विधानसभा की कार्यवाही में ‘मुख्यमंत्री प्रश्नकाल’ की परंपरा को खत्म करने पर विचार चल रहा है. मुख्यमंत्री प्रश्नकाल के दौरान विधायकों के पास सीधे मुख्यमंत्री से सरकार के पॉलिसी मैटर्स पर सवाल पूछने का मौका होता है. लेकिन विधानसभा के संचालन को लेकर नियमावली बनाने वाली समिति ने इस व्यवस्था को समाप्त करने की सिफारिश की है. इसपर पक्ष-विपक्ष के कई विधायकों ने गहरा एतराज जाहिर किया है.
झारखंड विधानसभा की नियम समिति की अध्यक्ष स्पीकर रबींद्रनाथ महतो हैं. समिति ने कई राज्यों की विधानसभा कार्यवाही से जुड़े नियमों का अध्ययन किया और इसके बाद समिति की बैठकों में इसपर चर्चा हुई. समिति के सदस्य विधायक दीपक बिरुआ ने बीते मंगलवार को सदन में समिति की अनुशंसा पेश की. इसमें कहा गया है कि जब विधानसभा सत्र में कार्यवाही के दौरान सीएम सदन में उपस्थित रहते ही हैं, तो अलग से मुख्यमंत्री प्रश्नकाल का कोई औचित्य नहीं है.
समिति ने विभिन्न राज्यों में विधानसभा नियमावली देखी है. ऐसे कई राज्य हैं, जहां मुख्यमंत्री प्रश्नकाल जैसी व्यवस्था नहीं है. यह पाया गया है कि मुख्यमंत्री प्रश्नकाल के दौरान नीतिगत मसलों पर विधायकों के पास प्रश्न भी बहुत कम होते हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री प्रश्नकाल के लिए प्रत्येक सोमवार को अपराह्न् 12 से साढ़े 12 बजे तक आधे घंटे का जो समय निर्धारित है, उसका उपयोग अन्य विधायी कार्यों के लिए किया जा सकता है. स्पीकर ने नियम समिति की इस सिफारिश पर आगामी 14 तक विधायकों से संशोधन मांगा है.
पक्ष-विपक्ष के कई विधायक मुख्यमंत्री प्रश्नकाल की परंपरा को खत्म करने की सिफारिश का विरोध कर रहे हैं. कांग्रेस विधायक बंधु तिर्की, ममता देवी, अनूप सिंह और पूर्णिमा नीरज सिंह का कहना है कि यह विधायकों के लोकतांत्रिक और विधायी अधिकार को सिमित करने का प्रयास है. भाजपा विधायक मनीष जायसवाल, राज सिन्हा, अपर्णा सेन गुप्ता, नीरा यादव और शशिभूषण प्रसाद मेहता ने कहा है कि झारखंड विधानसभा में प्रारंभ से यह परंपरा रही है.
मुख्यमंत्री से नीतिगत मसलों पर सवाल पूछने का यह अवसर अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसे समाप्त करने का औचित्य समझ में नहीं आता. सीपीआई एमएल विधायक विनोद सिंह ने भी कहा कि यह सिफारिश लोकतंत्र की मूल भावना के विपरीत है.
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