रायपुर. दुर्योग या दरिद्र योग को वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली मे बनने वाले योगों में से सबसे अशुभ माना जाता है. इस योग के बन जाने से जातक के व्यवसाय और आर्थिक समृद्धि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. किसी कुंडली में दसवें घर का स्वामी ग्रह कुंडली के 6, 8 अथवा 12वें घर में स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में दुर्योग बनता है, जो जातक के व्यवसाय पर बहुत अशुभ प्रभाव डाल सकता है.

दुर्योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातकों की आर्थिक स्थिति जीवन भर खराब ही रहती है और ऐसे जातकों को भारी शारीरिक परिश्रम वाले कार्य करके ही जीवन निर्वाह करना पड़ता है. ऐसे योग वाला जातक सुख हीन, बुद्धि हीन होने के साथ ही जीवन भर दुःख, अभाव, व्याधि युक्त जीवन जीता है.

इसके अलावा यदि लग्न स्वामी पापी ग्रह के साथ हो, अस्त हो या नीच हो और गुरु शुक्र अस्त हो तो दुरयोग होता है. चतुर्थेश अस्त हो अथवा नीचस्थ हो तो जातक सम्पत्ति हीन होता है. षष्ठेष धन भाव में, धन स्वामी छटे भाव में हो तो धन हीनता बनी रहती है. वहीं दुर्योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक अनैतिक और अवैध कार्यों के माध्यम से धन कमाते हैं, जिसके कारण इन जातकों का समाज में कोई सम्मान नहीं होता है और ऐसे जातक अपने लाभ के लिए दूसरों को चोट पहुंचाने में बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाते.

दुर्योग बनने वाले जातक को कष्ट से बचने के लिए निम्न उपाय करना चाहिए –

  • शिव और लक्ष्मी की स्तुति इसमें विशेष तौर पर फायदेमंद होती है.
  • महामृत्युंजय मंत्र का जाप प्रतिदिन 108 बार अवश्य करें.
  • सोमवार के दिन शिवलिंग पर गाय का कच्चा दूध चढ़ाएं.
  • सिद्ध कुंजिकास्तोत्रम का प्रतिदिन 11 बार तेज स्वर में पाठ करें.
  • रोजाना शिव और पार्वती की पूजा-उपासना करें.
  • घर में दक्षिणावर्ती शंख स्थापित करें, इसके सम्मुख प्रतिदिन श्रीसूक्त का पाठ करें.
  • दक्षिणावर्ती शंख के जल से मां लक्ष्मी की मूर्ति को स्नान कराएं.
  • चांदी के श्रीयंत्र में मोती जड़वा कर उसकी पूजा करें.
  • रूद्राक्ष की माला से शिवपंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जप करने से दुर्योग के अशुभ फल कम होते हैं.