चंडीगढ़, पंजाब। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को 1919 में आज ही के दिन जलियांवाला बाग में शहीद हुए लोगों को श्रद्धांजलि दी. उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने ट्वीट किया, “13 अप्रैल, 1919 को जलियांवालाबाग में हुए शहीदों को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि. हम अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए उनके सर्वोच्च बलिदान के लिए उनके सदा ऋणी रहेंगे. हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों को सबसे अच्छी श्रद्धांजलि एक ऐसे भारत का निर्माण करके दे सकते हैं, जिसकी उन्होंने कल्पना की थी.” पिछले साल जलियांवाला बाग स्मारक के पुनर्निर्मित परिसर के उद्घाटन के अवसर पर अपना भाषण साझा करते हुए एक ट्वीट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “1919 में आज के दिन जलियांवाला बाग में शहीद हुए लोगों को श्रद्धांजलि. उनका अद्वितीय साहस और बलिदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा.” जलियांवाला बाग स्मारक के पुनर्निर्मित परिसर के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पिछले वर्ष के भाषण को भी साझा किया.
13 अप्रैल 1919 की वो खूनी तारीख
13 अप्रैल 1919 की काली तारीख न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के इतिहास में दर्ज है. ये तारीख एक भीषण नरसंहार की गवाह है. भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के लिए लड़ रहे लोगों की चीखों और उनकी खून से लाल मिट्टी ने आंदोलन की दिशा बदल दी, साथ ही भारतीयों को सदियों का घाव दे दिया. ऐसा घाव जो कभी भर नहीं सकता है. 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था, जिसमें सैकड़ों निर्दोष मारे गए थे. पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग नाम की एक जगह है. 13 अप्रैल 1919 के दिन इसी जगह पर अंग्रेजों ने कई भारतीयों पर गोलियां बरसाई थीं. उस कांड में कई परिवार खत्म हो गए. बच्चे, महिला, बूढ़े तक को अंग्रेजों ने नहीं छोड़ा. उन्हें इस बाग में बंद करके गोलियों से छलनी कर दिया. बाग में जो कुआं था, कई लोग उनमें कूद गए थे. ये कुआं भारतीयों की लाशों से पट गए थे.
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जलियांवाला बाग नरसंहार का इतिहास
दरअसल, उस दिन जलियांवाला बाग में अंग्रेजों की दमनकारी नीति, रोलेट एक्ट और सत्यपाल व सैफुद्दीन की गिरफ्तारी के खिलाफ एक सभा का आयोजन किया गया था. हालांकि इस दौरान शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, लेकिन कर्फ्यू के बीच भी हजारों लोग सभा में शामिल होने पहुंचे थे. कुछ लोग ऐसे भी थे, जो बैसाखी के मौके पर अपने परिवार के साथ वहीं लगे मेले को देखने गए थे. जब ब्रिटिश हुकूमत ने जलियांवाला बाग पर इतने लोगों की भीड़ देखी, तो उन्हें लगा कि कहीं भारतीय 1857 की क्रांति को दोबारा दोहराने की ताक में तो नहीं. इस दिन अंग्रेजों ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी. सभा में शामिल नेता जब भाषण दे रहे थे, तब ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर वहां पहुंच गए. कहा जाता है कि इस दौरान वहां 5000 लोग पहुंचे थे. वहीं जनरल डायर ने अपने 90 ब्रिटिश सैनिकों के साथ बाग को घेर लिया. उन्होंने वहां मौजूद लोगों को चेतावनी दिए बिना ही गोलियां चलानी शुरू कर दीं.
ब्रिटिश सैनिकों ने महज 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाईं
ब्रिटिश सैनिकों ने महज 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाईं. इस दौरान जलियांवाला बाग में मौजूद लोग उस मैदान से बाहर नहीं निकल सकते थे, क्योंकि बाग के चारों तरफ मकान बने थे. बाहर निकलने के लिए बस एक संकरा रास्ता था. भागने का कोई रास्ता न होने के कारण लोग वहां फंसकर रह गए. अंग्रेजों की गोलियों से बचने के लिए लोग वहां स्थित एकमात्र कुए में कूद गए. कुछ देर में कुआं भी लाशों से भर गया. जलियांवाला बाग में शहीद होने वालो का सही आंकड़ा आज भी पता न चल सका, लेकिन डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, तो जलियांवाला बाग में 388 शहीदों की लिस्ट है, ब्रिटिश सरकार के दस्तावेजों में 379 लोगों की मौत और 200 लोगों के घायल होने का दावा किया गया, हालांकि अनाधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, ब्रिटिश सरकार और जनरल डायर के इस नरसंहार में 1000 से ज्यादा लोग शहीद हुए थे और लगभग 2000 से अधिक भारतीय घायल हुए थे.
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