रायपुर. पद्मपुराण में भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर को बताते हैं वैशाख के कृष्णपक्ष की एकादशी वरुथिनी के नाम से प्रसिद्ध है. यह इस लोक और परलोक में भी सौभाग्य प्रदान करने वाली है. वरुथिनी के व्रत से सदा सौख्य का लाभ तथा पाप की हानि होती है. यह सबको भोग और मोक्ष प्रदान करने वाली है.
वरुथिनी के व्रत से मनुष्य दस हजार वर्षो तक की तपस्या का फल प्राप्त कर लेता है. इस व्रत को करने वाला मनुष्य दशमी के दिन काँसे के पात्र, उडद, मसूर, चना, कोदो, शाक, शहद, दूसरे का अन्न, दो बार भोजन तथा रति-इन दस बातों को त्याग दे. एकादशी को जुआ खेलना, सोना, पान खाना, दातून करना, परनिन्दा, चुगली, चोरी, हिंसा, रति, क्रोध तथा असत्य भाषण- इन ग्यारह बातों का परित्याग करे. द्वादशी को काँसे का पात्र, उडद, मदिरा, मधु, तेल, दुष्टों से वार्तालाप, व्यायाम, परदेश-गमन, दो बार भोजन, रति, सवारी और मसूर को त्याग दे.
इस प्रकार संयम पूर्वक वरुथिनी एकादशी का व्रत किया जाता है. इस एकादशी की रात्रि में जागरण करके भगवान मधुसूदन का पूजन करने से व्यक्ति सब पापों से मुक्त होकर परमगति को प्राप्त होता है. मानव को इस पतित पावनी एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए. इस व्रत के माहात्म्य को पढ़ने अथवा सुनने से भी पुण्य प्राप्त होता है. वरुथिनी एकादशी के अनुष्ठान से मनुष्य सब पापों से मुक्ति पाकर वैकुण्ठ में प्रतिष्ठित होता है. जो लोग एकादशी का व्रत करने में असमर्थ हों, वे इस तिथि में अन्न का सेवन कदापि न करें.
इस व्रत को करने वाला दिव्य फल प्राप्त करता है. शास्त्रों के अनुसार हाथी का दान घोड़े के दान से श्रेष्ठ है. हाथी के दान से भूमि दान, भूमि के दान से तिलों का दान, तिलों के दान से स्वर्ण का दान तथा स्वर्ण के दान से अन्न का दान श्रेष्ठ माना गया है. अन्न दान के बराबर कोई दान नहीं है. अन्नदान से देवता, पितर और मनुष्य तीनों तृप्त हो जाते हैं. शास्त्रों में इसको कन्यादान के बराबर माना है.
वरुथिनी एकादशी के व्रत से अन्नदान तथा कन्यादान दोनों के बराबर फल मिलता है. जो मनुष्य प्रेम एवं धन सहित कन्या का दान करते हैं, वास्तव में उनको ही कन्यादान का फल मिलता है और उनके पुण्य का आंकलन करना बहुत कठिन है.
वरुथिनी एकादशी का व्रत करने वालों को दशमी के दिन निम्नलिखित वस्तुओं का त्याग करना चाहिए.
- अन्न, नमक एवं तेल का सेवन
- चने का साग
- मसूर की दाल.
- दूसरी बार भोजन
- मांस ओर मदिरा
- कांसे के बर्तन का प्रयोग
- मधु (शहद)
- पान खाना
- पर निंदा
- क्रोध और कटु वाणी
जो मनुष्य विधिवत इस एकादशी को करते हैं उनको स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है. अत: मनुष्यों को पापों से डरना चाहिए. इस व्रत के महात्म्य को पढ़ने से एक हजार गोदान का फल मिलता है. इसका फल गंगा स्नान के फल से भी अधिक है.
सागर: इस दिन खरबूजे का सागर लेना चाहिए .
फल: वरुथिनी एकादशी का फल दस हजार वर्ष तक तप करने के बराबर होता है. सूर्यग्रहण के समय एक मन स्वर्णदान करने से जो फल प्राप्त होता है वही फल वरुथिनी एकादशी के व्रत करने से मिलता है. वरुथिनी एकादशी के व्रत को करने से मनुष्य इस लोक में सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है.