फीचर स्टोरी । बस्तर खनिज संपदा से परिपूर्ण क्षेत्र है. लोहा, पानी और जंगल का यह इलाका अपने विभिन्न तरह के वनोपज के लिए भी जाना जाता है. विशेषकर तेंदूपत्ता, चार-चिरौंजी, इमली, अमचूर के लिए. इसके साथ ही बस्तर की पहचान कोसा उत्पादन के लिए भी रही है. खास तौर पर रैली कोसा को बढ़ावा देने का काम किया जा रहा है. भूपेश सरकार ने रैली कोसा के साथ बस्तर के आदिवासियों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए एक बड़ा काम किया. रैली कोसा की खरीदी अब सरकारी समर्थन मूल्य पर की जा रही है. इसके साथ ही एक प्रसंस्करण केंद्र भी सरकार की ओर खोल दिया गया है. इससे स्थानीय निवासियों को अब दोहरा लाभ मिल रहा है.
दाम के साथ मान-सम्मान और प्रसिद्धि
दरअसल बस्तर में आदिवासी लंबे समय से रेशम पालन और कोसा उत्पादन का काम कर रहे हैं. लेकिन उनके काम को अब मान-सम्मान के साथ उचित दाम अब जाकर मिला है. भूपेश सरकार ने आदिवासियों को रैली कोसा के क्षेत्र में दाम-सम्मान और प्रसिद्धि दिलाने का काम किया है. भूपेश सरकार की ओर से जो निर्णय लिया गया है उसके के मुताबिक रैली कोसा का क्रय अब समर्थन मूल्य पर छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा किया जा रहा है. मुख्यमंत्री ने चालू वित्तीय वर्ष के बजट भाषण में बस्तर में रेशम मिशन प्रारंभ करने की घोषणा की थी. इस घोषणा के पालन में राज्य सरकार ने चालू वर्ष से लघु वनोपज संघ के माध्यम से कोसा कोकून न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने का निर्णय लिया था.
रैली कोसा के लिए क्रय दर निर्धारित
छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज प्राप्त जानकारी के मुताबिक बस्तर संभाग में रैली कोसा के समर्थन मूल्य पर संग्रहण के लिए क्रय दर निर्धारित किया गया है. इसके तहत रैली कोसा साबुत ग्रेड-1 में प्रति नग शेल भार 2.5 ग्राम के लिए 4.20 रूपए, ग्रेड-2 में प्रति नग शेल भार 2-2.49 ग्राम के लिए 3.60 रूपए तथा ग्रेड-3 में प्रति नग शेल भार 1.4-1.99 ग्राम के लिए 2.80 रूपए और रैली कोसा-पोली ग्रेड-1 में प्रति नग शेल भार 2.5 ग्राम के लिए 1.50 रूपए, ग्रेड-2 में प्रति नग शेल भार 2-2.49 ग्राम के लिए 1.25 रूपए तथा ग्रेड-3 में प्रति नगर शेल भार 1.4-1.99 ग्राम 0.70 रूपए निर्धारित है.
आदिवासी और स्थानीय निवासियों को बड़ा लाभ
वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री मोहम्मद अकबर भूपेश सरकार की ओर से निर्णय को बेहद महत्वपूर्ण कदम मानते हैं. उनका कहना है कि आदिवासी हित में सरकार लगातार फैसले ले रही है. सरकार की ओर से तेंदूपत्ता की खरीदी 4 हजार प्रतिमानक बोरा के दर की जा रही है. तेंदूपत्ता संग्राहकों को सामाजिक सुरक्षा बीमा दिया जा रहा है. समर्थन मूल्य पर वनोपज की खरीदी 7 से बढ़ाकर 52 तक कर दिया गया है. इससे आदिवासियों की आय में वृद्धि हुई है. आर्थिक स्थिति में मजबूत हुई है. आदिवासी आत्मनिर्भर हो रहे हैं. इसी कड़ी में अब रैली कोसा को समर्थन मूल्य पर खरीदने का जो निर्णय सरकार की ओर से लिया गया है निश्चित इससे कोसा उत्पादन से जुड़े आदिवासी और स्थानीय निवासियों को लाभ होगा.
