फीचर स्टोरी। छत्तीसगढ़ सरकार की नरवा-गरवा, घुरवा-बारी योजना राज्य की ग्रामीण जनता के लिए बहुपयोगी साबित हुई. आज राज्य में हजारों परिवार इस योजना से लाभांवित हैं. सुराजी योजना के तहत संचालित गौठान एक तरह से ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए वरदान साबित हुआ है. गौठानों में गायों को जहाँ सरंक्षण और पोषण मिल रहा है, तो वहीं ग्रामीण महिलाओं को स्वरोजगार भी. हजारों महिलाएं हैं, जो गौठान से जुड़कर राज्य में ग्रामीण उद्योग को स्थापित करने की दिशा में काम कर रही हैं.
भूपेश सरकार ने जितनी भी योजनाएं 3 वर्ष के कार्यकाल में संचालित की है. उन योजनाओं में सुराजी योजना ने गाँवों में एक नया सवेरा..नवा बिहान, नया सूरज लाने का काम किया. इस योजना ने गाँवों की दशा ही बदल दी है. अब तक करीब 6 हजार से अधिक गाँवों में गौठान का निर्माण हो चुका है. जहाँ-जहाँ गौठान संचालित, वहाँ-वहाँ स्व-रोजगार स्थानीय महिलाओं के लिए उपलब्ध हैं. घरेलु ग्रामीण महिलाएं ही एक तरह से गौठानों का संचालन कर रही हैं. इस रिपोर्ट में बात राज्य के ऐसे ही एक सफल गौठान की. गौठान के जरिए स्व-रोजगार से जुड़े 121 परिवारों की.
सफल योजना की ये सफल कहानी है कोरबा जिले के पोड़ी-उपरोड़ा विकासखंड अंतर्गत महोरा गाँव की. यह गाँव अपनी खूबसूरती के लिए तो इलाके में चर्चित तो रहा ही है, लेकिन इन दिनों महोरा की चर्चा राज्य सरकार की अति महत्वकांक्षी योजना नरवा-गरवा, घुरवा-बारी के बेहतरीन कार्यों को लेकर है. चर्चा योजना के तहत इलाके में मिले 121 परिवारों को स्व-रोजगार की भी है.
महोरा भाँवर ग्राम पंचायत का आश्रित गाँव है. इस गाँव में स्थापित गौठान में आठ महिला स्व-सहायता समूह की 13 महिला सदस्य कार्यरत् हैं. गौठान में मुख्य रूप से वर्मी खाद का तो उत्पादन किया ही जा रहा है. इसके साथ ही अण्डा उत्पादन, बकरी पालन, अगरबत्ती निर्माण, दोना-पत्तल निर्माण, मिनी राईस मिल, मछली पालन, मशरूम उत्पादन से लेकर गोबर के दीया, गमला, मूर्तियां, गोबर काष्ठ बनाने जैसी 13 विभिन्न आजीविका गतिविधियां की जा रहीं हैं.
इस आदर्श गौठान से 121 परिवार को जीवन-यापन करने का बड़ा कार्य मिला है. गौठान की वार्षिक आमदनी 7 लाख रुपये रही है. महोरा गांव का गौठान अब रूरल इंडस्ट्रियल पार्क के रूप में संवर रहा है. गौठान के हरेकृष्णा स्वसहायता समूह का हसदेव अमृत ब्राण्ड जैविक खाद गुणवत्ता के लिए पूरे छत्तीसगढ़ में सबसे पहले सीजी सर्ट सोसायटी सर्टिफिकेट प्राप्त करने वाला खाद है. इस खाद का उपयोग वन विभाग द्वारा वृक्षारोपण के लिए और उद्यानिकी विभाग द्वारा फसलों के लिए किया जा रहा है.
