संदीप शर्मा, विदिशा। देश में ऐसे कई मंदिर हैं जो आज भी गुमनामी के अंधेरों में हैं। ऐसा ही विदिशा में स्थित बीजा मंडल विवादित होने के कारण आज भी इस मंदिर में पूजा करने की अनुमति नहीं है।
शब्द “बीजामंडल” की उत्पत्ति संभवत इस स्थापत्य संरचना के वास्तविक नाम विजय मंदिर के पश्चात हुई थी। साक्ष्यों से पता चलता है कि विजय मंदिर का निर्माण परमार शासक द्वारा 11वीं शताब्दी में किया गया था, जिसे 1682 ईस्वी में मुगल शासक औरंगजेब द्वारा खंडित कर दिया गया था। उस पर एक मस्जिद का निर्माण कराया जिसमें इसी मंदिर के स्तंभों तथा अन्य भागों का ही प्रयोग किया गया। इस मस्जिद को आलमगीरी मस्जिद कहा जाता था तथा विदिशा को आलगीरपुर नाम दिया गया था।
इस मंदिर के स्तंभ युक्त मंडप के एक स्तंभ पर उत्कीर्ण अभिलेख के अनुसार इस मंदिर का तादात्म्य “चर्चिका देवी” से है। इस अभिलेख में परमार शासक नर बर्मन का भी उल्लेख आता है। ऐसा माना जाता है कि उक्त देवी का एक अन्य नाम विजया भी था। जिस कारण मंदिर का नाम विजय मंदिर पड़ गया। इस मंदिर की दीवार से सन 1186 ईसवी का उदयवर्मन का अभिलेख मिला है। यहां पर सन 1971 से 1972 में भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण मध्य मंडल के अंतर्गत हुए उत्खनन में मंदिर के दक्षिणी भाग में एक अन्य अभिलेख प्राप्त हुआ, जो सूर्य उपासना से प्रारंभ होता है।
यह अभिलेख देवनागरी लिपि के संस्कृत भाषा में है। यद्यपि इससे किसी तिथि का कोई ज्ञान नहीं होता। परंतु भाषा तथा शब्दों की बनावट से यह 11 वीं शताब्दी का माना जा सकता है। जब परमार शासक इस क्षेत्र में राज्य कर रहे थे तथा विजय मंदिर का निर्माण किया गया। यहीं से प्राप्त एक अन्य अभिलेख से भगवान “भेल्लस्वामिन” का उल्लेख किया गया है, जिसका तात्पर्य “सूर्य भगवान” जिसके कारण ही वर्तमान विदिशा भेलसा के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर को सूर्य भगवान से जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि तत्कालीन शासक सूर्य के अनन्य भक्त थे। जिनके सम्मान में यह मंदिर निर्मित किया गया। यह भी हो सकता है कि बीजा मंडल वास्तविक रूप से सूर्य मंदिर रहा होगा।
बीजा मंडल प्राचीन समय में एक हिंदू मंदिर हुआ करता था। मुगलों के आक्रमण के बाद यह मंदिर मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया। आपको यहां एक ऊंचा और बड़ा सा मंडप देखने के लिए मिलेगा। इस मंडप के ऊपर लाइन से सुंदर भवन बने हुए हैं। यह भवन पत्थर के बने हुए हैं और बहुत ही अद्भुत लगते हैं। बीजा मंडल को बहुत सारे नामों से जाना जाता है। बीजा मंडल पर प्राचीन अवशेष देखने के लिए मिलते हैं। यह पूरा मंडप पत्थर का बना हुआ है। यह देखने में बहुत ही अद्भुत लगता है। यहां पर सुंदर गार्डन बना हुआ है और गार्डन के बीच में आपको यह संरचना देखने को मिलती है, जो बहुत अद्भुत है। यहां पर संग्रहालय भी है। इस संग्रहालय में प्राचीन मूर्तियां रखी गई है।
मुख्यमार्ग विदिशा अशोकनगर हाईवे सड़क के पास स्थित
बीजा मंडल संग्रहालय में उमा और महेश की प्रतिमा देखने को मिलती है। उमा-महेश आलिंगन की अवस्था में है। उमा महेश की प्रतिमा परमार कालीन है और यह प्रतिमा में देवी देवता आभूषण से सुसज्जित है और यह भगवान शिव ने देवी को अपनी बाईं जांघ में बैठाया है। देवी का दाया हाथ शिव के बाएं कंधे से रखा हुआ है। शिव के पैरों के पास नंदी विराजमान है। यह मूर्ति भी खंडित अवस्था में है।
