आज का दिन हम सब भारतीयों के लिए विशेष दिन है. आज का दिन हजारों सालों की गुलामी से मुक्ति का दिन है. यह वो दिन है जब आपका अपना आईन बना है ,जो आपके अपनों के द्वारा समस्त भारतीय जनता के कल्याण के लिए बिना किसी जाति, धर्म, लिंग एवं क्षेत्र का भेदभाव किए बनाया गया है.
देश का संविधान हर नागरिक के लिए प्राणवायु के समान है जैसे कुछ समय के लिए प्राणवायु नहीं मिलती है, तो व्यक्ति जीवित नहीं रह पाता है वैसे ही यदि संविधान एक क्षण के लिए भी उपलब्ध नहीं हो तो व्यक्ति का जीना भी मुश्किल हो जाएगा. संविधान का संधि विच्छेद होता है सम् प्लस विधान यानी वो कानून जो सबको समान समझता है.
संविधान वो सर्वोच्च कानून है, जिसके अनुसार न केवल देश को संचालित होता है बल्कि आम नागरिक के लिए सुरक्षा कवच का भी काम करता है. संविधान ही समस्त कानूनों का स्रोत है. संसद भी ऐसा कोई कानून नहीं बना सकती जो संविधान का अतिक्रमण करे. यह संविधान ही है, जिसके बल पर एक आम नागरिक भी सरकारों से भी लड़ जाता है. यह देश के नेतृत्व के लिए दिशा निर्देशक भी है.
मैं आज इस अवसर पर संविधान सभा के समस्त सदस्यों को नमन करता हूं और कृतज्ञता प्रकट करता हूं कि उन्होंने ऐसा संविधान दिया जिसके बदौलत मैं आज इस पद तक पहुंचा हूं और आपसे बात कर सका हूं. यह बाबा साहब के नेतृत्व में लिखित उस संविधान का ही कमाल है कि एक साधारण परिवार में पैदा होने वाला व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री एवम् देश का राष्ट्रपति बना है.
इसी की बदौलत महिलाशक्ती भी देश की प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति एवम् न्यायाधीश बनी है. अन्यथा हमारे यहां महिलाओं के बारे में तुलसीदास जी ने भी समाज की सोच को अपने साहित्य मे रेखांकित किया है. मेरे जैसे लाखों लोग मजदूर परिवार में पलने के बावजूद सर्वोच्च पदों तक पहुंच रहे हैं.
मेरा मानना है कि भारतीय संविधान आपकी उन्नति प्रगति का घोषणा पत्र है. आप जब तक इस दुनिया में है तब अपने इसे अपने पास रखिए और पढ़िए क्योंकि इसमें ऐसे ऐसे मंत्र है जिसको जानने समझने से आप हर प्रकार के संकटों से बच सकते हैं.
अब सवाल आता है कि संविधान दिवस की मनाया क्यो जाता है. संविधान के जनक बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर और संविधान के महत्व को समझाने के लिए प्रत्येक वर्ष 26 नवंबर के दिन संविधान दिवस मनाया जाता है. जिसमें लोगों को यह बताया जाता है कि आखिर कैसे हमारा संविधान हमारे देश की तरक्की के लिए महत्वपूर्ण है तथा डॉक्टर अंबेडकर को हमारे देश के संविधान निर्माण में किन किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था.
संविधान दिवस पर हम आने वाली पीढ़ियों को हमारे देश के संविधान के महत्व को समझा सके जिससे कि वे उसका सम्मान करें. साथ ही हमें वर्तमान से जोड़ने का कार्य करता है. जब लोग जनतंत्र का महत्व दिन- प्रतिदिन भूलते जा रहे हैं. तब यही एक तरीका है जिससे अपना कर हम अपने देश के संविधान निर्माताओं को सच्ची श्रद्धांजलि प्रदान कर सकते हैं.
संविधान दिवस के माध्यम से हम आने वाली पीढ़ियों को अपने देश के स्वतंत्रता संघर्ष और इसमें योगदान देने वाले क्रांतिकारियों के विषय में बताएं ताकि वह इस बात को समझ सके कि आखिर कितनी कठिनाइयों के बाद हमारे देश को स्वतंत्रता की प्राप्ति हुई है.
