लखनऊ. लखनऊ विश्वविद्यालय (एलयू) जल्द ही अवध संस्कृति (उर्दृ) पर स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम शुरू करने वाला है. लखनऊ विश्वविद्यालय अगले सत्र से ही यह कोर्स शुरू करना चाहता है और इसका सिलेबस जल्द ही फैकल्टी बोर्ड के समक्ष अनुमोदन के लिए पेश किया जाएगा. इस कोर्स के लिए करीब 60 सीटें होंगी.

लखनऊ विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के प्रमुख प्रोफेसर अब्बास रजा नय्यर ने कहा कि यह कोर्स नई शिक्षा नीति के अनुकूल है और यह अवध संस्कृति को प्रतिनिधित्व करने वाले हर पहलू को समर्पित है. उन्होंने कहा, इस पाठ्यक्रम के सिलेबस में कहानी सुनाने की कला किस्सागोई और शायरी लिखने की कला से लेकर दस्तरख्वान पर बैठने की तहजीब और सूफीयाना कलाम लिबास, खाने, भाषा, त्योहार आदि के बारे में समझाना सबकुछ शामिल है. दो पल्ली टोपी, ट्यूनिक यानी अंगरखा, शेरवानी, पुरुषों के पाजामे, महिलाओं के कपड़ों पर भारी कशीदाकारी और अवध के खानपान जैसे बाखरखानी, शीरमाल, कुल्चा, कबाब,बिरयानी और कश्मीरी चाय सब इस कोर्स का हिस्सा होंगे.

प्रोफेसर नय्यर के मुताबिक अवध संस्कृति के बारे में विस्तृत जानकारी देकर लखनऊ विश्वविद्यालय को अवध तहजीब के बारे में सीखने और पढ़ाने का केंद्र बनाना है. उन्होंने कहा कि अवध संस्कृति सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है बल्कि यह विश्व स्तर पर लोकप्रिय है और इस कोर्स के जरिए छात्र लुप्त हो रही किस्सागोई की कला, खाने और लिबास को प्रचलन में लाने के साथ ही इस क्षेत्र में अपना कारोबार शुरू कर सकते हैं.

इससे छात्र शायरी, कविता और किताब लेकर साहित्य के क्षेत्र में अपना योगदान कर सकते हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय में पहले से ही अवध संस्कृति की जानकारी रखने वाले जूनियर और सीनियर रिसर्च फेलो हैं और इनके अलावा प्रोफेसर अस्मत मलीहाबादी और अहमद अब्बास रुदौलवी जैसे अकादमिक व्यक्तियों तथा विशेषज्ञों को भी छात्रों के साथ अपनी जानकारी साझा करने के लिए आमंत्रित किया जाएगा.