रायपुर. वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. यह व्रत मोह बंधन और पापों से मुक्ति दिलाता है. सीता माता की खोज के दौरान भगवान राम ने तथा महाभारत काल में युधिष्ठिर ने मोहिनी एकादशी व्रत कर अपने सभी दुखों से छुटकारा पाया था.

मोहिनी एकादशी के विषय में मान्यता है कि समुद्र मंथन के पश्चात अमृत पाने के लिए दानवों एवं देवताओं में विवाद कि स्थिति पैदा हो गयी थी. दानवों को हावी जानकार भगवान् विष्णु ने अति सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर दानवों को मोहित किया और उनसे कलश लेकर देवताओं को सारा अमृत पीला दिया था. अमृत पीकर देवता अमर हो गए. जिस दिन भगवान विष्णु मोहिनी रूप में प्रकट हुए थे उस दिन एकादशी तिथि थी. भगवान विष्णु के इसी मोहिनी रूप की पूजा मोहिनी एकादशी के दिन की जाती है.

व्रत विधि

पुराणों के अनुसार दशम के दिन शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान का ध्यान करते हुए सोना चाहिए. एकादशी का व्रत रखने वाले को अपना मन शांत एवं स्थिर रखें. किसी भी प्रकार की द्वेष भावना या क्रोध मन में न लायें. परनिंदा से बचें. प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करे तथा स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान् विष्णु की प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाएं.

भगवान् विष्णु की पूजा में तुलसी, ऋतु फल एवं तिल का प्रयोग करें. व्रत के दिन अन्न वर्जित है. निराहार रहें और शाम में पूजा के बाद चाहें तो फल ग्रहण कर सकते है. यदि आप किसी कारण व्रत नहीं रखते हैं तो भी एकादशी के दिन चावल का प्रयोग भोजन में नहीं करना चाहिए.

एकादशी के दिन रात्रि जागरण का बड़ा महत्व है. संभव हो तो रात में जगकर भगवान का भजन कीर्तन करें. एकादशी के दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है. अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मण भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें.