Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

कलेक्टर की बेरुखी….
अभी पिछले दिनों ही कलेक्टर कॉन्क्लेव में न केवल शरीक हुए बल्कि दावत उड़ाकर बस्तर संभाग के अपने जिले लौटे कलेक्टर साहब के मिजाज बदले-बदले नजर आ रहे हैं. बताते हैं कि जब से लौटे हैं, कामकाज में मन नहीं लग रहा. दफ्तर भी उनके इंतजार में गुमसुम है. दस्तखत के इंतजार में फाइलें धूल खाती पड़ी है. मगर कलेक्टर साहब हैं कि आने का नाम ही नहीं ले रहे. आलम यह है कि जिले में एक केंद्रीय मंत्री का दौरा हो गया, सांसद ने दिशा कमेटी की बैठक ले ली. और तो और कमिश्नर ने आमद देकर जिले के प्रशासनिक कामकाज की समीक्षा भी कर ली. मगर कलेक्टर साहब अकबर इलाहाबादी के उस शेर की पंक्तियों पर कायम नजर आ रहे हैं, जिसमें उन्होंने लिखा था “दुनिया में हूं, दुनिया का तलबगार नहीं हूं”. जो-जो दौरे पर गया, उसे मालूम चला कि कलेक्टर साहब बीमार है. जब कमिश्नर पहुंचे थे, तो सोचा कि बंगले जाकर कलेक्टर का हाल-चाल पूछ लिया जाए. कहते हैं कि कलेक्टर बंगला पहुंचने पर जब जिला पंचायत सीईओ ने खुद कलेक्टर साहब को फोन कर सूचना दी कि कमिश्नर खैरियत पूछने आए हैं. उन्होंने मिलने की दिलचस्पी ही नहीं दिखाई. उन्हें तो दुनियादारी की तलब थी ही नहीं. सो कमिश्नर को बंगले से लौटना पड़ गया. कमिश्नर ने भी निश्चित ही सोचा होगा आखिर इतनी बेरुखी किसलिए?

‘रद्दी की टोकरी’ में मंत्री-विधायक की सिफारिश
पुलिस महकमे में हुए हालिया तबादलों ने मंत्री-विधायकों की इज्जत का फालूदा कर दिया. करीब 318 टीआई और एसआई के तबादले हुए. मगर पुलिस मुख्यालय ने सिफारिशी चिट्ठी पर नजरें इनायत करना भी मुनासिब ना समझा. सिफारिशी पत्र की जगह तय कर दी गई और वह थी ‘रद्दी की टोकरी’. अब इसे लेकर मंत्रियों और विधायकों का पारा चढ़ा हुआ है. सुनाई पड़ा है कि कैबिनेट मीटिंग में ये मामला गर्मा सकता है. कुछेक मंत्रियों ने आवाज बुलंद करने के संकेत दिए हैं. बताते हैं कि चार मंत्री, 5 संसदीय सचिवों समेत कुछ और विधायकों ने अपने करीबी लोगों के मनचाहा तबादले के लिए सिफारिश चिट्ठी लिखी थी. इन चिट्ठियों के आधार पर गृह विभाग ने बाकायदा अनुशंसा पत्र की जानकारी पुलिस मुख्यालय को भेजी. उम्मीद थी कि तबादला सूची में सिफारिशों को मंजूरी मिलेगी, मगर जब सूची आई तो मंत्रियों-विधायकों के होश फाख्ता हो गए. अब इन लोगों की नजरें पुलिस मुख्यालय की ओर टेढ़ी हो गई है. मालूम नहीं इन लोगों के गुस्से पर पानी डलेगा या गुस्सा उबाल मारेगा.

तोहफे के लिए चंदा
एक महिला आईपीएस की अभी हाल ही में शादी हुई. वैवाहिक गठबंधन की उन्हें ढेर सारी शुभकामनाएं. आईपीएस पुलिस परिवार की बेटी थी, लाजमी था तोहफा जाना. मगर तोहफे का किस्सा खूब चर्चित रहा. बताते हैं कि तोहफा देने के लिए हर एक थाने की जिम्मेदारी तय की गई थी. ज्यादा नहीं, लेकिन हर थाने से दो हजार रुपए का चंदा लिया गया. पैसे इकट्ठे करने के लिए एक नोडल अफसर बनाया गया था. हर थाने से गाड़ियां आती रही और नोडल अफसर के पास पैसे इकट्ठे होते रहे. एक पुलिस अफसर ने बताया कि इकट्ठे हुए पैसे को सराफा लाइन के करीब एक थाने के अधिकारी को ये कहते हुए दे दिया गया कि सराफा बाजार से कुछ अच्छा तोहफा खरीद लें. पैसे यदि कम पड़े, तो बाकी का हिसाब वह खुद ही देख लें. सुनाई पड़ा है कि सराफा से अच्छा खासा तोहफा ले लिया गया. अच्छी बात है कि परिवार में शादी हो तो एकजुट होकर तोहफा खरीद लिया जाए. एक पर भार नहीं पड़ता, लेकिन यहां कुछ नाखुश चेहरे भी दिखाई पड़े, जो यह कहते सुने गए कि भला उस आईपीएस को क्या पता कि किसने कितनी रकम दी? हमने दिया भी है या नहीं? इनमें बहुत से चेहरे तो ऐसे भी थे, जिन्हें न्योता भी नहीं था. ऐसे लोग बड़े असंतुष्ट किस्म के लोग है. ‘नेकी’ में भी चले अपना कोना ढूंढने.

