रायपुर. एडसमेटा में कथित नक्सल-सुरक्षाबलों की मुठभेड़ की थ्योरी को ख़ारिज करते हुए न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट में बताया गया है कि गोलीबारी में मारे गए लोग नक्सली नहीं, ग्रामीण थे. सुरक्षाबलों ने उन्हें नक्सली समझ लिया और घबराहट में गोली चलाई. बीजापुर के जगरगुण्डा थाने के ग्राम एडसमेटा में 17-18 मई 2013 की दरमियानी रात में मुठभेड़ हुई थी. इस मुठभेड़ में 4 बच्चों समेत 8 लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद से इस मुठभेड़ पर सवाल खड़े हो रहे थे. तत्कालीन सरकार ने जस्टिस वी के अग्रवाल की एकल सदस्यीय न्यायिक जाँच कमेटी का गठन किया था. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कमेटी की रिपोर्ट आज विधानसभा में पेश की है.

 सुरक्षा बल पर ये आरोप लगे कि जिन लोगों को सुरक्षा बल नक्सली बता रही है वह दरअसल निर्दोश ग्रामीण है. जिसके बाद इसकी न्यायिक जांच के आदेश दिए गए थे. गंभीर आरोपों को देखते हुए इस कथित मुठभेड़ की न्यायिक जांच जस्टिस वी.के.अग्रवाल कमेटी को सौंपी गई. आज विधानसभा में कमेटी द्वारा सौंपी गई न्यायिक जांच रिपोर्ट सदन में पेश की गई, जिसमें कमेटी ने ये माना है कि इसे टाला जा सकता था.

रिपोर्ट में कहा गया- घबराहट में चला दी गई गोली

मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस वी.के. अग्रवाल की रिपोर्ट में कहा गया है कि जांच करने के बाद उन्होंने पाया कि सुरक्षाकर्मियों ने घबराहट में गोलियां चलाई होंगी. रिपोर्ट में इस घटना को तीन से अधिक बार गलती बताते हुए जस्टिस अग्रवाल ने कहा कि मारे गए आदिवासी निहत्थे थे और वहां 44 राउंड चली गोलियों में ग्रामीण मारे गए.

 इस न्यायीय जांच रिपोर्ट के 98 नंबर के प्वाईंट में उक्त घबराहट का जिक्र किया गया है.  इसी प्वाईंट में ये भी बताया गया है कि केवल मृतक देव प्रकाश (पुलिस जवान) ने ही स्वयं सुरक्षा बलों द्वारा चलाई गई 44 गोलियों में से 18 गोलियां चलाई थी. इस प्रकार यह स्पष्ट है कि मारी गोलाबारी सुरक्षा बलों के पक्ष द्वारा की गई जमाव के सदस्यों द्वारा नहीं.

 रिपोर्ट के मुताबिक अतः यह प्रतीत होता है कि एडसमेटा पहुंचते समय सुरक्षा बलों के सदस्यों को आग के इर्द-गिर्द एकत्रित लोगों को देखकर संदेह हुआ तथा उन्होंने वहां जमा सदस्यों को संभवतः नक्सली मान लिया तथा घबराहट में गोलियां चलानी शुरू कर दी. जिसके परिणामस्वरूप उपरोक्त जनहानि हुई. रिपोर्ट के मुताबिक इस पर गौर किया जा सकता है कि किसी भी संतोषजनक सामग्री द्वारा किसी भी मृत या घायल व्यक्ति का नक्सली संगठन का सदस्य होना स्थापित नहीं हुआ है.