कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। शहर के ऐतिहासिक गांधी प्राणी उद्यान (चिडिय़ाघर) ने अपने 100 साल पूरे कर लिए हैं। इतिहास के झरोखों में इसका पहला नाम किंग जॉर्ज जू हुआ करता था। देश के शुरुआती चिडिय़ा घरों में शुमार इस चिडिय़ाघर की नीव केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के पूर्वज और तत्कालीन सिंधिया रियासत के महाराज माधवराव सिंधिया प्रथम ने वर्ष 1902 में रखी थी। उन्होंने अपने महल परिसर में एक छोटे चिडिय़ाघर का निर्माण कराया था। जो उनके राजशाही मित्रों और अतिथियों के लिए ही उपलब्ध हुआ करता था। इतिहास के पन्नों से लेकर वर्तमान की तस्वीर तक के इस सफर की एक रिपोर्ट।
मध्यप्रदेश के ग्वालियर चंबल अंचल से आने वाला यह ग्वालियर का गांधी प्राणी उद्यान है, यूं तो वर्ष 1902 में तत्कालीन सिंधिया रियासत के महाराज माधवराव सिंधिया प्रथम ने अपने महल के एक हिस्से में दुनिया भर के वन्यजीवों को इक_ा कर लघु चिडिय़ाघर तैयार किया था शुरू में इस चिडिय़ाघर का आनंद केवल शाही मेहमान ही उठा पाते थे लेकिन 1921 में लखनऊ में प्रिंस ऑफ वेल्स प्राणी उद्यान बनने के बाद यह चिडिय़ाघर जनता को समर्पित कर दिया गया था। इतिहास में दर्ज जानकारी के आधार पर वर्ष 1922 में जॉर्ज पंचम के ग्वालियर आगमन पर इसे किंग जॉर्ज चिडिय़ाघर का नाम दिया गया। देश में शुरुआती दौर के दौरान कुछ यह चिडिय़ाघर हुआ करते थे।
फैक्ट फाइल
वर्ष 1854 में सबसे पहले कोलकाता में राजा राजेंद्र मलिक बहादुर द्वारा अपने निज निवास मार्बल पैलेस में चिडिय़ाघर का निर्माण कराया था।
वर्ष 1855 में मद्रास जो कि अब चेन्नई है वहां पर प्राणी उद्यान तैयार कराया गया।
1857 में त्रिवेंद्रम में प्राणी उद्यान बना।
1863 में मुंबई में चिडिय़ाघर बना।
वर्ष 1902 में तत्कालीन सिंधिया रियासत के महाराज माधवराव सिंधिया प्रथम ने अपने महल परिसर में भी चिडिय़ाघर का निर्माण कराया।
गौरव परिहार, क्यूरेटर चिडिय़ाघर ग्वालियर ने बताया कि आजादी के बाद ग्वालियर का किंग जॉर्ज चिडिय़ाघर गांधी प्राणी उद्यान के नाम से जाना जाने लगा। वर्तमान में लगभग 12 हेक्टेयर में फैले इस ऐतिहासिक चिडिय़ाघर में 65 प्रजाति के लगभग 550 से अधिक पशु पक्षी हैं। प्रतिवर्ष लगभग ढाई करोड़ से अधिक कि आय अर्जित करने वाला यह चिडिय़ाघर आज सैलानियों की पहली पसंद में शामिल है। हालांकि सैलानियों का कहना है कि यह ऐतिहासिक चिडिय़ाघर है लेकिन समय-समय पर इसमें बदलाव और कुछ कामों की आवश्यकता है जिससे इसकी भव्यता और अधिक बढ़ सकती है।
गौरतलब है कि केंद्रीय चिडिय़ाघर दिल्ली की गाइड लाइन के आधार पर इसके विस्तार की आवश्यकता महसूस की जा रही है। ऐसे में अब इस ऐतिहासिक चिडिय़ाघर को शहर से कुछ दूरी पर गुढा क्षेत्र में बनाए जाने की योजना पर काम किया जा रहा है। जो लगभग 125 हेक्टेयर वन भूमि पर तैयार होगा।
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