रात नौ बजे पदभार
लगता है कि हालिया तबादले के बाद जब कलेक्टर साहब ने नए जिले का रुख किया, तब पहले मुहूर्त देखा होगा. शायद तभी जब वह पदभार ग्रहण करने पहुंचे तो घड़ी का कांटा रात नौ बजे पर जा टिका था. पूरा का पूरा स्टाफ बांट जोहते बैठा था कि कब कलेक्टर आएंगे और पदभार ग्रहण करेंगे? वैसे सूचना थी कि 4 बजे तक वह पदभार ले लेंगे. मगर आते-आते नौ बज गए. बताते हैं कि जैसे-तैसे कलेक्टरी बची, वरना खबर तो यह थी कि यूपी चुनाव के बाद से उन्हें लेकर सरकार की भौंह टेढ़ी थी. विरोध के सुर तेज थे और शिकायतें ऊपर तक पहुंच रही थी. ऊपर का आशय सिर्फ सूबे तक नहीं, दिल्ली तक. मगर कुछ तो हुनर होगा ही तभी सरकार ने उनकी कलेक्टरी बरकरार रखी. वैसे जिस जिले से आए हैं, वहां के नए कलेक्टर को पूजा पाठ करा लेना चाहिए. ग्रह नक्षत्र थोड़े बिगड़े से लगते हैं. अच्छा भला काम चल रहा था कि एक थप्पड़ ने एक की कलेक्टरी छीन ली. दूसरे पहुंचे, तो उनके साथ भी राजनीतिक विवाद चिपक गया.

दुखुराम हुए दुखी
प्रमोटी आईपीएस बनने के बाद ले दे के जिले की कप्तानी मिली थी. अब वह भी चली गई. जब तक कप्तानी रही खूब मेहनत की. खुद मोटरसाइकिल में बैठकर जुएं का फड़ पकड़ने चले जाते थे. रात-रात तक थानेदार की तरह पेट्रोलिंग करते. थानेदारी वाली ही आदत थी, जो छूटी नहीं थी. सज्जनता ऐसी की छुटभैये नेता को भी विधायक-सांसद वाला सम्मान देने से कोई गुरेज नहीं था. बस एक ही शिकायत थी कि इनकी सज्जनता की बेबसी ऐसी थी कि थानेदार लापरवाह हो गए थे. बात लाॅ एंड आर्डर पर आ गई थी. सो सरकार ने बदल दिया. तबादला हुआ तब भी मासूमियम लिए अपने एक करीबी से ये कहते सुने गए कि, मुझमे ही कोई कमी रही होगी, जो सरकार ने तबादला कर दिया. आचार-व्यवहार तो ठीक ही था.

दिल्ली की टिकट
साल भर भी कलेक्टरी को नहीं हुए थे कि एक आईएएस की दिल्ली की टिकट कट गई. बीते साल जून में उन्हें कलेक्टरी दी गई थी. हालांकि कहते हैं कि आईएएस ने खुद से ही दिल्ली की पोस्टिंग मांगी थी. मगर है तो ये लूप लाइन पोस्ट ही. अच्छी भली कलेक्टरी छोड़कर कोई यूं ही नहीं जाना चाहेगा. बहरहाल ये आईएएस अपनी टाइमिंग को लेकर सुर्खियों में रहे. दफ्तर पहुंचने से लेकर खाने-पीने तक के पाबंद. बताते हैं कि रेस्ट हाउस में भी चाय पीने के बाद पैसे दे आते थे. सुनते हैं कि एक दफे एक मंत्री ने उन्हें किसी कार्यक्रम से जुड़े बिल को मैनेज करने कहा था, तब उन्होंने दो टूक जवाब दे दिया और कहा कि I AM SORRY SIR. लगता है सिस्टम में फिट नहीं थे.

