्कूल में भी सब उनसे डरने लगे. एक अन्य स्कूल ने उन्हें ये कहकर दाखिला देने से मना कर दिया कि उनकी अंग्रेजी अच्छी नहीं है.
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रिश्तेदार और पड़ोसियों ने भी दूरी बना ली
आतंकियों के डर से देविका के पड़ोसी और रिश्तेदारों ने भी उनसे दूरी बनाना शुरू कर दिया था. देविका के पिता नटवरलाल का कहना है कि ट्रायल चलने तक उन्हें धमकियां दी जाती रहीं. देविका का कहना है कि उन सबसे वह डर गई थीं, लेकिन वह कभी टूटी नहीं.
बांदरा में एक कमरे में गुजारा करने वाले देविका के परिवार में पिता और दो भाई हैं. आज वह 22 साल की हैं. पिता एक छोटी सी नौकरी करते थे. देविका का सपना है आईपीएस अफसर बनना. देविका का कहना है कि उन्हें कसाब को फांसी पर चढ़ता देख खुशी हुई लेकिन अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है.
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कसाब छोटी मछली था, पूरा समुद्र साफ करने की जरूरत
देविका का कहना है, “मैं जानती थी कि वो मरने लायक ही था लेकिन मुझे लगता है कि सरकार को आतंकवाद को खत्म करने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए. मैं समाज में शांति लाना चाहती हूं. कसाब केवल एक छोटी मछली था. मैं पूरा समुद्र साफ करना चाहती हूं. एक आतंकी को मारने से बेहतर है पूरे आतंकवाद को उखाड़ फेंकना”
जब देविका पर हुआ हमला
26 नवंबर, 2008 को देविका पुणे में नौकरी करने वाले अपने बड़े भाई से मिलने जा रही थी. उनके साथ उनके भाई और पिता भी थे. देविका ने उस भयानक मंजर के बारे में बताते हुए कहा, “हम प्लेटफॉर्म पर इंतजार कर रहे थे. उतने ही मुझे पटाखे फोड़ने जैसी आवाजें सुनाई दीं. लोग इधर उधर भाग रहे थे. जब मेरा भाई बाथरूम की तरफ गया, तब वहां स्टेशन की ओर एक बंदूकधारी आया. मेरे पिता ने मुझे वहां से भागने को कहा, जैसे ही मैंने भागना शुरू किया तो मेरे पैर में तेज दर्द होने लगा. मेरे सीधे पैर में गोली लगी थी. कुछ ही सेकेंड में खून बहने लगा और मैं नीचे गिर गई”
पिता नहीं चाहते थे कि कोर्ट जाऊं
देविका का कहना है कि वह हमले के 2 महीने बाद तक जेजे अस्पताल में रहीं. उनके पिता नटवरलाल नहीं चाहते थे कि वह गवाही दे लेकिन बाद में उन्होंने अपना मन बदल लिया. कई बार देविका का ऑपरेशन भी हुआ. देविका का कहना है कि उनके पिता नहीं चाहते थे कि वह कोर्ट जाएं. पुलिस उनसे कई सवाल पूछ रही थी. लेकिन बाद में उन्होंने देविका का साथ दिया.
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कोर्ट में कसाब के खिलाफ दी गवाही
देविका ने कहा, “उज्जवल निकम सर मेरी तरफ देख रहे थे क्योंकि मैं उस राक्षस के सामने खड़ी थी जो मेरी जान लेना चाहता था. जब कोर्ट में मुझसे पूछा गया कि तुम्हे किसने गोली मारी? मैंने अपना हाथ खड़ा किया और कसाब की ओर इशारा किया, जो वहां बिना किसी भाव के खड़ा था”
किसी ने नहीं की मदद
देविका के पिता नटवरलाल का कहना है कि उनकी बेटी को कई टीवी चैनल में इंटरव्यू देने के लिए बुलाया गया. लेकिन किसी ने उनकी मदद नहीं की, किसी ने उनकी बेटी की पढ़ाई के लिए भी मदद नहीं की. उन्हें घर देने का वादा किया गया था लेकिन वह भी नहीं मिला. देविका के छोटे भाई का कहना है कि वह अपनी मां को पहले ही खो चुका था और अपनी बहन को ऐसे मरते हुए नहीं देख पा रहा था. वह जोक सुनाकर देविका को हंसाने की कोशिश करता रहता था.
देविका का कहना है कि आज भी जब वह उस जगह पर जाती हैं, जहां उन्हें गोली लगी थी तो उन्हें लगता है कि वह आज भी वहीं पर खड़ी हैं और पूरी दुनिया तेज मोड में आगे बढ़ रही है. देविका का कहना है कि “वह सब मुझे बहुत डराता है लेकिन वो वादा भी याद दिलाता है जो मैंने खुद से किया था, और वह वादा है कि मुझे अपने पिता, भाई और देश को एक अच्छा भविष्य देना है. मुझे एक आईपीएस अफसर बनना है. मुझे आतंकवाद से लड़ना है और उन सबको न्याय दिलाना है जो मेरे और मेरे पिता की तरह संघर्ष कर रहे हैं”
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