वरिष्ठ पत्रकार भास्कर मिश्रा की रिपोर्ट
बिलासपुर। पत्रकारिता का पहला धर्म है, कि लिखने के पहले तथ्य तक पहुँचे। लेकिन पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी के साथ लिखने से पहले ऐसा कुछ नहीं किया गया। सुनकर और तथ्यहीन तर्को के सहारे कुछ इस तरह की स्टोरी गढ़ दी गयी कि लोग झूठ को सच मानने को मजबूर हो गए। जिन दस्तावेजों को अाधार मानकर स्टोरी लिखी गयी दरअसल लिखने वालों ने दस्तावेजों को ठीक से पढ़ना तो दूर देखा भी नहीं। यदि दस्तावेजों को ठीक से पढ़ा गया होता तो, शायद पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी की स्टोरी निश्चित रूप से ऐसी नहीं होती । कम से कम श्यामलाल चतुर्वेदी पर कीचड़ उछालने का साहस कोई नहीं करता। दरअसल पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी सुनियोजित साजिश के शिकार हुए हैं। लिखने के पहले दस्तावेज को न तो ठीक से पढ़ा गया और न ही किसी ने तथ्यों को समझने की कोशिश ही की। अरूण कुमार कश्यप के जिन दस्तावेजों का हवाला देकर पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी पर कीचड़ उछाला गया उसमेें चेयरमैन और सचिव पर तो आरोप है, लेकिन श्यामलाल चतुर्वेदी का जिक्र प्रशासन समिति के केवल सदस्य के रूप में है। सभी लोग जानते हैं कि प्रशासन समिति के सदस्यों की स्थिति क्या होती है। सबको मालूम है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है। दस्तावेज में अरूण कश्यप ने भी माना है कि श्यामलाल चतुर्वेदी न तो गृहनिर्माण समिति के सदस्य थे और और न लाभ लेने वालों की लाइन में खड़े थे। ऐसी सूरत में श्यमालाल चतुर्वेदी पर घोटाला का आरोप लगाना और लिखना किसी गहरी साजिश की तरफ इशारा करता है। जबकि सबको मालूम है कि पद्मश्री श्यामलाल के खिलाफ किसी भी थाने में जमीन घोटाले को लेकर प्रकरण ही दर्ज ही नहीं है।
सूत न कपास …जुलाहों में लठ्ठम लठ्ठ
कहावत है कि सूत ना कपास..जुलाहों में लठ्ठम में लठ्ठ….। पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी के साथ भी ऐसा ही हुआ। मामला कुछ नहीं…रू रू हो गयी। बिना तथ्य तक पहुंचे पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी को ना केवल अपराधी ठहराया गया, बल्कि धाराएं भी थोप दी गयीं। यह जानते हुए भी कि जमीन मामले में पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी का दूर-दूर तक का रिश्ता नहीं है। किसी भी थाने में मामला दर्ज भी नहीं है। केवल एक आवेदन के आधार पर जिसमें श्यामलाल चतुर्वेदी पर सीधे-सीधे कोई भी आरोप भी नहीं है। उसे ही आधार बनाकर लिखा गया कि श्यामलाल चतुर्वेदी के खिलाफ थाने में अपराध दर्ज है। जबकि हमारे पास जो दस्तावेज है उनके अनुसार पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी के खिलाफ किसी भी थाने में प्रकरण ही दर्ज ही नहीं है। खासतौर पर जिन घोटालों को लेकर लिखा-पढ़ा और आरोप लगाया जा रहा है।
सुत्रों से मिली जानकारी और दस्तावेजों के अनुसार अरूण कश्यप ने कबूल किया है कि डीपी विप्र गृह निर्माण समिति में श्यामलाल चतु्र्वेदी का नाम नहीं है। प्रशासन समिति के सदस्य जरूर हैं। अरूण कश्यप ने यह भी माना है कि प्लाट के लिए व्यक्तिगत रूप से प्रशासन समिति के चेयरमैन और सचिव को रूपए दिये है। पैसा देने का निर्णय डीपी विप्र के उन सभी लोगों ने निर्णय लिया था जिन्हें प्लाट लेना था। तात्कालीन समय गृह निर्माण समिति का पंजीयन नहीं हुआ था। रामनारायण प्रशासकीय समिति के चेयरमैन थे। कॉलेज स्टाप ने फैसला किया था कि पंजीयन होने के बाद समिति के अध्यक्ष,सचिव रामनारायण शुक्ल और उमाशंकर शुक्ल ही होंगे।