समूह की कांति देवी कॅवर कहती है कि यह गौठान आज स्थानी ग्रामीण महिलाओं के लिए स्व-रोजगार का सबसे बड़ा केंद्र बन चुका है. स्थानीय महिलाओं को जिस कार्य में रुचि वह उस हिसाब से काम कर रही है. हमारे गौठान में मुख्य रूप से वर्मी खाद का निर्माण किया जाता है. खाद की 10 रुपये प्रति किलोग्राम है. वर्मी खाद का बाजार अब बहुत बड़ा हो चुका है, लिहाजा इसे बेचकर अच्छी आमदनी हो रही है. कई शासकीय विभाग जिन्हें हम वर्मी खाद उपलब्ध करा रहे हैं.
कांति बताती है कि समूह की ओर से नीम करंज आदि के तेल, अवशेष और अर्क से निमास्त्र, ब्रम्हास्त्र, अग्नेयास्त्र, फिनाइल, गौमूत्र से निर्मित जैविक कीटनाशक जैसे जैविक उत्पाद भी बनाए हैं. जिसका उपयोग खेती किसानी से लेकर घरों तक में किया जा रहा है. पिछले तीन महीनों में 878 क्विंटल खाद बेचकर एक लाख 75 हजार से अधिक रूपए गौठान की महिलाओं ने कमाए हैं.
वहीं गौठान में कार्यरत चरवाहे ने गोधन न्याय योजना के तहत लगभग 50 क्विंटल गोबर बेचकर मिली राशि से बकरी पालन का काम शुरू किया है. इसके साथ ही महोरा गौठान में लगभग साढ़े 300 मुर्गियों वाला एक पोल्ट्री फार्म भी विकसित किया गया है. महिलाओं ने इस पोल्ट्री फार्म से अभी तक साढ़े तीन हजार से अधिक अण्डे बेच दिए हैं. वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए जरूरी स्वस्थ केंचुओं का उत्पादन भी महोरा के गौठान में हो रहा है. केंचुआ उत्पादन कर समूह की महिलाओं ने लगभग 25 हजार रूपए कमाए हैं।
गोधन न्याय योजना के तहत गौठान में गोबर खरीदी की जा रही है. गोबर से गमला, दीया, गोबर काष्ठ आदि बनाने की मशीनें गौठान में ही लगाई गईं हैं. गोबर उत्पादों से महिला समूहों ने लगभग 10 हजार रूपए, दोना-पत्तल और अगरबत्ती बनाकर लगभग 10 हजार रूपए की आय प्राप्त की है.
वहीं महोरा गौठान में कोसा धागाकरण के लिए भी रेलिंग मशीनें स्थापित की गई है. इसका काम पूजा स्वसहायता समूह के जिम्मे हैं. समूह से जुड़ीं महिलाओं ने इससे लगभग 10 हजार रूपए की अतिरिक्त आय अर्जित की है. वहीं वर्मी कम्पोस्ट की पैकेजिंग के लिए भी जरूरी व्यवस्थाएं गौठान में ही उपलब्ध हैं. प्लास्टिक के बोरों पर ब्राण्ड नेम की प्रिंटिंग का काम भी महोरा गौठान में ही होता है. यहां से पूरे जिले में इन प्रिंटेड बोरों को मांग अनुसार भेजा जाता है. बोरा प्रिंटिंग से ही लगभग 20 हजार रूपए की आमदनी समूह को हो जाती है.
महोरा के गौठान में सब्जी की खेती भी की जा रही है. समूह की महिलाएं सब्जी की खेती से भी अच्छी आमदनी प्राप्त कर रही हैं. समूह की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक बीते सीजन में 74 हजार रुपये की कमाई सब्जी बेचकर की गई थी. सब्जी की खेती के साथ-साथ एक मिनी राइस मिल का संचालन भी महिलाएं कर रही हैं.
महोरा का आदर्श गौठान वास्तव में आज कई मायने में आदर्श बन चुका है. यही वजह है कि इस गौठान में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आ चुके हैं. स्वालंबन की नई परिभाषा गढ़ने का महोरा के ग्रामीणों ने, महिलाओं ने किया है. यह गौठान महज एक गौठान न रहकर एक औद्योगिक इकाई रूप ले चुका है. गौठान ने इलाके में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को एक नई मजबूती देने का काम किया है.