रायपुर. आज ‘विश्व अस्थमा दिवस’ है. यह दिवस अस्थमा रोग के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए सेलिब्रेट किया जाता है. अस्थमा सांस की नली और फेफड़ों से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है, जिसमें कई बार सही समय पर मरीज को इलाज न मिले तो उसकी जान भी जा सकती है. यह रोग बच्चों से लेकर वयस्कों को कभी भी हो सकता है.
बस्तर जिले में करीब 40 हजार लोग अस्थमा से पीड़ित हैं. अस्थमा एक लंबे समय तक चलने वाली सूजन संबंधी बीमारी है, जो फेफड़ों के वायुमार्ग को प्रभावित करती है. इसमें व्यक्ति को खांसी, सांस लेने में समस्या, घरघराहट, सीने में जकड़न जैसे लक्षण नजर आते हैं. इसका स्थायी रूप से इलाज तो संभव नहीं है, लेकिन कुछ उपायों को अपनाकर अस्थमा के लक्षणों को ट्रिगर होने से कंट्रोल किया जा सकता है.
जानिए क्या है अस्थमा
डाॅक्टरों के मुताबिक अस्थमा होने पर सांस की नली में सूजन या इंफ्लेमेशन हो जाता है, जिसके कारण सांस की नलिका के पैसेज सिकुड़ जाते हैं. नलिका के पैसेज जब सिकुड़ जाते हैं तो अस्थमा के मरीजों को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है. इसके अलावा सांस की नलिका के पास जो स्मूद मसल्स होते हैं वे भी संकीर्ण हो जाती है. जब संकीर्णता या सिकुड़न हद से ज्यादा हो जाती है तो अस्थमा के लक्षण में सीटी जैसी आवाज आने लगती है.
अस्थमा से बचाव के उपाय और इलाज
अस्थमा को स्थायी रूप से तो ठीक नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसके ट्रिगर्स पर काम करके इसे कंट्रोल में जरूर रख सकते हैं. इसके लिए अस्थमा से ग्रस्त व्यक्ति को धूल-मिट्टी से बच कर रहना चाहिए. घर में कार्पेट या अन्य चीजों पर धूल न जमने दें. चादर, तकिया कवर को गर्म पानी में साफ करें. एलर्जन से बचकर रहें. ऐसा करने से अस्थमा के लक्षणों को ट्रिगर होने से बचाया जा सकता है. अस्थमा है या नहीं इसके लिए लंग फंक्शन टेस्ट और पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट किया जाता है. यदि आपको अस्थमा के लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं, तो इसका ये मतलब नहीं कि खुद से आप दवाएं लेना बंद कर दें. डॉक्टर के बिना सलाह के दवाएं खाना बंद न करें.