ठेंगे पर सरकार का आदेश (1)
कुछ तो वजह होगी ही, वरना मजाल है, सरकार के आदेश की नाफरमानी हो जाए. सरकार के तबादला आदेश के बावजूद डंके की चोट पर डटे रहना, साहस का काम है. मालूम नहीं ये अधिकारी इतना साहस कहां से ले आते हैं कि सरकार का आदेश भी ठेंगे पर रखकर चलने लगते हैं. हुआ कुछ यूं कि वन विभाग के हालिया तबादले में उन चार एसडीओ का पत्ता साफ हो गया, जो बड़े डिवीजनों में डीएफओ के चार्ज पर थे. अच्छे अच्छों ने कोशिश कर ली थी, हटाने की, लेकिन डंके की चोट पर काबिज रहे. जब आईएफएस अधिकारियों की शिकायत तेज हुई, तब सरकार को हटाना पड़ गया. बात नियम कायदों की होने लगी थी. बहरहाल था तो चार्ज ही, लेकिन प्रभारी डीएफओ के ओहदे पर बैठे एसडीओ ये बात भूल गए थे. प्रभार छीना गया, तब होश आया. कल तक जहां तूती बोला करती थी, वहां लगाम लगता देख हाथ पांव मारने का सिलसिला शुरू कर दिया. तबादले में भेजे गए आईएफएस जब चार्ज लेने पहुंचे तब एक को छोड़कर किसी ने भी चार्ज नहीं दिया, सो आईएफएस अधिकारियों को एकतरफा चार्ज लेना पड़ा, जबकि तबादला आदेश जारी होते ही 22 तारीख को पीसीसीएफ ने पत्र लिखकर कहा था कि जिन अधिकारियों को बतौर डीएफओ तैनाती मिली है, उन्हें हैंडओवर दे दिया जाए. सरगुजा संभाग के एक डिवीजन का हाल तो यह रहा कि चार्ज देना ना पड़े, इसलिए एसडीओ साहब दफ्तर से ही भाग खड़े हुए और वह भी चेक बुक लेकर. तबादले में वहां पहुंचे साहब अब बैंकों को चिट्ठी लिख रहे हैं कि डिवीजन का चार्ज उनके पास है, लिहाजा पिछले साहब के जारी किए गए चेक खारिज कर दिए जाएं. नए बने एक जिले के एक बड़े डिवीजन में एक साल से भी ज्यादा वक्त तक बतौर डीएफओ मनमानी करने वाले एसडीओ ने भी चार्ज देने में खूब आनाकानी की. उन्होंने तो सीधे मुख्यमंत्री का नाम ले लिया. कहने लगे कि मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में व्यस्त है, चार्ज नहीं दे सकते. नए साहब ने एकतरफा चार्ज लिया. सबसे दिलचस्प किस्सा तो बस्तर संभाग के एक डिवीजन का रहा. एसडीओ से प्रभार छिना गया, तो बुरा मान बैठे. उन्हें लगा था कि कुछ वक्त और मलाई खींच लेंगे, सो तबादला आदेश के खिलाफ कोर्ट चले गए. स्टे भी ले आए, मगर फिर भी चार्ज तो छोड़ना ही पड़ा. कोर्ट ने उन्हें एसडीओ के उनके मूल पद पर तैनाती बरकरार रखने का आदेश दिया. यानी सिर्फ एसडीओ’, ना की प्रभारी डीएफओ….
