रायपुर. भारतीय पंचांग के अनुसार जब सूर्य धनु राशि में संक्रांति करते हैं, तो यह समय शुभ नहीं माना जाता है. इस बार धनु संक्रांति बुधवार 15 दिसंबर 2021 को आ रहा है. कहा जाता है की जब तक सूर्य मकर राशि में संक्रांति नहीं होते तब तक किसी भी प्रकार के शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. पंचांग के अनुसार यह समय सारे पौष मास का होता है, जिसे खरमास कहा जाता है.

इस माह की संक्रांति के दिन गंगा-यमुना स्नान का महत्व माना जाता है. पौष संक्रांति के दिन श्रद्धालु नदी किनारे जाकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं. माना जाता है, कि इस विधि को करने से स्वयं के मन की शुद्धि होती है. बुद्धि और विवेक की प्राप्ति के लिए भी इस दिन सूर्य पूजन किया जाता है. सूर्य किसी विशेष राशि में प्रवेश करता है इसी कारण से इसे संक्रांति के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान को मीठे पकवानों का भोग लगाया जाता है.

धनु संक्रांति के दिन भगवान सत्यनारायण की कथा का पाठ किया जाता है. भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते, फल, सुपारी, पंचामृत, तुलसी, मेवा आदि का भोग तैयार किया जाता है. सत्यनारायण की कथा के बाद देवी लक्ष्मी, महादेव और ब्रह्मा जी की आरती की जाती है और चरणामृत का प्रसाद दिया जाता है. इस दिन के लिए मान्यता है, कि इस दिन को पवित्र माना जाता है. जो लोग इस दिन विधि के साथ पूजन करते हैं उनके सभी संकट दूर होते हैं और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है.

सूर्यदेव 15 दिसंबर की मध्यरात्रि के बाद 03 बजकर 40 मिनट पर केतु के नक्षत्र मूल और बृहस्पति की राशि धनु में प्रवेश करेंगे. जिसके परिणामस्वरूप पौष संक्रांति आरम्भ हो जायेगी और मुंडन, ज्ञोपवीत, शादी-विवाह आदि जैसे मांगलिक कार्यों पर एक माह के लिए विराम लग जाएगा. 14 जनवरी 2022 को दोपहर 02 बजकर 27 मिनट सूर्यदेव के मकर राशि में प्रवेश के साथ ही सूर्य उत्तरायण हो जाएंगे और पुनः सभी तरह के शुभकार्य आरम्भ हो जाएंगे. धनु राशि में गोचर के मध्य सूर्य की शक्ति क्षीण और रश्मियां कमज़ोर पड़ जाती हैं. राशि स्वामी गुरु का तेज भी प्रभावहीन रहता है. स्वभाव में उग्रता आ जाती है, तभी ज्योतिष ग्रन्थों में इस माह को खरमास कहा गया है. सूर्य सभी ग्रहों, राशियों, नक्षत्रों, संवत्सरों, योगों, करणों और मुहूर्तों के अधिपति है और प्राणियों के शरीर की आत्मा एवं जगतात्मा हैं.

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य का बृहस्पति में परिभ्रमण श्रेष्ठ नहीं माना जाता है. क्योंकि बृहस्पति में सूर्य कमज़ोर स्थिति में रहते हैं. वर्ष में दो बार सूर्य बृहस्पति की राशियों में संपर्क में आता है. प्रथम द्रष्टा 16 दिसंबर से 15 जनवरी तथा द्वितीय द्रष्टा 14 मार्च से 13 अप्रैल द्वितीय दृष्टि में सूर्य मीन राशि में रहते हैं. सूर्य की गणना के आधार पर प्रायः इन दोनों माह को धनुर्मास एवं मीन मास कहा जाता है. इन दोनों महीनों में मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है. इस माह के दौरान विवाह, यज्ञोपवीत, कर्ण छेदन, गृह आरंभ, गृह प्रवेश, वास्तु पूजा, कुआं एवं बावड़ी उत्खनन, राजसी कार्य, दिव्य यज्ञ अनुष्ठान जिसमें लक्ष्यचंडी तथा सहस्त्रचंडी यज्ञ के साथ ही वैदिक कर्म त्याग दिए जाते हैं. खास तौर पर मलमास माह में धर्म के प्रति समर्पण भाव से इष्ट की आराधना, वैष्णव और शिव मंदिरों में जाकर सत्संग व कीर्तन का लाभ लें, वस्त्र-भोजन तथा औषधि का दान करना श्रेष्ठ होता है.