फीचर स्टोर. मोर धरती दाई के कोरा…ये ह धान के कटोरा. ‘धान का कटोरा’ भारत में छत्तीसगढ़ की यह पहचान सदियों से रही है. छत्तीसगढ़ राज्य धान का सबसे बड़ा उत्पादक राज्यों में से एक है. यह राज्य कृषि प्रधान राज्य है और यहाँ 70 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर है. आबादी में ज्यादातर किसान धान की ही खेती करते हैं. बस्तर से लेकर सरगुजा तक सैकड़ों किस्म के धान राज्य में किसान उगाते हैं.

धान का कटोरा कहे जाने वाले इस राज्य में अब धान के साथ-साथ अन्य कई तरह के फसलों का उत्पादन भी तेजी से बढ़ रहा है. इस दिशा में बीते तीन वर्षों से राज्य सरकार विभिन्न योजनाओं के साथ किसानों को आगे बढ़ाने का काम कर रही है. 2018 में सत्ता में आने के बाद भूपेश सरकार ने जहाँ धान उत्पादक किसानों को आर्थिक रूप से मजबूती दी, तो वहीं किसानों को अन्य फसलों के उत्पादन के लिए प्रेरित भी किया. इस दिशा में सरकार ने किसानों के लिए एक नई योजना की शुरुआत की और नाम दिया ‘राजीव गांधी किसान न्याय योजना’.

इस योजना में पहले तो सिर्फ धान उत्पादक किसानों को ही शामिल किया गया था, लेकिन बाद में इसमें धान के साथ अन्य फसल जैसे- रागी, कोदो, कुटकी, तिलहन को भी शामिल किया. इसका फायदा यह हुआ कि समर्थन और वाजिब मूल्यों के साथ अब इसकी भी खरीदी राज्य में हो रही है. साथ ही साथ राज्य सरकार की ओर प्रोत्साहन राशि या कहिए आदान सहायता भी दी जा रही है. यही वजह है कि पंजाब के मुख्य फसलों में से एक सरसों का उत्पादन भी अब राज्य में बड़े पैमानों पर होने लगा है. राज्य में लगातार सरसों का रकबा बढ़ते जा रहा है. इस रिपोर्ट में आपको यही बताने जा रहे हैं कि कैसे अब धान के आंगन में सरसों की बालियाँ भी लहलहा रही है.

धान के आंगन में सरसों की बाली. जी हाँ छत्तीसगढ़ जिसे धान का कटोरा कहा जाता है, वहाँ की धरा में सरसों की बालियाँ पूरी शिद्दत के साथ हंसती, मुस्कुराती, इठलाती और लहलाती हुई अब छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में नजर आती है. दायरा अब और भी बढ़ते जा रहा है. कारण, है राज्य सरकार की ओर से सरसों को राजीव गांधी किसान न्याय योजना में शामिल करना. इसके तहत अब सरसों की खेती करने वाले किसानों को प्रति एकड़ 10 हजार रुपये के आदान सहायता राशि दी जा रही है.

आइसे जरा राज्य सरकार की ओर से जारी किए आँकड़ों से समझते हैं कि सरसों का रकबा साल दर साल किस तरह से बढ़ते ही जा रहा है.

चार सालों में चार गुना बढ़ गया सरसों का रकबा

चार सालों में सरसों की खेती का रकबा 41 हजार हेक्टेयर से बढ़कर अब एक लाख 66 हजार हेक्टेयर हो गया है. कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली सरसों की खेती का बढ़ता रकबा कृषि के क्षेत्र में समृद्धि का एक सुखद संकेत है. वर्ष 2017-18 के रबी सीजन में राज्य में 41,430 हेक्टेयर में सरसों की खेती किसानों ने की थी. वर्ष 2021-22 रबी सीजन में राज्य में 1,66,450 हेक्टेयर में सरसों की खेती की जा रही है.

जिलेवार आँकड़ा

सरकार की ओर से जारी किए आँकड़े बताते हैं कि मैदानी इलाकों के साथ-साथ आदिवासी बाहुल्य जिलों में भी सरसों का रकबा बढ़ा है. रायगढ़ जिले में तो अप्रत्याशित 18 गुना तक वृद्धि हुई है. वहीं राजधानी रायपुर में चार गुना तक बढ़ोत्तरी हुई है.

रायगढ़ जिला :- बिलासपुर संभाग के रायगढ़ जिले में चार सालों में सरसों की खेती के रकबे में लगभग 18 गुना की बढ़ोत्तरी हुई है. वर्ष 2017-18 में इस जिले में मात्र 1,290 हेक्टेयर में सरसों की खेती होती थी, जिसका रकबा अब बढ़कर 22,800 हेक्टेयर हो गया है.