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थैला लेकर घूम रहे विधायक (2)
सरगुजा संभाग के एक डिवीजन का प्रभार एसडीओ के हाथों बनी रहे, इसलिए सत्ताधारी दल के तेजतर्रार विधायक ने मोर्चा संभाल लिया है. इससे पहले भी जब-जब उनके तबादले की अटकलें चली, विधायक ढाल बनकर खड़े दिखाई देते रहे पर इस दफे उनकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही. चर्चा है कि विधायक महोदय बकायदा थैला लेकर घूम रहे हैं, ये सोचकर कि, जहां अड़चन खड़ी होगी, वहां थैला काम करेगा. विधायक दमखम वाले हैं, सो एसडीओ टकटकी निगाह से उनकी ओर उम्मीद की नजर गढ़ाए बैठे हैं. विधायक की ये मशक्कत ये बयां करने के लिए काफी है कि दोनों में खूब छनती होगी. वैसे इस एसडीओ साहब ने खूब नाम कमाया है. जबरिया रिटायरमेंट के शिकार हो चुके हैं, लेकिन किस्मत बुलंद थी. कोर्ट कचहरी की, नौकरी वापस मिल गई. हालिया तबादले के बाद जब एसडीओ साहब के चेक लेकर भागे जाने की चर्चा सुर्खियों में आई, तब पता चला कि ये उनका पुराना पैंतरा है. इससे पहले भी वह चेक बुक लेकर भाग चुके है. तब उन पर कार्रवाई भी हुई थी. उन्हें बचाने की विधायक की तमाम कोशिशों के बावजूद सुनते हैं कि दाल नहीं गलने वाली. लोग पर्याप्त दलीलें दे रहे हैं. बताते हैं कि अभी हाल ही में जब एक जिले की कलेक्टर से डीएफओ के विवाद का मामला ऊपर तक गया, तो ऊपर वालों ने कलेक्टर के सिर पर हाथ रखा. डीएफओ की किस्मत पर मानो ग्रहण लग लगा. तबादले की नई सूची में उनका नाम होगा, इस बात की उन्होंने उम्मीद कर रखी थी, लेकिन विवाद उन्हें मुख्यालय लेकर जाएगा, इसका भान तक ना था. हालांकि उनके फिक्रमंदों ने खूब कोशिश की कि तबादला हो भी जाए, तो किसी ना किसी डिवीजन का जिम्मा मिले, मगर फाइल जब मुख्यमंत्री की मेज पर गई, तो कोशिशों पर लाल स्याही चल गई. डीएफओ को मुख्यालय भेज दिया गया. किसी ने चूं तक नहीं की. ये संकेत था कि अब किसी की भी मनमानी चलने नहीं दी जाएगी. ऐसे में एसडीओ को प्रभार देने की जद्दोजहद कर रहे विधायक कितना भी पसीना बहा लें. नतीजे में सांठगांठ का नमक ही पसीने के साथ बाहर निकलेगा.
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दर्ज हो सकती है एफआईआर (3)
भगोने में दूध उबलने के बाद उसमें बची खुरचन को भी खुरच-खुरच कर खाने की आदत बचपने से रही होगी, शायद तभी डिवीजनों का प्रभार छिने जाने के बाद भी कुछेक एसडीओ ने जाते-जाते भुगतान संबंधी चेक काट दिए. यह चेक तब काटे गए, जब तबादले में भेजे गए नए अधिकारियों ने एकतरफा चार्ज ले लिया. विभाग में अब कहा जा रहा है कि ये तो हद हो गई, सरकार के आदेश का भी मान नहीं रखा. इधर खबर है कि वन मुख्यालय ऐसे मामलों पर नजरें टेढ़ी किए हुए है. मुख्यालय स्तर पर ये जानकारी जुटाई जा रही है कि किस-किस एसडीओ ने इस युक्ति को अपनाया है कि चार्ज छोड़ने के पहले अपने आप का टाप अप रिचार्ज कर लिया जाए. जानकारी मिलने के बाद मुख्यालय स्तर पर एफआईआर दर्ज कराने के संकेत हैं.
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कलेक्टरों के तबादले का काउंटडाउन !
कई जिलों के कलेक्टरों के तबादले का काउंटडाउन शुरू हो गया है. बताते हैं कि तबादले की तैयारी तेज हो गई है. प्रशासनिक गलियारों में तारीखें ढूंढी जा रही है. हालांकि एक चर्चा यह भी है कि विधानसभा सत्र खत्म होने के ठीक बाद कलेक्टर्स ट्रांसफर लिस्ट जारी की जाएगी. इस दफे के तबादले में आधा दर्जन से ज्यादा जिले होने की अटकलें हैं. बिलासपुर, बस्तर, सरगुजा, रायगढ़, दुर्ग जिले तबादले में आ सकते हैं. संकेत हैं कि इनमें से कुछ बदले जाएंगे और कुछ को इधर से उधर किया जा सकता है. अरसे से स्वास्थ्य महकमे में अहम जिम्मेदारी संभाल रही महिला आईएएस को कलेक्टरी मिल सकती है. वहीं पिछली सरकार से लेकर सरकार बदलने के बाद तक कलेक्टरी कर चुकी एक अन्य महिला आईएएस को फिर से मौका दिया जा सकता है. इधर जिला पंचायत सीईओ में भी अहम बदलाव किए जाने की चर्चा है.
