उत्तर भारत के प्रसिद्ध कैलादेवी मंदिर में दुर्गाष्टमी पर शृंगार और सेवा-पूजा की अनूठी परंपराएं निभाई जाएंगी. नवरात्रि स्थापना से माता का स्नान नहीं हुआ है, न ही वस्त्र बदले हैं.
सालभर में चैत्र और शारदीय नवरात्र ही ऐसे पर्व होते हैं, जब स्थापना से सप्तमी तक माता इसी स्वरूप में दर्शन देती हैं. अष्टमी पर स्नान करवा कर नए वस्त्र धराए जाएंगे. सोने के मुकुट, हीरे-रत्न जड़ित आभूषण, चूड़ियां, बिछियां और सुहाग सामग्री से शृंगार होगा. ये आभूषण मंदिर की स्थापना के वक्त के हैं. साल में दोनों नवरात्र में ही बाहर निकलते हैं. आम दिनों के आभूषण अलग रहते हैं. मंदिर के गर्भगृह में 11 सौ साल से दो अखंड ज्योत जल रही है. गर्भगृह में रोशनी के लिए कभी बल्ब नहीं लगा.
मां कैलादेवी बहन चामुंडा माता के संग त्रिकुटा पर्वत पर विराजीं, पौराणिक कथा में उल्ल्लेख
यहां कैलादेवी अपनी बहन चामुंडा माता के साथ विराजित हैं. माता त्रिकूट पर्वत पर विराजीं हैं. पौराणिक कथा के अनुसार दानवों का वध करने के लिए केदार गिरी बाबा मां को कन्या रूप में यहां लाए थे. दानव के वध के निशान कैलादेवी कस्बे में स्थित कालीसिल नदी में आज भी हैं. यहां माता और दानव के पदचिह्नों के निशान उकरे हुए हैं. यह घाट श्रीचरण दानव घाट के नाम से जाना जाता है. दानव के वध के बाद माता ने यहां से जाने की बात कही तो बाबा यह कहकर चले गए कि मैं लौटकर नहीं आऊं, तब तक माता यहां से नहीं जाना, बाद में केदार बाबा ने जिंदा समाधि ले ली. किंवदंती है कि केदार गिरी की राह देखते माता की गर्दन झुक गई. कैलादेवी के साथ में विराज रहीं चामुंडा माता की स्थापना 250 साल पहले करवाई थी.
जाने कैलादेवी मंदिर के बारे में कुछ और बातें
राजस्थान के करौली में कैला देवी मंदिर, हिन्दुओ का धार्मिक मंदिर है, जिसे देवी दुर्गा की 9 शक्ति पिठों में से एक माना जाता है. करौली शहर से 23 किमी की दूरी पर कालीसिल नदी के तट पर कैला देवी मंदिर स्थित है. कैला देवी इस मंदिर में देवी के रूप में स्थित जिसे हर साल लाखों लोग दर्शन करने आते है. देवी कैला को मानवजाति की रक्षिका और उद्धारकर्ता के रूप में माना जाता है. यह मंदिर करौली साम्राज्य के रियायत जादौन राजपूत के शासकों द्वारा बनाया गया है.
कैला देवी मंदिर का इतिहास
महाराजा गोपाल सिंह जी ने 1723 में इस मंदिर की नींव रखी थी जो 1930 में बनकर पूरा हुआ. उन्होंने इस मंदिर के अंदर चामुंडा जी की मूर्ती को भी स्थापित किया जिसे वह गंगराओं के किले से लाये थे जो 1150 में खिनची शासक मुकुंद दास जी द्वारा वहां स्थापित की गयी थी.
कैला देवी को महामाया का अवतार माना जाता है जिन्होंने नंद और यशोदा द्वारा जन्म लिया था. और उन्हें भगवान कृष्ण के स्थान पर रखा था जिसे कंस मारना चाहता था. उसे मारने का प्रयास करते समय उसने देवी का रूप ले लिया और कंस से कहा कि भगवान कृष्ण का जन्म पहले ही हो चूका है और वे अब यहाँ से बहुत दूर चले गया है.
कैला देवी की वास्तुकला
किमती संगमरमर से निर्मित इस मंदिर का एक बड़ा आंगन और चारखानेदार फर्श है. कैला देवी और चामुंडा देवी की मूर्तियां इस मंदिर का मुख्य आकर्षण हैं. जो एक साथ मंदिर में स्थापित है. ध्यान देने योग्य यह बात है कि कैला देवी की मूर्ति का आकार बहुत बड़ा है और उनका सिर थोड़ा नीचे झुका हुआ है. इस मंदिर में कई लाल झंडे जो भक्तो द्वारा लगाये गये हैं.
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