ट्रेन का कंफर्म आरक्षित टिकट होने के बाद भी रेलवे ने एक बीमार व्यक्ति को बर्थ नहीं दिया, जिससे उन्हें दरभंगा से दिल्ली तक खड़े होकर यात्रा करनी पड़ी थी. इस मामले में 14 साल बाद उपभोक्ता अदालत ने रेलवे को आदेश दिया है कि वह यात्री को मुआवजा दे.
जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग की अध्यक्ष मोनिका श्रीवास्तव, सदस्य रश्मि बंदल व राजेंद्र धर की पीठ ने फरीदाबाद निवासी इंद्रनाथ झा की शिकायत का निपटारा करते हुए रेलवे को सेवा में कमी का दोषी पाया है और उसके खिलाफ फैसला सुनाया है. 14 साल पूर्व के मामले में पीठ ने कहा है कि तथ्यों से साफ है कि टिकट अपग्रेड होने की सूचना रेलवे ने शिकायतकर्ता को नहीं दी थी. टिकट अपग्रेड की सूचना देना रेलवे की जिम्मेदारी है. पीठ ने यह टिप्पणी रेलवे की उस दलील को खारिज करते हुए दिया है, जिसमें कहा गया था कि यात्री पांच घंटे की देरी से अपनी सीट पर पहुंचा, इसलिए सीट किसी अन्य को आवंटित कर दी गई थी.
छह फीसदी ब्याज भी देना होगा
पीठ ने पूर्व मध्य रेलवे, हाजीपुर (बिहार) के महाप्रबंधक को लापरवाही और सेवा में कमी के लिए 50 हजार रुपये, उत्पीड़न, अपमान के बदले 25 हजार रुपये का मुआवजा शिकायकर्ता को देने का आदेश दिया है. मुकदमा दाखिल करने के दिन से ही इस रकम पर छह फीसदी का ब्याज भी देने का आदेश दिया है.
यह है मामला
शिकायतकर्ता इंद्रनाथ झा ने 19 फरवरी 2008 को दरभंगा से दिल्ली आने के लिए स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस में आरक्षित टिकट बुक किया था. जब वह ट्रेन में पहुंचे तो बर्थ किसी और को आवंटित कर दिया गया था. बाद में टीटीई ने बताया कि उनका टिकट अपग्रेड कर दिया गया. लेकिन जब टीटीई के बताए कोच संख्या-बी-1 बर्थ 33 पर वह पहुंचे तो पता चला कि यह सीट भी किसी अन्य यात्री को आवंटित कर दिया गया. इससे उन्हें खड़े होकर यात्रा करनी पड़ी.