रायपुर. होलिका दहन, होली त्यौहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि आदि नामों से भी जाना जाता है. होली बुराई पर अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में मनाई जाती है.

कब करें पूजन

प्रदोषकाल में होलिका दहन शास्त्रसम्मत है तभी पूजन करना चाहिए. प्राय: महिलाएं पूजन कर ही भोजन ग्रहण करती हैं. इस बार भद्राकाल के कारण होलिका दहन के शुभ समय को लेकर लोग संशय में हैं, वहीं प्रतिपदा तिथि को लेकर होली की तारीख में भी उलझन में हैं. अगर आप भी इसी उलझन में हैं तो जान लें कि कब मनाई जाएगी होली और क्या है होलिका दहन का शुभ समय.

इस बार पूर्णिमा तिथि 2 दिन पड़ रही है, साथ ही पूर्णिमा तिथि पर भद्राकाल होने के कारण लोगों में होली और होलिका दहन को लेकर संशय की स्थिति है. हिंदू धर्म ग्रन्थों के अनुसार, होलिका दहन पूर्णिमा तिथि में सूर्यास्त के बाद करना चाहिए. लेकिन यदि इस बीच भद्राकाल हो, तो भद्राकाल में होलिका दहन नहीं करना चाहिए. इसके लिए भद्राकाल के समाप्त होने का इंतजार करना चाहिए. होलिका दहन के लिए भद्रामुक्त पूर्णिमा तिथि का होना बहुत जरूरी है. हिंदू शास्त्रों में भद्राकाल को अशुभ माना गया है. ऐसी मान्यता है कि भद्राकाल में किया गया कोई भी काम सफल नहीं होता और उसके अशुभ परिणाम मिलते हैं.

ज्योतिष के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 17 मार्च 2022 को दोपहर 01:29 बजे से शुरू होकर 18 मार्च दोपहर 12:52 मिनट तक रहेगी. जबकि 17 मार्च को ही 01:20 बजे से भद्राकाल शुरू हो जाएगा और देर रात 12:57 बजे तक रहेगा. ऐसे में भद्राकाल होने के कारण शाम के समय होलिका दहन नहीं किया जा सकेगा. चूंकि होलिका दहन के लिए रात का समय उपर्युक्त माना गया है, ऐसे में 12:57 बजे भद्राकाल समाप्त होने के बाद होलिका दहन संभव हो सकेगा.

पूजन सामग्री – रोली, कच्चा सूत, पुष्प, हल्दी की गांठें, खड़ी मूंग, बताशे, मिष्ठान्न, नारियल, बड़बुले(गोबर के विशेष खिलौने) आदि.

होलिका दहन पूजा विधि

  • होलिका दहन से पहले पूजा की जाती है.
  • इस दौरान होलिका के पास जाकर पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करके बैठकर पूजा करनी चाहिए.
  • कच्चे सूत को होलिका के चारों और तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना होता है.
  • शुद्ध जल व अन्य पूजन सामग्रियों को एक-एक कर होलिका को समर्पित किया जाता है.
  • पूजन के बाद जल से अर्ध्य दिया जाता है.
  • एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि.
  • नई फसल के अंश जैसे पके चने और गेंहूं की बालियां भी शामिल की जाती हैं.
  • यथाशक्ति संकल्प लेकर गोत्र-नामादि का उच्चारण कर पूजा करें.
  • सबसे पहले गणेश व गौरी इत्यादि का पूजन करें. ‘ॐ होलिकायै नम:’ से होली का पूजन कर, ‘ॐ प्रहलादाय नम:’ से प्रहलाद का पूजन करें. पश्चात ‘ॐ नृसिंहाय नम:’ से भगवान नृसिंह का पूजन करें, तत्पश्चात अपनी समस्त मनोकामनाएं कहें व गलतियों के लिए क्षमा मांगें. कच्चा सूत होलिका पर चारों तरफ लपेटकर 3 परिक्रमा कर लें.
  • अंत में लोटे का जल चढ़ाकर कहें- ‘ॐ ब्रह्मार्पणमस्तु.’
  • होली की भस्म का बड़ा महत्व है. इसे चांदी की डिब्बी में भरकर घर में रखा जाता है. इसे लगाने से प्रेतबाधा, नजर लगने आदि के लिए उपयोग में लिया जाता है.

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त

भद्रा प्रचलित हो तो भद्रा के समाप्त होने की प्रतीक्षा की जाती है और उसके पश्चात होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन बृहस्पतिवार, मार्च 17, 2022 को मध्य रात्रि के बाद – 01:12 सुबह से 06:28 सुबह, मार्च 18. अवधि – 05 घण्टे 16 मिनट. रंगवाली होली शुक्रवार, मार्च 18, 2022 को पूर्णिमा तिथि प्रारंभ – मार्च 17, 2022 को दोपहर 01:29 बजे. पूर्णिमा तिथि समाप्त – मार्च 18, 2022 को 12:48 शाम बजे.