‘कुर्मी’ के जवाब में ‘साहू’
चुनाव में महज 15 महीने बाकी रह गए हैं. जाहिर है बीजेपी अब एक्शन मोड में जाती दिख रही है. छत्तीसगढ़ के मौजूदा हालात और चुनावी तैयारियों को लेकर दिल्ली में बड़ी बैठक हुई, जहां से ये खबर निकलकर आई कि आगामी चुनाव में बीजेपी किसी चेहरे को प्रोजेक्ट नहीं करेगी यानी संगठन एकजुट होकर चुनाव लड़ेगा. पार्टी यदि चुनाव जीती, तब नेता चुना जाएगा. इधर भीतरखाने की चर्चा में ये सुना गया है कि बीजेपी ओबीसी कार्ड खेल सकती है. ‘कुर्मी’ के जवाब में ‘साहू’ पर दांव खेलने की रणनीति बनाई जा रही है. बीजेपी ये मान रही है कि कुर्मी वोट बैंक कांग्रेस की तरफ है, ऐसे में साहू पर दांव लगाना बेहतर होगा. प्रधानमंत्री मोदी भी इस तबके से ही आते है, सो राजनीतिक फायदा मिलेगा. ओबीसी के इस बड़े धड़े में बीजेपी सेंधमारी करना चाहती है. वैसे आदिवासी चेहरे का विकल्प भी पार्टी के पास है. खबर है कि फिलहाल पार्टी तमाम समीकरणों का गुणा-भाग कर रही है.

बीजेपी में लद गए बड़े नेताओं के दिन !
क्या बीजेपी ने नई लीडरशिप खड़ी करने की कोशिश हो रही है? खबर तो यही है कि बीजेपी में बड़े नेताओं के दिन लद गए. मतलब राज्य बनने के बाद से बीजेपी की अगुवाई करने वाले चेहरों के परे संगठन अब नए नेतृत्वकर्ताओं की सूची बना रहा है. कहते हैं कि वैक्यूम ऑफ लीडरशिप की वजह से बीजेपी इस रास्ते आगे बढ़ रही है. 2003 से लेकर 2022 तक पार्टी का सिरमौर बने चेहरों की जगह बीजेपी की नजर अब 2023 से 2043 तक की कमान संभालने वाले नेताओं पर जा टिकी है. इसे जनरेशन नेक्स्ट कहा जा रहा है. सुनने में आया है कि करीब दस ऐसे चेहरे ढूंढे जाएंगे जिन्हें पार्टी भविष्य के लिए तैयार करेगी. संगठन के एक बड़े नेता का मानना है कि पार्टी का विस्तार हो या फिर सत्ता पाने की चाहत मौजूदा नेतृत्व की ‘भूख’ वैसी नहीं है, जैसे एक राजनीतिक दल के नेतृत्वकर्ताओं की होनी चाहिए. नेताओं का पेट भरा है, भूख बाकी नहीं रह गई है, सो नया नेतृत्व तलाशा जा रहा है. बताते हैं कि लीडरशिप वैक्यूम को खत्म करने के लिए 50 साल के नीचे उम्र के नेताओं को तरजीह दी जा रही है. खास बात ये है लीडरशिप खड़ा करने के इस फार्मूले में बीजेपी संगठन जातीय समीकरण को एक बड़ा आधार बना रहा है. एग्रेसिव और मैनेजमेंट स्किल वाले नेताओं को कमान सौंपा जाएगा. बताते हैं कि ओ पी चौधरी, सौरभ सिंह, महेश गागड़ा, केदार कश्यप, विजय शर्मा, नंदन जैन, रंजना साहू सरीखे नेताओं को पार्टी भविष्य के लिए तैयार कर सकती है. सुना तो ये भी गया है कि संगठन की ओर से एक सूची दिल्ली भेजी गई है, जिनमें इन नेताओं के नाम रखे गए हैं. इसकी सच्चाई मालूम नहीं, लेकिन भीतर ही भीतर बहुत कुछ चल रहा है, जिसकी जानकारी नेताओं को भी नहीं है.

केंद्रीय मंत्रियों की रिपोर्ट
आकांक्षी जिलों के नाम पर केंद्रीय मंत्रियों का छत्तीसगढ़ में मैराथन दौरा रहा. केंद्रीय मंत्री आते रहे, जिलों का दौरा चलता रहा. कहा जा रहा है कि इस दौरे के बहाने केंद्रीय मंत्रियों ने अपनी ना केवल पीएमओ को सौंपी है, बल्कि पार्टी को भी रिपोर्ट भेजी गई है. इस रिपोर्ट में केंद्रीय योजनाओं के आकांक्षी जिलों में क्रियान्वयन, आल इंडिया सर्विस के अधिकारियों की भूमिका, राजनीतिक हालात समेत कई ब्यौरे रखे गए हैं. सुनने में आया है कि एक मंत्री ने कलेक्टर के कामकाज पर सवाल उठाते हुए अपनी रिपोर्ट सौंपी है, जिसकी जानकारी सूबे के एक बड़े नेता से बातचीत के जरिए बाहर आई है. बताते हैं कि राज्य सरकार के एक मंत्री के जरिए केंद्रीय मंत्री को कलेक्टर के खिलाफ शिकायतें मिली. सो उन्होंने अपनी रिपोर्ट में इस शिकायत को भी शामिल किया. हालांकि इस गुफ्तगू की जमीनी हकीकत तो केंद्रीय मंत्री जाने, लेकिन इसकी चर्चा जरूर छिड़ गई है.