लखनऊ. पुलिस ने एक निजी अस्पताल में छापा मारा और पाया कि मजदूरों को मरीजों के रूप में बंधक बनाकर रखा जा रहा था ताकि अस्पताल मान्यता के लिए भारतीय चिकित्सा परिषद द्वारा किए जाने वाले निरीक्षणों को पारित कर सके. जांच में सामने आया कि एमसी सक्सेना ग्रुप ऑफ कॉलेज के प्रबंध निदेशक डॉ शेखर सक्सेना ने कथित तौर पर मजदूरों को मरीजों के रूप में पेश करने का लालच दिया ताकि निरीक्षण को मंजूरी मिल सके.

डॉक्टर सक्सेना को मजदूरों को बहला-फुसलाकर मरीज के रूप में पेश करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है, जबकि उनको इलाज की जरूरत नहीं थी. पुलिस ने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि संस्थान भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) से मान्यता प्राप्त करने की कोशिश कर रहा था. मानदंडों के अनुसार, एक अस्पताल को इलाज किए गए रोगियों की एक विशिष्ट संख्या को दिखाना होता है, तभी उसे एमसीआई की मान्यता मिलती है.

डॉ सक्सेना पर विभिन्न आरोपों के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिसमें खतरनाक हथियारों से स्वेच्छा से चोट पहुंचाना, गलत तरीके से लोगों को रोकना, जबरन वसूली, बेईमानी और जालसाजी शामिल है. पश्चिम क्षेत्र के डीसीपी सोमेन बरमा ने कहा कि अस्पताल पहुंची पुलिस की एक टीम ने पुष्टि करते हुए कहा कि वहां कुछ मजदूरों का इलाज चल रहा है.

उन्होंने कहा कि हमने तुरंत मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) के नेतृत्व में एक डॉक्टरों की टीम को बुलाया, जिन्होंने पुष्टि की कि मजदूर सभी स्वस्थ हैं और उन्हें इलाज की जरूरत नहीं है. हमने तब डॉ शेखर सक्सेना को गिरफ्तार किया और उनके और अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया. सोमेन बर्मा ने कहा कि अस्पताल के समन्वयकों ने मजदूरों से कहा था कि उन्हें अपने बिस्तरों तक सीमित रहने के लिए प्रति दिन 400-500 रुपए मिलेंगे.