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कर्ज का नया फार्मूला
सरकारों के पास इतना पैसा नहीं होता जितने की योजनाएं चलती है, जाहिर है कर्ज की एक बड़ी हिस्सेदारी योजनाओं को पूरी करने में होती है. मगर कर्ज बेहिसाब हो जाए, तब गड़बड़ तय है. सुना है कि पीडब्ल्यूडी विभाग ने स्थानीय बैंकों से करीब दो हजार करोड़ रूपए का कर्ज लिया है. करीब साढ़े छह-सात फीसदी के ब्याज दर पर ये कर्ज लिया गया है. ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार ने सड़क बनने के नाम पर इससे पहले कर्ज नहीं लिया. कर्ज लिए गए, लेकिन ये कर्ज एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) या नाबार्ड से लिए जाते थे, वह भी महज दो से तीन फीसदी ब्याद दर पर, लेकिन स्थानीय बैंकों से कर्ज लेने का ये फार्मूला नया है. पीडब्ल्यूडी के अधीन एक संस्था के नाम पर यह कर्ज बीस साल के लिए लिया गया है. सालाना करीब दो सौ करोड़ रुपए का ब्याज पटाना होगा.
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जिला पंचायतों में सैलरी नहीं !
तूल-ए-फिहरिस्त-ए-हाजात (इच्छाओं की सूची) कुछ रहम कर, मेरी मुश्किल समझ, मेरी तनख्वाह देख.
उर्दू शायर अशफाक रहबर का लिखी यह शायरी जिला पंचायतों में ,सैलरी नहीं मिलने पर एक अधिकारी ने सुनाई. ये बताते हुए कि जनवरी की सैलरी पंचायतों को फरवरी खत्म होते-होते भी नहीं मिली. राज्य बनने के बाद ऐसे हालात पहली बार सामने आए कि सैलरी मिलने में देरी हुई. बताते हैं कि इससे पहले स्थानीय स्तर पर दूसरे मदों से सैलरी दे दी जाती थी. बाद में समायोजित कर लिया जाता था, लेकिन जब से पंचायत स्तर की खरीदी के लिए आवंटित मद का इस्तेमाल भी सेंट्रलाइज्ड कर दिया गया. हालात बिगड़ गए. एक सीनियर ब्यूरोक्रेट ने बताया कि बजट अलॉटमेंट नहीं हो पाया. सेंट्रल से मिलने वाला फंड भी अटका है और विभाग पर लायबिलिटी भी ढेरों है, जाहिर है इन सबकी वजह से देरी हुई और सैलरी वक्त पर पंचायतों में बांटी नहीं जा सकी. यकीनन सरकार के लिए भी यह चिंता की बात होगी ही…
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कन्फ्यूजन तो नहीं
यूपी की चुनावी रैलियों में राहुल गांधी अपने भाषण को लेकर खूब ट्रोल हो रहे हैं. उन्होंने अपने भाषण में कहा कि छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में खेतों के नजदीक ही फूड प्रोसेसिंग की फैक्ट्रियां लग गई है. जहां चावल की खेती है, वहां चावल प्रोसेस करने की फैक्ट्ररी, जहां टमाटर है, वहां केचअप की फैक्ट्री. खेत से टमाटर तोड़ों और सीधे केचअप फैक्ट्री ले जाओ. जेब में पैसा लेकर आओ. अब उन्हें ये किसने बता दिए, ये वहीं जाने. हालांकि ऐसा नहीं है कि यह सरकार के एजेंडे में नहीं है, फूड प्रोसेसिंग यूनिट खोले जाने का जिक्र कांग्रेस ने बकायदा अपने घोषणा पत्र में किया हुआ है, तैयारियां भी चल ही रही होंगी. रही बात भाषण में दिए गए ब्यौरे की तो यकीनन ये राहुल की नहीं, उन्हें ब्रीफ करने वालों की चूक रही होगी. एक सीनियर कांग्रेसी नेता ने कहा, दरअसल ब्रीफ्रिंग इंग्लिश में हुई होगी, इसलिए कन्फ्यूजन हो गया होगा.
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