संविधान दिवस को केवल औपचारिक रूप से नहीं मनाना चाहिए बल्कि अपने देश के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते यह हमारा कर्तव्य है कि हम इस दिन को पूरे जोश एवम् उत्साह के साथ मनाएं और यही हमारे देश के संविधान निर्माताओं को हमारी ओर से दी जा सकने वाली सच्ची श्रद्धांजलि होगी. हमारा यह मात्र कर्तव्य ही नहीं बल्कि दायित्व भी है कि हम इस दिन को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाएं.
इस दिन का प्रचार प्रसार करने के लिए जागरूकता अभियान चला सकते हैं. हमें लोगों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करने की भी आवश्यकता है. संविधान की प्रस्तावना के विषय में लोगों को अधिक से अधिक जानकारी देनी चाहिए ताकि लोग संविधान का सार समझ सके। विद्यालयों में सेमिनार व्याख्यान का आयोजन करके भी हम बच्चों को संविधान के बारे में जानकारी दे सकते हैं.
सोशल मीडिया पर भी अभियान चलाकर संविधान दिवस के विषय में लोगों को जागरूक कर सकते हैं. संविधान का हमारे लिए क्या महत्व है? बाबा साहब अंबेडकर के नेतृत्व में संविधान सभा ने अपने समय का सबसे प्रगतिशील संविधान बनाकर गैर बराबरी आधारित सामाजिक ढांचे को नष्ट किया एवं एक समतामूलक समाज की स्थापना के स्वप्न को साकार किया.
आजादी के पहले तक भारत में रियासतों के अपने अलग-अलग नियम कानून थे जिन्हें देश के नियम कानून और प्रक्रिया के अंतर्गत लाने की आवश्यकता थी। इसके अलावा हमारे देश को एक ऐसे संविधान की आवश्यकता थी जिसमें देश में रहने वाले लोगों के मूल अधिकारों कर्तव्यों को निर्धारित किया जा सके.
जिससे हमारा देश तेजी से तरक्की कर सके और नई ऊंचाइयों को प्राप्त कर सके. भारत में 26 नवंबर को हर साल संविधान दिवस मनाया जाता है क्योंकि वर्ष 1949 में 26 नवंबर को ही संविधान सभा द्वारा भारत के संविधान को अंगीकृत किया गया था. जो 26 जनवरी 1950 को पूर्ण रूप से प्रभाव में आया. यानी आज का दिन देश के गणतंत्र या कहें लोकतंत्र का बुनियादी दिन है. इस दिन देश को ऐसा कानून मिला था जिससे आज तक देश में शासन- प्रशासन चल रहा है.
देश में संविधान ही सर्वोपरि है. न तो कोई सरकार,राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट और ना ही प्रधानमंत्री इससे ऊपर है. इस संविधान निर्माण में संविधान सभा के अन्य सदस्यों के साथ साथ डॉक्टर बाबा साहेब अंबेडकर , जवाहरलाल नेहरू, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, सरदार पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा.
हमारा संविधान एक हस्तलिखित दस्तावेज है. भारत का संविधान विश्व का सबसे लंबा एवम् लिखित संविधान माना गया है. इसमें कुल 25 भाग हैं जिसके अंतर्गत 448 धाराएं और 12 अनुच्छेद है. संविधान की प्रस्तावना संविधान का सार है.
“हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न ,समाजवादी, पंथ निरपेक्ष ,लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति ,विश्वास धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपने संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर 1949 ईस्वी को संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और अर्पित करते हैं!”
बाबा साहब अंबेडकर को भारत के संविधान का जनक कहा जाता है.
भारत का संविधान पूरी दुनिया में बहुत अनोखा है. यह लिखित और विस्तृत है. यहां लोकतांत्रिक सरकार है, मौलिक अधिकार है, न्यायपालिका की स्वतंत्रता , निर्बाध आने जाने , भाषण धर्म ,शिक्षा एवम् व्यापार आदि की स्वतंत्रता है. भारतीय संविधान लचीला और कठोर दोनों है.