इन मूर्तियों के अलावा बीजा मंडल संग्रहालय में अप्सराओं की विभिन्न मुद्राओं में मूर्तियां देखने को मिलती है। दिगपाल की मूर्ति भी । दुर्गा महिषासुर मर्दिनी और गणेश जी की प्रतिमा भी है। इसके अलावा गज लक्ष्मी, भगवान विष्णु और लक्ष्मी भी हैं। बैठी हुई देवी की प्रतिमा भी बहुत बड़ी है और परमार कालीन है। इसमें देवी के 10 हाथ वाली प्रतिमा है और वह आसन में विराजमान है। देवी के हाथ खंडित अवस्था में हैं।
इतिहासकारों के अनुसार, विजय मंदिर देश के विशालतम मंदिरों में गिना जाता है। इस मंदिर का निर्माण चालुक्यवंशी राजा ने विदिशा विजय को चिरस्थाई बनाने के लिए यहां पर भेल्लिस्वामिन (सूर्य) का मंदिर बनवाया था। चालुक्यवंशी खुद को सूर्यवंशी मानते थे इसलिए उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। 10वीं व 11वीं शताब्दी में परमार काल में परमार राजाओं ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था।
परमार राजाओं के पुनर्निर्माण के बाद मुगल शासक औरंगजेब ने इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया था। इसकी प्रसिद्धि की वजह से मुगल बादशाहों की नजर हमेशा से इस मंदिर पर रही थी। औरंगजेब की सेना ने मंदिर में काफी तोड़फोड़ और लूटपाट मचाई थी और फिर तोपों से मंदिर को उड़ा दिया था। जिसके बाद मराठा साम्राज्य ने फिर इस मंदिर फिर से खड़ा किया।
विजय मंदिर देश की प्राचीन धरोहरों में से एक है और श्रद्धालुओं ने हर इसका पुनर्निर्माण करवाया। अब विजय मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षण में है और इसका जीर्णोद्धार के काम चल रहा है। इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 100 मीटर की बताई जाती है और आधा मील में यह मंदिर फैला हुआ है। मंदिर के अवशेष बताते हैं कि यह खजुराहो के मंदिर से भी बड़ा है।
नीलम राज शर्मा, पन्ना। पन्ना नगर को शासन ने पवित्र नगरी घोषित किया है । मंदिर और देवालयों की नगरी पन्ना में हर दिन सैकड़ों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। श्रद्धालुओं को जिन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है उनमें सबसे पहले अंडे मुर्गे व मांस की दुकान है। इसी तरह गायत्री मंदिर के सामने व बेनिसागर तालाब के मंदिरों के आगे बनी अंग्रेजी शराब दुकान है। मंदिर जाने के रास्तों में जब भक्तों को ये दुकानें दिखती हैं। तब श्रद्धालुओं द्वारा यहां के नेताओं और प्रशासन के बारे में तो बातें की ही जाती हैं। वहीं जनता की खामोशी पर भी प्रश्न चिन्ह लगता है । प्रणामी धर्म का प्रमुख तीर्थ क्षेत्र होने के साथ ही पन्ना के जुगल किशोर श्रीराम जानकी बलदेव मंदिर, जगन्नाथ स्वामी व गायत्री मंदिर में भी लगातार कार्यक्रम होता है जिसमें भक्तों को असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है । प्रशासन को जनहित में त्वरित कार्रवाई करते हुए इन सारी अव्यवस्थाओं को खत्म कराने के साथ ही पन्ना पवित्र है तो पवित्र दिखें भी इस पर काम करना चाहिए ।
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