Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

मंत्रीमंडल में बदलाव !

खबर आ रही है कि भूपेश सरकार में हलचल तेज हो गई है. ये हलचल बदलाव की है. संकेत है कि भूपेश मंत्रिमंडल से कई अहम चेहरे बदल दिए जाएंगे. ये बदलाव खैरागढ़ चुनाव के नतीजे आने के बाद कभी भी किया जा सकता है. हालांकि ऐसा नहीं है कि मंत्रिमंडल में बदलाव की खबर पहली दफे सुनाई पड़ी हो. सीएम भूपेश बघेल ने पहले भी अपने बयान में ये कहा है कि ”हाईकमान चाहेगा तो बदलाव होगा”. प्रदेश प्रभारी पुनिया ने भी कहा था कि ”कोई मंत्री ये ना समझे की वह पूरे पांच साल के लिए है. कई सीनियर विधायक भी हैं. समीक्षा होती रहेगी. जरूरत पड़ने पर बदल दिया जाएगा”. सुनते हैं कि इस दफे बदलाव की ये आहट बेहद गंभीर है. करीब पांच मंत्रियों को बदले जाने की सुगबुगाहट है. अब सवाल सौ टके का ये है कि इस बदलाव में बलि किसकी चढ़ेगी? अब तक की चर्चा में ये सुना गया है कि दो आदिवासी, एक एससी, एक युवा, एक महिला और एक सामान्य कोटे से मंत्री बदले जा सकते हैं. उधर मंत्रिमंडल में एंट्री पाने वालों की चर्चा की जाए तो संगठन में बड़ा ओहदा संभाल रहे विधायक को शामिल किया जा सकता है. साथ ही एक महिला आदिवासी विधायक की भी आमद हो सकती है. बदलाव की इस कश्मकश के बीच विधानसभा अध्यक्ष को लेकर यदि कुछ सुनने को मिले तो चौंकिएगा नहीं. भले ही निगाहें राज्यसभा की ओर हैं, लेकिन एंट्री कहीं और भी हो सकती है. कुल मिलाकर सीएम भूपेश बघेल की ये चुनावी तैयारी है. माना जा रहा है कि छह महीने बाद चुनावी काउंटडाउन शुरू हो जाएगा, सो टीम भूपेश में तरोताजा चेहरे लाए जाएंगे, जिससे मैदान मारा जा सके. 

आईएफएस को नोटिस

शासन ने 4 आईएफएस अधिकारियों को नोटिस जारी किया है. उन्हें ये नोटिस इसलिए दिया गया है क्योंकि उन्होंने चल-अचल संपत्ति की ऑनलाइन जानकारी वक्त पर नहीं दी. इनमें दो डायरेक्ट आईएफएस हैं और दो प्रमोटी. अब पता नहीं कितनी चल-अचल संपत्ति बीते दिनों में बनी होगी जो हिसाब देने में वक्त लग रहा है. महकमे में ये कहकर इस पर चुटकी ली जा रही है कि मसला बेहिसाब हो चला होगा, यही वजह है कि लेटलतीफी हुई हो. बहरहाल चल-अचल संपत्ति की जानकारी दिया जाना अनिवार्य नियम है. ये भी है कि जब तक चल-अचल संपत्ति की जानकारी नहीं दी जाती है, तब तक किसी तरह की पदोन्नति नहीं दी जाती. खैर शासन ने संपत्ति विवरण देने में कोताही बरतने के मसले को गंभीरता से लिया है. 

जिला पंचायत सीईओ कैसे नपे !

गौरेला पेंड्रा मरवाही में मनरेगा की राशि में गड़बड़ी फूटी, तो विधानसभा में पंचायत मंत्री ने जिला पंचायत सीईओ समेत 14 वन महकमे के अधिकारी-कर्मचारियों के निलंबन की घोषणा कर दी. मामला गंभीर था, कार्रवाई होनी ही थी. सामग्री खरीदी बताते हुए छह करोड़ रूपए की राशि का सिंगल पेमेंट कर दिया गया था. सबसे ज्यादा चौंकाने वाली कार्ऱवाई जिला पंचायत सीईओ को लेकर रही. सदन में जब वन महकमे के जिम्मेदारों पर गाज गिर ही गई थी, बावजूद इसके कार्यवाही तब तक आगे नहीं बढ़ी. मसला जिला पंचायत सीईओ पर जा टिका था. बहरहाल जब जिला पंचायत सीईओ के खिलाफ कार्रवाई हुई तब कहीं जाकर सदन आगे बढ़ा. अब पर्दे के पीछे तरह-तरह की कहानियां निकल रही है. बताते हैं कि इससे पहले जिला पंचायत सीईओ की जहां पोस्टिंग थी, वहां एक बड़े नेताजी का डीएमएफ मद से जुड़ा कोई पुराना विवाद था. सीईओ नजर में थे ही, सो मौका ढूंढा जा रहा था. नेताजी की किस्मत बुलंदी पर थी, मौका मिला और वह चूके नहीं. वैसे प्रशासनिक महकमे में ये चर्चा है कि जल्द ही जिला पंचायत सीईओ को क्लीन चीट दे दी जाएगी. 