भारतीय संविधान में न केवल विश्व भर के लोकतंत्र, मानवाधिकार एवं अन्य उद्धार मूल्यों को अपनाया गया, बल्कि भारतीय सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप उन्हें नवीन रूप भी दिया गया है. ऐतिहासिक रूप से शोषित एवं पिछड़े वर्गों के लिए सकारात्मक प्रावधानों के द्वारा इतिहास की विडंबना को सुधारने का सबसे कारगर कदम उठाया गया.
संविधान ने तमाम विविधताओं और विभिन्नताओ के बावजूद भारत को एक सक्षम राष्ट्र के रूप में उभरने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. जब हम देखते हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप में लगभग भारत के साथ ही स्वतंत्र हुए राष्ट्रों को न केवल गृह युद्ध एवम् आंतरिक अशांति से जूझना पड़ा है, बल्कि विखंडन तक से भी जूझना पड़ा है. क्योंकि वो अपने यहां उपस्थित विभिन्न सांस्कृतिक दलों को एक राष्ट्र के रूप में नहीं ढाल पाए.
संविधान ने हमें क्या दिया?
भारत का अपना संविधान लागू होने के दिन से ही असली आजादी मानी जाती है, जब अपना कानून बना इस दिन से पूर्व तक देश की शासन व्यवस्था अंग्रेजों के द्वारा दिए गए कानूनों से ही चल रही थी, इस संविधान को देश के नागरिकों की तरफ से ही स्वीकार किया गया था. संविधान की प्रस्तावना में ही संविधान का सार निहित है.
भारतीय संविधान की वो विशेषताएं जो हर नागरिक को जानना चाहिए: उनको यह पता रहना चाहिए कि आज जो हम मौलिक अधिकारों का प्रयोग कर रहे हैं, वो किस ग्रंथ में उल्लेखित है । भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं जिनके अभाव में व्यक्ति मात्र गुलाम ही रह सकता है.
भारत के धार्मिक ग्रंथों में भेद मुल्क व्यवस्था को ही प्राथमिकता दिया गया था. व्यक्ति के जन्म के दिन से ही उसका कार्य व समाज में भूमिका निर्धारित हो जाती थी. कुछ वर्ग को विशेषाधिकार प्राप्त थे जिनके द्वारा कितना ही बड़ा अपराध किए जाने पर भी माफ था.
और उस समय प्रचलित कानून उनको सजा देने की अनुमति नहीं देता था. व्यक्ति की पहचान उसके जन्म वाली वर्ग से होती थी ना कि उसकी काबिलियत या योग्यता से.
महिलाओं को किसी भी प्रकार के अधिकार नहीं थे. महिलाओं को भी शुद्र वर्ग की श्रेणी में रखा गया था. उनको ना तो पढ़ने का और ना ही संपत्ति में किसी प्रकार का अधिकार था. उम्र की अवस्था के अनुसार उसको किसी न किसी व्यक्ति के सरंक्षण में रहना होता था.
बाल विवाह,सती प्रथा,बहू पत्नी प्रथा के कारण उन पर अत्याचारों की बड़ी झड़ी लगी हुई थी. विधवा होने पर जीवन नर्क की तरह हो जाता था. पुनर्विवाह की अनुमति नहीं थी.
राज्य की शासन व्यवस्था एक निरंकुश राजा के हाथ में होती थी. उसकी इच्छा एवम् आदेश ही कानून होता था. वह न्यायाधीश भी था.
प्रजा के कल्याण के कार्य करना उसकी अपनी मर्जी पर निर्भर था. अयोग्य संतान भी राजगद्दी की उत्तराधिकारी थी. उनका एकमात्र उद्देश्य जनता से ज्यादा से ज्यादा लगान वसूली करना और ऐशोआराम की जिंदगी जीना ही उनकी पहचान थी. वर्ग विशेष के लोगों को ही शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होने से समाज के अन्य वर्ग शिक्षा से वंचित रहने से विश्व में फैले ज्ञान से वंचित हो गए। वैज्ञानिक सोच का अभाव होने से नए-नए आविष्कार करने में पिछड़ गए थे.
