अजीत अंजुम, वरिष्ठ पत्रकार(अजीत अंजुम देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं. वे न्यूज़ 24 और इंडिया में मैनेजिंग इडिटर रह चुके हैं, ये उनके निजी विचार हैं.)
तारीख थी 2 जून 1995 . बीएसपी ने एक दिन पहले ही मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में बनी सपा-बसपा सरकार के समर्थन वापस ले लिया था . अब तैयारी मायावती को यूपी की सत्ता पर बैठाने की थी. बीमारी से जूझ रहे बीएसपी सुप्रीमो कांशीराम दिल्ली में थे. मायावती लखनऊ में. दोनों पल -पल बदलती राजनीति और दांव-पेच पर एक दूसरे से लगातार बात कर रहे थे. यूपी के राज्यपाल मोतीलाल वोरा से मिलकर मायावती बीजेपी, कांग्रेस और जनता दल के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश कर चुकी थी. अस्पताल में पड़े कांशीराम ने एक दिन पहले ही उन्हें बीजेपी नेताओं से हासिल समर्थन पत्र देकर लखनऊ भेजा था . बीमारी की वजह से वो लखनऊ जाने की हालत में नहीं थे लेकिन उन्होंने मायावती को ये कहकर भेजा था कि तुम्हें मुख्यमंत्री बनने से कोई रोक नहीं सकता .
वीआईपी गेस्ट हाउस के कॉमन हॉल में बीएसपी विधायकों और नेताओं की बैठक खत्म करने के बाद कुछ चुनिंदा विधायकों को लेकर मायावती अपने रुम नंबर एक में चली गई . बाकी विधायक कॉमन हॉल में ही बैठे थे . शाम के करीब चार से पांच के बीच का वक्त रहा होगा . करीब दो सौ समाजवादी पार्टी के विधायकों और कार्यकर्ताओं के उत्तेजित हुजूम ने वीआईपी गेस्ट हाउस पर धावा बोल दिया .
वे चिल्ला रहे थे – ‘चमार पागल हो गए हैं .हमें उन्हें सबक सिखाना होगा’ . इस नारे के साथ -साथ और भी नारे लगा रहे थे , जिनमें बीएसपी विधायकों और उनके परिवारों को घायल करने या खत्म करने के बारे में खुल्लम -खुल्ला धमकियां थीं . ज्यादातर नारे जातिवादी थी , जिनका उद्देश्य बीएसपी नेताओं को अधिक से अधिक अपमानित करना था . चीख -पुकार मचाते हुए वे गंदी भाषा और गाली – गलौज का इस्तेमाल कर रहे थे.
कॉमन हॉल में बैठे विधायकों ने जल्दी से मुख्य द्वार बंद कर दिया लेकिन उत्पाती झुंड ने उसे तोड़कर खोल दिया . फिर वे असहाय बीएसपी विधायकों पर टूट पड़े और उन्हें थप्पड़ मारने लगे और लतियाने लगे . कम से कम पाच बीएसपी विधायकों को घसीटते हुए जबरदस्ती वीआईपी गेस्ट हाउस से बाहर ले जाकर गाड़ियों में डाला गया और उन्हें मुख्यमंत्री आवास ले जाया गया . उन्हें राजबहादुर के नेतृत्व में बीएसपी विद्रोही गुट में शामिल होने के लिए और मुलायम सरकार को समर्थऩ देने वाले पत्र पर दस्तखत करने को कहा गया . कुछ विधायक तो इतने डरे हुए थे कि कोरे कागज पर ही उन्होंने दस्तखत कर दिए . विधायकों को घेरा जा रहा था और मायावती की तलाश हो रही थी . तभी कुछ विधायक दौड़ते हुए मायावती के रुम में आए और नीचे चल रहे उत्पात की जानकारी दी . बाहर के भागकर आए विधायक आरके चौधरी और उनके गार्ड के कहने पर भीतर से दरवाजा बंद कर लिया गया . तभी समाजवादी पार्टी के उत्पाती दस्ते का एक झुंड धड़धड़ाता हुआ गलियारे में घुसा और मायावती के कमरे का दरवाजा पीटने लगा .
‘चमार औरत को उसकी मांद से घसीट कर निकालो ‘ जैसी आवाजें बाहर से भीतर आ रही थी . दरवाजा पीटने वाली भीड़ लगातार मायावती के लिए गंदे शब्दों का प्रयोग कर रही थी . गालियां दे रही थी . कमरे के भीतर सभी सहमे हुए थे कि पता नहीं क्या होने वाला है. तभी हजरतगंज के एसएचओ विजय भूषण और दूसरे एसएचओ सुभाष सिंह बघेल कुछ सिपाहियों के साथ वहां पहुंचे . इस बीच गेस्ट हाउस की बिजली और पानी की सप्लाई भी काट दी गई थी . दोनों पुलिस अधिकारियों ने किसी तरह से भीड़ को काबू में करने की कोशिश की लेकिन नारेबाजी और गालियां नहीं थम रही थी . थोड़ी देर बाद जब जिला मजिस्ट्रेट वहां पहुंचे तो उन्होंने पुलिस को किसी भी तरह से हंगामे को रोकने और मायावती को सुरक्षा प्रदान करने के निर्देश दिए .इस बीच केन्द्र सरकार , राज्यपाल और बीजेपी नेता सक्रिय हो चुके थे . इसका ही असर था कि भारी तादाद में पुलिस बल को वहां भेजना पड़ा .