कलेक्टर का खेल

सुनते हैं कि एक बड़े जिले में कलेक्टर जमीन-जमीन खेल रहे हैं. ऐसे ही एक खेल के मामले की गूंज सुनाई पड़ी, जहां शहरी इलाके में करोड़ों की बेशकीमती जमीन को औने-पौने दाम में चहेतों को बेच दिया गया. दस्तावेजों में हेरफेर कर ये कारनामा किया गया. स्क्वेयर फीट की जगह एकड़ लिख देने से मामला फिट हो गया. मजे की बात रिकार्ड्स में उस पेज पर पर्दा डाल दिया गया, जहां से पूरे मामले का खुलासा हो सकता था. बस फिर क्या था. गाइडलाइन वैल्यू घट गई और करोड़ों की जमीन कौड़ियों के दाम बिक गई. इसे ही कहते हैं सूत ना कपास जुलाहों में लठ्ठम लठ्ठा. वैसे सुना है कि कलेक्टरों के प्रस्तावित तबादले में भी कलेक्टर साहब की टिकट कटने वाली है. 

लैंटाना..

विधानसभा में कई मौकों पर ये शब्द बार-बार सुनाई पड़ा ”लैंटाना”. स्पीकर ने भी एक दफे पूछ लिया आखिर ये लैंटाना है क्या? जवाब में वन मंत्री ने बताया कि ये एक किस्म की झाड़ी की प्रजाति है, जो ब्रिटिश जमाने में अफ्रीका से लाई गई थी. वैसे जंगल विभाग में इसे खरपतवार कहा जाता है. बहरहाल लैंटाना बहुत गजब की चीज है. है तो खरपतवार, लेकिन वन महकमे के लिए ये खरा सोना है. इसके उन्मूलन के नाम पर डिवीजनों में बड़े-बड़े खेल खेले जाते हैं और इसकी भनक तक नहीं लगती. भ्रष्टाचार की न्यूनतम इकाई इसे माना जा सकता है. हर साल लैंटाना उन्मूलन के नाम पर विभाग बजट तय करता है. अब फील्ड में ये देखने तो कोई जाएगा नहीं कि कितने एरिया में लैंटाना का उन्मूलन किया गया, सो अधिकारी भी नहीं चाहते कि यह खरपतवार कभी खत्म हो. महकमे के अधिकारी कहते हैं लैंटाना उन्मूलन इस बात की राहत देता है कि आड़े तिरछे कामकाज में खर्च होने वाली राशि की भरपाई यहां से कर ली जाती है. 

करो या मरो…

खैरागढ़ उप चुनाव में बीजेपी जिस रणनीति से काम में जुटती दिख रही है, उसे देखकर तो यही लग रहा है कि पार्टी अब करो या मरो के नारे पर बढ़ रही है. इससे पहले दंतेवाड़ा और मरवाही में उप चुनाव हो चुके हैं. पार्टी मैदान में तो थी, लेकिन अपनी छवि के अनुरूप चुनाव लड़ते नहीं दिखी. अबकी बार तस्वीर उलट है. मंडल स्तर पर लीड दिलाने की जिम्मेदारी भी बड़े नेताओं को सौंपी गई है. स्टार प्रचारकों में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रहलाद पटेल को लगाया गया है. इस उप चुनाव को सत्ता का सेमीफाइनल कहा जा रहा है. साल 2023 के विधानसभा चुनाव के लिहाज से बीजेपी के लिए ये चुनाव बेहद अहम है, सो करो या मरो की नीति अपनाई गई है. वैसे भी राजनांदगांव जिला पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह के प्रभाव वाला जिला है, जाहिर है कहीं ना कहीं उनकी साख भी दाव पर लगी है. उधर कांग्रेस ने तगड़ी घेराबंदी की है. सरकार में रहने का फायदा भी पार्टी लेगी ही.