हेमंत शर्मा,इंदौर। पूर्व लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इंदौर का जन्म दिवस मनाने के लिए पत्र लिखा है. इंदौर का जन्म दिवस 20 जनवरी को मनाए जाने का सुझाव दिया है. इंदौर का जन्म दिवस 31 मई को मनाए जाने को लेकर अटकलें चल रही थी. इंदौर का जन्म दिवस मनाने के लिए कमेटी बनाई गई है, जिसकी चेयरमैन लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन है.

सुमिश्रा महाजन ने पत्र में लिखा है कि पेशवा ने सन 1734 परगनो की नई सनद 20 जनवरी को लिखी थी. सनद में खासगी जागीर सूबेदार मल्हारराव होल्कर की पत्नी गौतम भाई के नाम कर दी थी. पत्र में लिखा यह वह ऐतिहासिक दिन है, जब इंदौर मुगलिया सुल्तान के आधिपत्य से मुक्त होकर होलकरो के पास आ गया था. सुमित्रा महाजन ने कहा कि इस दिन का इंदौर के लिए वैसा ही महत्व है, जैसा इस देश के लिए 15 अगस्त 1947 का है.

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सुमिश्रा महाजन ने पत्र में लिखा है कि प्रत्येक जिले या शहर के गौरव दिवस को मनाने के लिए आपकी सद्भावना और संकल्प के अनुरूप इंदौर में एक सभा का भी आयोजन किया गया. चूंकि इंदौर को मातोश्री अहिल्याबाई के नाम से जाना जाता है, इसलिए अहिल्याबाई को गौरव दिवस के रूप में संदर्भित करना उचित होगा, इस दृष्टि से निर्णय लेने का निर्णय लिया गया.

मैंने शहर के वरिष्ठ इतिहासकारों सुधिजन से परामर्श किया और इस संबंध में उनकी राय समझी. इतिहास इस बात को दर्शाता है कि लगभग 300 साल पहले जब सूबेदार मल्हारराव होल्कर ने महिलाओं की शिक्षा और समानता के बारे में सोचा भी नहीं था, तब उनकी बहू अहिल्याबाई ने अपने बेटे खंडेराव जी के साथ मिलकर पूरी शिक्षा की शुरुआत की थी. अहिल्याबाई ने अपने ससुर मल्हारराव के कुशल मार्गदर्शन में अपनी कुशल बुद्धि, लेखन और यहां तक ​​कि मार्शल आर्ट में प्रशिक्षण के साथ प्रशासनिक दक्षता भी प्राप्त की.

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भारत को मुगल-निजाम जैसे बाहरी आक्रमणकारियों से मुक्त करने और लोगों को शोषण और अत्याचार से मुक्त करने के लिए, छत्रपति शिवाजी महाराज ने वीरता दिखाई और दक्कन में हिंदवी स्वराज्य की स्थापना उसी तरह मालवा और आसपास के क्षेत्रों में पेशवा के नेतृत्व में की. होल्कर, शिंदे और पंवार ने मुगल सत्ता और व्यवस्था के खिलाफ बिगुल फूंका. 1728 ई. में तिरला (अमझेरा) में सूबेदार मल्हारराव होल्कर और पंवारों के नेतृत्व में लड़े गए निर्णायक युद्ध में मुगल व्यवस्था की पराजय हुई और साथ ही नियमित चौथ वसूलने का अधिकार और सरदेशमुखी को मालवा में मराठों को भी मिला.

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