डीएम ने मोर्चा संभाला और मायावती के खिलाफ नारे लगा रही और गालियां दे रही भीड़ को वहां से बाहर किया . समाजवादी पार्टी के विधायकों पर लाठी चार्ज तक का आदेश दिया , तब जाकर वहां स्थिति नियंत्रण में आ सकी . मायावती के कमरे के बाहर वो खुद डटे रहे , जब तक खतरा टल नहीं गया . फिर काफी देर तक भरोसा दिलाने के बाद कि अब कोई खतरा नहीं है , तब मायावती के कमरे का दरवाजा खुला . अंदर से बाहर निकली मायावती और उनके करीबी विधायकों के चेहरे पर दहशत साफ झलक रही थी .
कहा जाता है कि जिस वक्त वहां से बीएसपी विधायकों को घसीटकर सीएम हाउस ले जाया जा रहा था और मायावती के कमरे के बाहर हंगामा हो रहा था , उस वक्त लखनऊ के एसएसपी ओपी सिंह भी मौजूद थे . चश्मदीदों के अनुसार वो सिर्फ खड़े होकर सिगरेट पी रहे थे. पुलिस और स्थानीय प्रशासन मूकदर्शक बना सब कुछ देख रहा था . जिला मजिस्ट्रेट मौके पर न पहुंचे होते और इस तेवर के साथ उन्होंने समाजवादी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को न हटाया होता तो पता नहीं उस शाम वहां क्या हो जाता . लेकिन मायावती तो उस रात सुरक्षित बच गईं लेकिन अपनी डियूटी निभाने की सजा जिला मजिस्ट्रेट को मिली. रात को ही उनका तबादला कर दिया गया .
मुलायम सिंह यादव की सारी तिकड़म और साजिशें नाकाम हुई . अगले ही दिन तीन जून 1995 को मायावती ने यूपी के सीएम पद की शपथ ली . मुलायम सिह बेदखल हुए और यूपी की राजनीति में मायावती एक दबंग महिला के तौर पर स्थापित हो गईं . इस घटना को गेस्ट हाउस कांड के नाम से जाना जाता है . ये अलग बात है कि मुलायम को गिराकर सत्ता पर काबिज हुई मायावती और बीजेपी का रिश्ता महज पांच महीने में ही टूट गया . बीएसपी और बीजेपी के तार तीन बार जुड़े और तीनों बार अप्रत्याशित ढंग से टूटे . एक दूसरे को बेआबरु करके दोनों दल हर बार अलग हुए .
अब एक बार फिर जब समाजवादी पार्टी और बीएसपी के साथ आने की चर्चाएं हो रही हैं तो ये जानना जरुरी है कि दोनों के रिश्तों ने कैसे दिन देखे थे . मायावती ने उस दौरान मुलायम सिंह पर अपनी हत्या की साजिश का आरोप लगाया था और सालों साल इस आरोप को दोहराती रही थीं . ऐसा मानने वालों की कमी नहीं कि बिना मुलायम सिंह की मर्जी और इजाजत के मायावती को यूं घेरने और मारने -पीटने की हद तक डराने की हिमाकत कोई कर नहीं सकता था.
यूपी चुनाव में बीएसपी और एसपी के बुरी तरह सफाए के बाद से ही ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त दोनों साथ आ सकते हैं . मायावती ऐसी किसी संभावना का लगातार खंडन करती रही हैं लेकिन फूलपुर और गोरखपुर के उपचुनाव में सपा के उम्मीदवारों के समर्थन के ऐलान के बाद सुगबुगाहट फिर तेज हुई है . एक दूसरे से नफरत और दुश्मनी की बुनियाद पर खड़े हुए इन दो दलों का साथ आना और सीटों पर तालमेल हो जाना आसान नहीं लेकिन जब बात अपने अस्तित्व को बचाने पर आती है तो सियासत में नामुमकिन कुछ भी नहीं . लोकसभा चुनाव के बाद बिहार में लालू यादव और नीतीश का साथ आना भी चौंकाने वाली घटना थी . तो क्या यूपी में भी ऐसा मुमकिन है ? इसके पक्ष में जितने तर्क हैं, विपक्ष में उससे ज्यादा, इस पर बात किसी और लेख में.
( गेस्ट हाउस कांड के बारे में ये जानकारी वरिष्ठ पत्रकार अजय बोस की चर्चित किताब ‘ बहन जी’ से ली गई है )