पंजाब/नई दिल्ली। चंडीगढ़ के कर्मचारियों पर केंद्रीय कानून लागू करने का मुद्दा मंगलवार को लोकसभा में गूंजा. शिरोमणि अकाली दल की सांसद हरसिमरत कौर बादल ने यह मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि पहले 56 साल बाद भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (BBMB) से पंजाब के मेंबर को हटाया गया. उसके बाद चंडीगढ़ के सरकारी कर्मचारियों को केंद्रीय नियमों के अधीन लाया गया है. यह केंद्र की तरफ से पंजाब के हक पर डाका डालने के समान है. उन्होंने कहा कि यह फैसले देश के संघीय ढांचे के खिलाफ हैं.

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1 अप्रैल से चंडीगढ़ में केंद्रीय सेवा नियम होंगे लागू

बता दें कि केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ में एक अप्रैल से केंद्रीय सेवा नियम लागू हो जाएंगे. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को इसका एलान चंडीगढ़ में किया था. पंजाब में अब केंद्र के इस फैसले का विरोध हो रहा है. पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने ट्वीट कर कहा कि केंद्र सरकार चंडीगढ़ प्रशासन में अन्य राज्यों और सेवाओं के अधिकारियों और कर्मियों को चरणबद्ध थोप रही है. यह पंजाब पुनर्गठन अधिनियम 1966 की भावना के खिलाफ है. पंजाब चंडीगढ़ पर अपने सही दावे के लिए मजबूती से लड़ेगा.

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हरसिमरत कौर बादल ने लोकसभा में उठाया मुद्दा

वहीं शिरोमणि अकाली दल की सांसद हरसिमरत कौर बादल ने लोकसभा में कहा कि 1966 में पंजाब पुनर्गठन एक्ट बना था. उस वक्त चंडीगढ़ को पंजाब और हरियाणा की अस्थायी राजधानी बनाया गया था. एक्ट के मुताबिक चंडीगढ़ में 60% कर्मचारी पंजाब और 40% हरियाणा के लगाए जाने थे. इसके अलावा किसी भी दूसरे कैडर के कर्मचारियों को चंडीगढ़ में नहीं लगाया जा सकता. हरसिमरत ने कहा कि 1986 में हुए राजीव-लौंगोवाल समझौते के मुताबिक चंडीगढ़ को पंजाब को ट्रांसफर किया जाना था. चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी है. उन्होंने कहा कि सरकार ने बार-बार हमारे अधिकार को नजरअंदाज किया. उन्होंने कहा कि दूसरे कैडर के अफसरों को चंडीगढ़ में भेजना समझौते के उलट है. उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ हमारा है और यह हमारी भावनाओं से जुड़ा है. अब चंडीगढ़ से हमारे कर्मचारियों को हटाया जा रहा है. उन्होंने मांग की कि चंडीगढ़ को जल्द से जल्द पंजाब को दिलाया जाए.

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सीएम भगवंत मान ने किया था विरोध, लेकिन पंजाब से आप के पांचों राज्यसभा सांसदों की चुप्पी पर सवाल

इस मामले में अब आम आदमी पार्टी के नए बने 5 राज्यसभा सांसदों की चुप्पी को लेकर सवाल उठने लगे हैं. इनमें राघव चड्‌ढा, हरभजन सिंह, अशोक मित्तल, डॉ संदीप पाठक और संजीव अरोड़ा शामिल हैं. इनकी तरफ से इस मुद्दे पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है.

शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस ने भी जताया विरोध

शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के वरिष्ठ उपाध्यक्ष दलजीत सिंह चीमा ने कहा है कि गृह मंत्रालय के इस फैसले से पूरी तरह पंजाब पुनर्गठन अधिनियम का उल्लंघन हुआ है. इस फैसले से पंजाब हमेशा के लिए पूंजी के अधिकार से वंचित हो जाएगा. उन्होंने केंद्र सरकार से इस फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की है. वहीं, कांग्रेस विधायक सुखपाल सिंह खैरा ने भी कहा है कि भाजपा पंजाब के अधिकारों पर हमेशा से कैंची चलाती रही है. कांग्रेस इसका विरोध करेगी.