सरगुजा संभाग के लगभग सभी जिलों में सरसों की खेती की ओर किसानों का रूझान तेजी से बढ़ा है और रकबे में दो से तीन गुना की वृद्धि हुई है.

बलरामपुर जिला :- बलरामपुर जिले में 8,030 हेक्टेयर सरसों का रकबा बढ़कर अब 27,950 हेक्टेयर हो गया है.

जशपुर जिला :- जशपुर जिले में पहले 3,600 हेक्टेयर में सरसों की खेती होती थी, जो अब बढ़कर 11,950 हेक्टेयर हो गई है.

सूरजपुर जिला :- सूरजपुर जिले में सरसों का रकबा 4,000 हेक्टेयर से बढ़कर 11,000 हेक्टेयर और सरगुजा में 5,500 हेक्टेयर से बढ़कर 12,000 हेक्टेयर पहुंच गया है.

इसी तरह से रायपुर संभाग के जिलों में भी सरसों की खेती करने वालों किसानों की संख्या बढ़ती जा रही है.
रायपुर जिला :- रायपुर जिले में भी सरसों के रकबे में लगभग सवा चार गुना की बढ़ोत्तरी हुई है. वर्ष 2017-18 में रायपुर जिले में मात्र 1,340 हेक्टेयर में सरसों की खेती होती थी, जो अब बढ़कर 5,690 हेक्टेयर हो गई है.

गरियाबंद जिला :- गरियाबंद जिले में सरसों की खेती का रकबा 40 हेक्टेयर से बढ़कर 2940 हेक्टेयर हो गया है। इस जिले में चार सालों में सरसों के रकबे में लगभग 73 गुना से अधिक की वृद्धि हुई है.

दुर्ग संभाग के भी दो प्रमुख जिलों में सरसों की अच्छी खासी खेती हो रही है. इसमें बालोद और बेमेतरा जिला मुख्य रूप से शामिल हैं. इन जिलों में आँकड़ों की जानकारी नहीं मिल पाई है.

आदिवासी बाहुल्य और नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर संभाग के जिलों में सरसों की चमक और दमक अब देखने को मिल रही है. कोंडागाँव, नारायणपुर, बस्तर, बीजापुर जैसे क्षेत्रों में भी किसान अब रबी फसल के तौर पर सरसों की खेती कर रहे हैं.

बस्तर जिला :- बस्तर जिले में सरसों का रकबा 1000 हेक्टेयर से बढ़कर 5,750 हेक्टेयर हो गया है.

कोंडागाँव :- कोण्डागांव जिले में सरसों का रकबा 70 हेक्टेयर से बढ़कर 11,340 हेक्टेयर पहुंच चुका है.

नारायणपुर जिला :- नारायणपुर जिले में 4100 हेक्टेयर में आज सरसों की खेती हो रही है. यह इलाका खेती के लिहाज संपन्न इलाका नहीं है. लेकिन किसानों का हौसला और सरकार की योजना का असर है कि अब सरसों की फसल भी यहाँ जंगलों के बीच आपको दिखाई देगी.

कांकेर जिला :- इसी तरह से उत्तर बस्तर कांकेर जिले के किसान भी धान के साथ सरसों की खेती में तेजी आगे बढ़ रहे हैं. आज कांकेर जिले में 6000 हेक्टेयर में सरसों की खेती होने लगी है.

दरअसल राज्य के सभी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अगर आज सरसों का रकबा बढ़ रहा है और किसान इस ओर रुचि ले रहे हैं, तो इसका बड़ा और प्रभावकारी कारण है राज्य सरकार की विभिन्न योजनाएं. इसमें सबसे महत्वपूर्ण योजना है- ‘राजीव गांधी किसान न्याय योजना’. इस योजना के तहत आज धान के बदले अन्य फसलों की खेती करने वाले किसानों को प्रति एकड़ के मान से 10,000 रूपए की आदान सहायता दी जा रही है. इससे बड़ी संख्या में किसान रबी फसल के लिए सरसोंका अपनाया है. राज्य में बीते वर्ष सरसों की खेती 1,36,000 हेक्टेयर में की गई थी, इस साल इसमें लगभग 30,000 हेक्टेयर की बढ़ोत्तरी हुई है और इसका रकबा बढ़कर 1,66,450 हेक्टेयर हो गया है. राज्य में चालू रबी सीजन में सरसों की बुआई पूर्णता की ओर है.