नई दिल्ली. वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अपना चौथा बजट पेश कर दिया है. अपने बजट भाषण में वित्तमंत्री ने उपलब्धियां बताईं. उन्होंने कहा कि कि भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी ताकत बनेगी. अर्थव्यवस्था पटरी पर है. हमने गरीबी दूर करने की कोशिश की. इस साल ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर जो़र है. उन्होंने कहा कि आईएमएफ ने हमारी तारीफ की है. उन्होंने कहा कि विदेशी निवेश में बढ़ोत्तरी हुई है. सर्विस सेक्टर में 8 फीसदी दर से विकास हो रहा है. मध्यवर्ग के जीवन में सरकारी दखल कम करने की कोशिश की गई है. उन्होंने कहा कि किसानों को खरीफ की फसल का मूल्य लागत के डेढ़ गुना मिलेगी. हम योजना को इस तरह से बनाने जा रहे हैं कि राज्य सरकार के सहयोग से किसानों को कम से कम समर्थन मूल्य के बराबर कीमत मिले. उन्होंने कहा कि सरकार ये सुनिश्चित करेगी कि किसानों को
अभी बजट भाषण चल रहा है लेकिन चुनौतियां कम नहीं है. इसी साल 8 राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं और अगले साल लोकसभा का चुनाव. लेकिन इन सबसे पहले हाल ही में जो कुछ चुनाव हुए हैं उनके नतीजे यह कहते हैं कि गांवों की जनता मोदी सरकार के कामकाज से बहुत खुश नहीं है. उम्मीद की जा रही है कि मोदी सरकार बजट में कई बड़ी घोषणाएं कर सकती है. इसी के मद्देनजर फोकस ग्रामीण विकास पर है. आर्थिक सर्वे में साल 2018-2019 के लिए जीडीपी की दर 7 से 7.5 फीसदी रखी गई है लेकिन कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें बड़ी मुश्किलें ला सकती हैं. फिलहाल कुछ चुनौतियां ऐसी हैं जिनसे हर हाल में मोदी सरकार को जूझना होगा.
वित्त मंत्री अरुण जेटली को आर्थिक वृद्धि दर को बढ़ाने के लिए कुछ उपाय करने होंगे. वृद्धि दर इस समय चार सालों के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है. इस फाइनेंसिय साल में यह दर 6.75 फीसदी के करीब दर्ज की गई है. आर्थिक सर्वे में साल 2018-19 में7 से 7.5 फीसदी रखने का लक्ष्य रखा गया है.कच्चे तेल की कीमतें जब भी बढ़ी हैं महंगाई साथ में बढ़ती है. जून से इसकी कीमतों में 40 फीसदी का बढ़ोत्तरी हो चुकी है. इसके साथ ही सरकार पर एक्साइज ड्यूटी घटने का भी दबाव बढ़ रहा है, लेकिन अगर ये फैसला किया गया तो सरकार के राजस्व में भारी कमी आ जाएगी. मुख्य आर्थिक सलाहकार का कहना है कि कच्चे तेल की कीमतों में 10 डॉलर की बढ़ोत्तरी आर्थिक वृद्धि दर में .02 फीसदी से 0.3 फीसदी की कमी लाती है.
जीएसटी लागू होने के बाद से दो महीने तक राजस्व संग्रह में भारी कमी आ गई थी. लेकिन दिसंबर में इसमें सुधार हुआ था. लेकिन अभी जुलाई की तुलना में इसमें कमी है. कुछ विशेषज्ञों कहना है कि जीएसटी का आने वाला वक्त में काफी फायदा मिलेगा लेकिन इससे पहले इसकी जटिलताओं को दूर करना होगा. वित्त मंत्रलाय पर इस सम उद्योग जगत की ओर से टैक्स में कटौती करने का दबाव है. साल 2015-16 के बजट में जेटली ने कारपोरेट टैक्स को घटाकर चार साल के लिए 30 से 25 फीसदी कर दिया था. अमेरिका की ओर से कम किए गए टैक्स रेट के बाद से विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को वैश्विक कारोबार के हिसाब से कारपोरेट में कटौती करनी चाहिए. इसके साथ ही नए स्टार्ट अप भी सरकार से टैक्स में कटौती की उम्मीद कर रहे हैं.