राज्य में राजा के यहां कर्मचारी अधिकारी भी एक ही वर्ग विशेष से ही थे. जो केवल अपने वर्ग के हितों को सुरक्षित रखने में ही मशगूल थे. जनता की शासन-प्रशासन में सहभागिता नगण्य थी।लोगों के लिए राजा ही भगवान था. वह जब चाहे तब किसी की भी जान ले ले. उस पर कोई रोक नहीं थी. चूंकि लोगों को अपना व्यवसाय चुनने की कोई आजादी नहीं थी, इसलिए व्यक्ति को अपना खानदानी धंधा मन मार कर करना पड़ता था चाहे उसमें उसकी रूचि हो या ना हो. परिवार का भरण पोषण हो रहा है या नहीं किसी को कोई मतलब नहीं था. इससे गरीबी, कुपोषण,बीमारी को बढ़ावा मिला.
लोग भूख से एवं महामारी से मर जाते थे. वर्गों के विभाजन के कारण देश पर ईरानी, यूनानी,शक, कुषाण, मंगोल और अंत में अंग्रेजों ने हजारों वर्षों तक शासन किया . हमारे राजा महाराजा आपस में लड़ने में व्यस्त थे. अपने स्वार्थों के लिए विदेशी शासकों के साथ मिलकर अपने ही देश के अन्य शासकों को परास्त करने में अपनी जीत समझते थे .
अपने निजी स्वार्थों के चलते राष्ट्र के स्वाधीनता के लिए लड़ने वाले सैनिकों पर भी गोली चलाने में गर्व समझते थे. जो शासक अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ कर उन्हें देश से भगाना चाहते थे वो शासक अंग्रेजों की नजर में देशद्रोही माना जाता था और जो अंग्रेजों की गुलामी करते,उनके दरबार में हाजिर होते वह महान देशभक्त कहलाते थे ! देश के इस महान संविधान ने सदियों से गुलामी की जंजीरों से जकड़े वंचित वर्ग की आजादी की घोषणा कर दी . संविधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को बिना जाति,वर्ग,धर्म एवम् क्षेत्र का भेदभाव किए सभी प्रकार के अधिकार प्रदान कर दिए जिससे सभी नागरिक कानून की नजर में सब बराबर हो गए.
विधि का शासन लागू हो गया अब राजा नहीं बल्कि विधि सर्वोच्च हो गई. बिना किसी प्रकार का भेदभाव के सब लोगों को समान अवसर उपलब्ध कराने की गारंटी दे दी गई. अब राजा या शासक का जन्म किसी रानी के पेट से ना होकर वोट के द्वारा होने लगा.
अपनी मर्जी के अनुसार व्यापार करने का अधिकार मिल गया. बेगार, ब्लात श्रम से मुक्ति मिल गई. छुआछूत अस्पृश्यता को अपराध घोषित कर दिया गया. सभी नागरिकों को शिक्षा प्राप्त करने तथा रोजगार पाने का अधिकार मिल गया. व्यक्ति को जीवन की स्वतंत्रता की गारंटी मिल गई. बिना कानूनी कार्यवाही व प्राकृतिक न्याय का पालन किए किसी के जीवन को नहीं छीन सकते. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सभा, संगठन की स्वतंत्रता, देश में कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता मिल गई, अपनी मर्जी से कहीं भी बसने का अधिकार मिल गया, और साथ ही व्यवस्था दी की यदि किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो तो वह सीधा उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में इन अधिकारों की सुरक्षा की गुहार लगा सकता है.
अब कानून बनाने के लिए संसद बना दी गई है प्रत्येक वयस्क नागरिक को मत देने एवं स्वयं चुनाव लड़कर प्रतिनिधि बनने का अधिकार मिल गया. इसी का नतीजा है कि जिस वर्ग की परछाया भी अपवित्र कर देती थी उस वर्ग के लोग सांसद, मंत्री उप प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष,राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति के पद तक पहुंचे हैं!