प्रकरण दर्ज की मांग..लेकिन हुआ नहीं
यह सच है कि अरूण कश्यप ने सीजेएम कोर्ट में 11 नवम्बर 2005 को वकील के माध्यम से प्रशासन समिति चेयरमेन, सचिव समेत 11 लोगों के खिलाफ धारा 419,420,406,409,477,34 के तहत अपराध दर्ज करने की मांग की है। लेकिन यह भी सच है कि प्रकरण को लेकर किसी भी थाने में किसी के भी खिलाफ प्रकरण दर्ज नहीं किया गया। फिर भी अरूण के निवेदन को कोर्ट का आदेश मानकर बिना आधार के धुआंधार लिखा गया। पद्मश्री मिलते ही लिखने वालों ने श्यामलाल चतुर्र्वेदी को आरोपी बना दिया। यह जानते हुए भी कि प्रशानिक समिति में अन्य 11 सदस्य भी हैं। फिर भी उन्हें निशाने से दूर रखा गया। आखिर क्यों..? निश्चित रूप से यह शोध का विषय है।
कौन है अरूण कश्यप ?
अरूण कुमार कश्यप डीपी विप्र महाविद्यालय में क्लर्क के पद पर नियुक्त था। बाद में प्रबंधन ने वित्तीय गड़बड़ियों के आरोप में उसे बर्खास्त कर दिया। अरूण का दावा है कि 2400 वर्गफिट जमीन के लिए प्रशासकीय समिति के चैयरमैन रामनारायण शुक्ल को पहली किश्त 30 हजार रूपए दिए थे। फिर भी जमीन नहीं दिया गया। अरूण के परिवाद अनुरोध पत्र के अनुसार पैसे का हिसाब-किताब गृह निर्माण समिति के जन्म से पहले प्रशासनिक समिति के चेयरमैन और सचिव करते थेे। क्योंकि स्टाफ ही ने ऐसा फैसला किया था।
कम से कम हमने दस्तावेजों में यही पाया है। लेकिन पद्मश्री मिलते ही बिना सोचे समझे श्यामलाल चतुर्वेदी कुछ लोग टूट पड़े। और देखते ही देखते उन्हेंं विवादों के केन्द्र में स्थापित कर दिया गया। सुनियोजित तरीके से अरूण कश्यप के आरोपों को तोड़ मरोड़कर कुछ इस अंदाज में सामने लाया गया कि लोगों ने आगे पीछे बिना सोचे-समझे लिखना पढ़ना शुरू कर दिया। जाहिर सी बात है कि इससे किसी ना किसी के दिल को जरूर राहत मिली होगी। यह जानते हुए भी कि श्यामलाल चतुर्वेदी प्रशासनिक समिति के सदस्य थे, गृहनिर्माण समिति के नहीं।
प्रशासन समिति के सदस्य थे…गृहनिर्माण के नहींं
दस्तावेजों के अनुसार जमीन मामले का निराकरण गृहनिर्माण समिति को ही करना है। जबकि श्यायलाल चतुर्वेदी गृह निर्माण समिति के सदस्य थे ही नहीं, जो तकनिकी रूप से सही भी है। जब श्यामलाल चतुर्वेदी समिति के सदस्य नहीं थे तो जमीन मामले में उनका नाम घसीटना कहाँ तक तर्क संगत है। जबकि गृह निर्माण समिति में रामनारायण शुक्ल और उमाशंकर शुक्ल समेत कुल 21 सदस्य है। इसमें श्यामलाल चतुर्वेदी का नाम दूर-दूर तक नहीं है। बावजूद इसके उन्हेंं जमीन घोटाला में घसीटना किसी गहरी साजिश को संकेत देते हैं। साजिश को इत्मीनान से बुना गया है। निश्चित रूप से साजिश में मिली सफलता से साजिशकर्ता के दिल को ठंडक मिली हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। क्योंकि उसने शायद इसलिए ही तो साजिश का ताना बाना बुना था।
क्रमशः पढेंं पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी के खिलाफ साजिश की दूसरी कड़ी
सीजी वाल से साभार