केरल. बढ़ती महंगाई ने लोगों को इस कदर बेबस कर दिया है कि लोगों को मजबूरन कड़े कदम उठाने पड़ रहे हैं. केरल स्थित कोल्लम के मछुआरे अपनी लाखों की बोट कौड़ियों के दाम कबाड़ियों को बेच रहे हैं. 40-50 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मछुआरों की बोट स्क्रैप में बिक रही है.
डीजल की बेलगाम बढ़ती कीमत की वजह से बोट चलाना घाटे का सौदा साबित हो रहा है. उपर से सरकार ने पंजीयन फीस बढ़ाकर उनके कारोबार की हालत खस्ता कर दी है. नतीजन कोल्लम के मछुआरे अपनी करीब 300 बोट कबाड़ियों को बेच चुके हैं और कई लोग बेचने की तैयारी में हैं.
नावों में लग रही जंग
मछुआरों का कहना है कि कोई उपयोग ना होने से समुद्र किनारे खड़ी बोट में जंग लगने लगती है. इसके बाद उसे स्क्रैप में बेचने के अलावा उनके पास और कोई दूसरा चारा नहीं होता है. ऑल केरल मैकेनाइज्ड बोट ओनर्स एसोसिएशन के स्टेट प्रेजिडेंट पीटर माथियास के मुताबिक पहले कोल्लम जिले में केवल दो बोट स्क्रैपिंग यार्ड थे, अब ऐसी 12 स्क्रैपिंग यूनिटें दिन रात नावों से स्क्रैप निकाल रही हैं. अब इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां लोग किस कदर अपनी बोट बेचने को मजबूर हैं.
बढ़ती महंगाई ने किया त्रस्त
पीटर के मुताबिक मछुआरे पिछले कई साल से मौसम की मार झेल रहे थे. अभी कुछ राहत मिली ही थी कि डीजल के रेट ने फिर से सब बर्बाद करना शुरू कर दिया. मछुआरों का कहना है कि गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए एक बोट में हर दिन करीब 600 लीटर डीजल लगता है. इसके अलावा मछली पकड़ने के लिए इस्तेमाल होने वाले जाल, रस्सी, स्पेयर पार्ट्स और अन्य उपकरणों की कीमत बढ़ने से भी मछुआरे परेशानी में हैं.
ईंधन सब्सिडी की मांग
पीटर माथियास ने बताया कि मछुआरे कर्ज लेने को मजबूर हो रहे हैं. आर्थिक तंगी के कारण जो लोग काम बंदकर अपनी बोट बेचना चाहते हैं, उन्हें खरीददार नहीं मिल रहा है. इस स्थिति में मछुआरों के पास कबाड़ डीलरों को बोट बेचने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है. उन्होंने बताया कि एक नाव में करीब 40-60 मछुआरे मछली पकड़ने जाते हैं. जब एक बोट बंद होती है तो इन 40-60 लोगों के परिवार के आय का स्त्रोत भी बंद हो जाता है. अब एसोसिएशन फिशिंग सेक्टर के लिए ईंधन सब्सिडी की मांग कर रहा है.