740 हितग्राहियों का चयन
प्रबंध संचालक राज्य लघु वनोपज संघ संजय शुक्ला का कहना है कि मुख्यमंत्री द्वारा राज्य में रैली कोसा के स्थानीय प्रसंस्करण को बढ़ाते हुए स्थानीय स्तर पर रोजगार बढ़ाने के लिए भी निर्देशित किया गया है. इसके तहत राज्य लघु वनोपज संघ तथा रेशम संचालनालय के बीच एम.ओ.यू. हुआ है. इसके अनुसार लघु वनोपज संघ द्वारा क्रय किया गया कोकून रेशम विभाग को प्रदाय किया जाएगा. रेशम विभाग द्वारा बस्तर संभाग में 740 हितग्राहियों का चयन करके उन्हें रेशम धागाकरण का प्रशिक्षण देना भी प्रारंभ कर दिया गया है. वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य में 8 से 10 करोड़ रैली कोसा-कोकून का उत्पादन होता है.
जानिए कौन-कौन से जिलों में होता रैली कोसा का उत्पादन
रैली कोसा का उत्पादन मुख्य रूप से अभी बस्तर संभाग में हो रहा है. उत्पादन को बढ़ाने के लिए सरकार की ओर लगातार आदिवासियों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. नवीन तकनीकों का उपयोग भी किया जा रहा है. रैली कोसा का संग्रहण कार्य मुख्य रूप से 07 जिला यूनियन जगदलपुर, दंतेवाड़ा, सुकमा, कोण्डागांव, केशकाल, नाराणपुर तथा कांकेर में होता है. सरकार इन जिलों में उत्पादन बढ़ाने के लिए काम कर रही है. वर्मतान में 10 करोड़ तक कोसा-कोकून का उत्पादन होता है. उत्पादन को बढ़ाने क लिए 740 हितग्राहियों का चयन किया गया है. चयनित हितग्राहियों को रैली कोसा उत्पादन के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है.
रैली कोसा बस्तर की विशेष प्रजाति
कोसा में रैली कोसा बहुत ही विशेष प्रजाति है. बस्तर में इस विशेष प्रजाति के कोसा का उत्पादन साल के वन में ही होता है. रैली कोसा के लिए साल के वन को बहुत विशेष माना जाता है. विशेषज्ञों के मुताबिक मानवीय दखलदांजी वाले इलाके में इसका उत्पादन नहीं होता. एक और जानकारी के मुताबिक साल के कम होते वन व कोसा तस्करी की वजह से बीते कुछ साल में इसका उत्पादन बेहद कम हो रहा था. जो उत्पादन हो भी रहा था वह बाजार की बाजए सीधे तस्करों के हाथ लग जा रहा था.
जानिए कैसे बनता है रैली कोसा से महीन धागा
रैली कोसा मांग लगातार बढ़ती जा रही है. इसके पीछे वजह है कि कोसा की प्रजातियों में इसका बहुत ही खास होना है. रैली कोसा से दरअसल बहुत ही महीन धागा बनता है. यह अन्य रेशम से बहुत अलग होता है. विभागीय जानकारी के मुताबिक साल व साजा के वनों में कोसा की तितलियों के लार्वा से बने कुकुन में अंडे को जंगलों से लिया जाता है. इनमें से अच्छे कुकुन को चुन कर उन्हें उबाला जाता है. उबालने के बाद इनसे रेशम का धागा निकाला जाता है. इस व्यवसाय से जुडे लोगों के अनुसार 7 से 8 कोकून से मिलाकर 1 पूरा लम्बा धागा तैयार होता है. इसके बाद धागे में रंग लगाया जाता है। सूखने के बाद धागे को लपेट कर एक गड्डी बनाई जाती है जिसके बाद इस धागे से साडिय़ों को तैयार किया जाता है. ग्रामीण प्राकृतिक रंगों से सिल्क को रंगते हैं. कोसा सिल्क की एक साड़ी को तैयार करने में 7 से 8 दिन लगते हैं.