रायपुर. रायपुर के सिटी कोतवाली के सामने पीपल के चार सौ साल पुराने वृक्ष को काटने के खिलाफ जब शाम 7 बजे लोग सड़कों पर उतरे तो सबके हाथ में एक मोमबत्ती और आंखों में पीड़ा और आक्रोश के मिश्रित भाव थे. सबने नारेबाज़ी करते हुए पीपल पर मोमबत्ती जलाकर श्रद्धांजलि दी. इसके बाद उसकी जड़ के चारों तरफ खुदी मिट्टी को पाटकर वहां पानी डाला. ताकि उसी पेड़ से नई कोंपलें फूट सके.

इस अनोखे प्रदर्शन में समाज के हर तबके के लोग थे. क्या राजनेता, क्या सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, कलाकार, महिलाएं बच्चे सब इसमें शामिल हुए. लेकिन सब अपनी निजी पहचान को किनारे रख शहर के रहवासी के तौर पर शरीक हुए. लोगों की भीड़ से वहां जाम की स्थिति बन गई लेकिन इससे कोई नागरिक न झल्लाया न परेशान हुआ. बल्कि सब इस अनोखे प्रदर्शन को देखने के लिए वहां रुकते रहे.

जब ये प्रदर्शन हुआ तो शहर अंधेरा में डूब चुका था. लेकिन प्रदर्शनकारी हाथों में रौशनी थामे वहां से गुज़र रहे लोगों को एक रास्ता दिखा रहे थे. वहां मौजूद एक बुजुर्ग ने सबके हाथों में रौशनी को देखकर बड़ी दिलचस्प टिप्पणी की. ये नाउम्मीदगी के शहर में उम्मीदों की शमा जल रही है. अब कोई शहर की आबरु यूं ही नहीं लूट पाएगा. बूढ़े,  बच्चों और महिलाओं की ये गैर राजनीतिक भीड़ बताती है कि अब कुछ ऐसा हुआ तो शहर उठ खड़ा होगा. मेरे शहर ने धड़कना बंद नहीं किया है. क्योंकि शहर के सब लोगों की आंखों का पानी अभी सूखा नहीं है. ऐसा कहकर उस बुर्जुगवार ने भी एक शमा जला दी. उनकी बातें सुनकर वहां मौजूद युवा काफी उत्साहित हो गए.

प्रदर्शनकारियों ने जिला प्रशासन के इस फैसले की मज़म्मत की. सामाजिक कार्यकर्ता कुणाल शुक्ला का कहना है कि इस गड्ढे को पाटकर अब इसमें रोजाना पानी डाला जाएगा ताकि कटे हुए जड़ से फिर से ये पेड़ जीवित हो जाए. प्रशासन ने पेड़ की उम्र तो छीन ली लेकिन इसका जीवन नहीं छीन सकती. सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि इस पेड़ की जड़ को फिर से प्रशासन न हटाए.

प्रदर्शन कर रहे श्रीकुमार मेनन ने कहा कि इसकी जड़ में ही पुनर्जीवित के लक्षण नहीं दिख रहे हैं बल्कि मुर्दाने शहर में भी इस प्रदर्शन से फिर से ज़िंदा होने की कशिश दिख रही है. उचित शर्मा ने कहा कि दुर्भाग्य है कि जिन जनप्रतिनिधियों ने इस पेड़ के नीचे राजनीति सीखी वो इस वृक्षवध पर खामोश अख्तियार किए रहे. खामोशी टूटी तब जब शहर विरोध करने सड़क पर आ गया. युवा नेता योगेश ठाकुर ने कहा कि कटा पेड़ चाहे बस्तर का हो या रायपुर का. आदिवासी को एक सा दर्द होता है. गूंडाधूर जैसे पूर्वजों ने हमें पेड़ बचाने के लिए लड़ना सिखाया है.

इससे पहले दोपहर में पेड़ के पास एक छोटा पौधा लगाकर इसका विरोध किया गया. दरअसल, सड़क को चौड़ा और यातायात को सुगम बनाने के लिए दो दिन पहले शहर के चार सौ साल पुराने पेड़ को जिला प्रशासन की कमेटी ने काट दिया था. इसे लेकर शहर के लोग आक्रोशित हो गए. शहर की आवाम ने इसके खिलाफ आवाज़ उठाई. आवाज़ शहर से चुने हुए कद्दावर मंत्री बृजमोहन अग्रवाल तक पहुंची. उन्होंने जिला प्रशासन के पेड़ काटने के निर्णय पर ऐतराज किया. इसके बाद जिला प्रशासन ने बाकी पेड़ों को ना काटने का निर्णय लिया. प्रशासन की नज़र शहर के सैकड़ों साल पुराने दो दर्जन से ज़्यादा पेड़ों पर थी. आपको बता दें कि प्रशासन द्वारा बेरहमी से काट दिया गया यह पीपल का वृक्ष स्वतंत्रता संग्राम का साक्षी रहा है. आजादी के पूर्व इस विशालकाय पीपल के नीचे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आजादी के लिए प्राणोत्सर्ग करने यहाँ पर प्रण लिया करते थे.