महिला वर्ग जिसे इस संविधान से पूर्व कोई अधिकार नहीं था, वह भी इन सर्वोच्च पदों तक पहुंची है, और पहुंच रही है! जहां पहले राजा ही कानून निर्माता होता था, वहीं न्यायाधीश भी लेकिन संविधान ने न्यायाधीशों को कानून निर्माता से अलग संस्था के रूप में पद स्थापित करके प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन किए हैं! कार्यपालिका में ब्यूरोक्रेसी के लोग एक वर्ग विशेष नहीं आकर अपनी योग्यता एवं प्रतिनिधित्व के आधार पर चुने जा रहे हैं.
देश की सीमाओं की सुरक्षा का दायित्व निभाने के लिए सेनाओं का निर्माण किया गया है और उसमें योग्यता के आधार पर अधिकारियों एवं सैनिकों की भर्ती की जाती है. जिसका परिणाम यह है कि जिस देश के राजाओं की सेनाओं ने विदेशी शासकों से कभी विजय हासिल नहीं की तथा पराजय का पर्याय बन गया था आज देश की सीमाओं की सुरक्षा बेहतरीन तरीके से कर रही है.
यह सब महान संविधान का ही परिणाम है.
संविधान के द्वारा शासन प्रशासन में सहभागिता सुनिश्चित करने का ही नतीजा है कि जिस भारत की पहचान गुलाम देश के रूप में होती थी वह दुनिया के महान देशों की श्रेणी में आ गया है. संविधान के द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण को महत्व देने का ही परिणाम है कि आज भारत दुनिया में वैज्ञानिक उपलब्धियों में नया आयाम स्थापित कर रहा है .
भारत के संविधान की और भी कई विशेषताएं हैं जैसे भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा संविधान है. देश में प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य, धर्मनिरपेक्ष,समाजवादी राज्य की स्थापना की गई है. राज्य के नीति निदेशक तत्वों को स्थान दिया गया है.
स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना की गई है. भारतीय संविधान का ही कमाल है कि आज देश की प्रगति एवं महत्व दुनियाभर में हासिल कर लिया है. संविधान देश एवं समाज को अपनी आवश्यकता के अनुसार अपने में परिवर्तन करने की इजाजत भी देता है. इतने प्रावधान होने के बावजूद व्यवस्था चलाने में दिक्कत आ रही है तो इसमें संविधान को दोष नहीं दे सकते.
बल्कि डॉक्टर बीआर अंबेडकर के शब्दों में “मैं समझता हूं कि संविधान लचीला और बेहतर है इतना शक्तिशाली है कि शांति एवं युद्ध काल में देश को एक सूत्र में बांधे रख सकता है यदि नए संविधान के अधीन चीजें सही ढंग से काम नहीं करती है तो उसका कारण यह नहीं होगा कि हमारे पास खराब संविधान है, हम कहेंगे कि उसे चलाने वाले लोग खराब.
यदि आप स्वयं संविधान का सम्मान करेंगे तो ही दूसरे से ऐसी उम्मीद कर सकते है.अपने से भी सवाल पूछिए कि क्या मैं अपनी बात मनवाने या कहने में संवैधानिक तरीका अपनाता हूं ? क्या मैं किसी भी नागरिक के प्रति भेदभाव तो नही हू ? क्या मै महिलाओं का सम्मान करता हूं? उनके विकास में अपने परिवार में सहयोग करता हूं?
क्या मैं अपने मताधिकार के लिए किसी से अवांछनीय मांग तो नहीं करता हूं? क्या मैं किसी अन्य नागरिक के अधिकारों का उल्लंघन तो नहीं कर रहा हूं? क्या मेरा स्वतंत्रता का अधिकार का उपयोग किसी अन्य नागरिक के अधिकारों का अतिक्रमण तो नहीं कर रहा है ? मैं किसी की आस्था पर हमला तो नहीं कर रहा हूं ? क्या मैं वो कृत्य तो नहीं कर रहा हूं जो मुझे एक नागरिक के रूप में कोई दूसरा करने से पसंद नहीं है? हम संविधान का सम्मान करे. अपने अधिकारों के साथ साथ कर्तव्यों का भी पालन करे.
इतना कहकर अपनी बात समाप्त करता हूं.