शरद पाठक, छिंदवाड़ा। छिंदवाड़ा की माचागोरा डैम (Machagora Dam) में बनने वाले लिफ्ट इरिगेशन सिस्टम का प्रोजेक्ट फिर विवादों में आ गया है । जल संसाधन विभाग (Department of Water Resources) द्वारा पहले से विवादित ठेकेदार को दोबारा दो करोड 88 लाख रुपए का भुगतान कर दिया। जबकि इस ठेकेदार पर इसी प्रोजेक्ट में 12 करोड़ का भुगतान किए जाने पर जांच चल रही है। वहीं संबंधित कार्यपालन यंत्री को निलंबित भी किया जा चुका है।
करीब 118 करोड़ की लागत से बनने वाली पेंच माइक्रो इरिगेशन सिस्टम परियोजना शुरू से ही विवादों से घिरी रही है। पेंच-2 प्रोजेक्ट का टेंडर एचईएस कंपनी को दिया गया था जिसको पाइप लाइन के नाम पर 12 करोड़ का पूर्व में भुगतान कर दिया गया था परंतु शिकायत होने पर जांच की गई तो वहां पर कुल 5 करोड़ के पाइप पाए गए जिनकी क्वालिटी भी मानक के अनुसार नहीं थी । जांच में तथ्य सामने आने के बाद संबंधित कार्यपालन यंत्री महाजन को निलंबित भी कर दिया गया और इसकी जांच उच्च स्तर से कराई जा रही है।
मौजूद सामग्री की कीमत 50 लाख से भी कम
इस सब बावजूद भी अब विभाग के वर्तमान अधिकारियों ने उसी ठेकेदार को दोबारा करीब तीन करोड़ का भुगतान कर दिया जबकि निर्माण स्थल पर मौजूद सामग्री की कीमत 50 लाख से भी कम बताई जा रही है। इसकी पूर्व यह प्रोजेक्ट जल संसाधन विभाग के रेगुलर डिवीजन में था लेकिन वहां के कार्यपालन यंत्री ने इस तरह का भुगतान करने से इंकार कर दिया था। लिहाजा प्रोजेक्ट को दूसरे डिवीजन को ट्रांसफर करके इसका पेमेंट कराया गया है।
प्रोजेक्ट के लिए जमीन का भी नहीं हुआ अधिग्रहण
इसके अतिरिक्त सबसे बड़ा सवाल तो यह उठ रहा है कि जब अभी प्रोजेक्ट के लिए जमीन पर कोई कार्य ही नहीं हुआ, ना ही जमीन का अधिग्रहण हुआ है। ना ही उसके लिए कोई कार्रवाई की गई है तो आखिर यह पाइप किस लिए खरीदे जा रहे हैं। इनका उपयोग भी प्रोजेक्ट में सबसे आखरी में होना है।
प्रोजेक्ट का पहला चरण भी पूरा नहीं और कर दिया से चार गुना अधिक भुगतान
अभी प्रोजेक्ट का पहला चरण ही पूर्ण नहीं हुआ है और जल संसाधन विभाग ने योजना में लगने वाली सामग्री का लागत से चार गुना अधिक भुगतान अभी से किया जा रहा है । बताया जाता है कि सप्लाई किए गए पाइप लोहे एवं प्लास्टिक के हैं और अधिक समय तक रखे रहने पर लोहे में जंग लग जाती है। प्लास्टिक के पाइप धूप में खराब हो जाते हैं।
काम के समय नए पाइप खरीदने का भी प्लान
आशंका यह भी व्यक्त की जा रही है कि जब इन पाइप का वास्तव में उपयोग का समय आएगा तब तक यह पाइप किसी काम के नहीं रहेंगे। क्योंकि इसके पूर्व भी जो 12 करोड़ के पाइप खरीदे गए थे वह अभी भी रामगढ़ के पास तुनवाड़ा और कलकोटी के खुले मैदानों में रखे हुए हैं। और सारे के सारे जंग लगने से खराब हो चुके हैं। अधिकारी भी इस बात को कबूल कर रहे हैं कि वह पुराने पाइप काम में नहीं लिए जाएंगे। नए पाइपों से ही परियोजना को पूर्ण किया जाएगा । ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर करोड़ों रुपए के शासकीय धन की बर्बादी का जवाबदार कौन है।
अधीक्षण यंत्री ने स्वीकार किया विवादित भुगतान
कार्यपालन यंत्री ने बातचीत में स्वीकार भी किया कि पहले के भुगतान के विवादित होने के बावजूद भी अभी नया भुगतान किया गया है। परंतु पिछले भुगतान का क्या होगा इस बात का जवाब देने के लिए भी तैयार नहीं है। साथ ही उनका कहना है कि हमने इस भुगतान के लिए मुख्य अभियंता से अप्रूवल ले लिया है जोकि अपने आप में कई गंभीर सवालों को जन्म देता है। वर्तमान में पदस्थ अधीक्षण यंत्री अनिल सिंह भी गड़बड़ी की बात को स्वीकार करते हैं, परंतु भुगतान के कारण बताने के नाम पर सिर्फ बहानेबाजी ही कर रहे हैं ।
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