डायरेक्टर साहब सुनते क्यों नहीं ?

पढ़ाई-लिखाई से जुड़े एक महकमे के आईएएस डायरेक्टर साहब की अनसुनी से मंत्रीजी काफी नाराज़ चल रहे हैं। दो-तीन ज़रूरी फाईलें आगे बढ़ाने की बजा डायरेक्टर साहब रखकर बैठ जाते हैं या ऐसे नोट लिख देते हैं कि मंत्रीजी की मंशा पूरी नहीं हो पाती है। नोटशीट पर साहब की टीका टिप्पणी भी ऐसी होती है कि अच्छे-अच्छे भी तो़ड़ नहीं निकाल पाते हैं। बीते हफ्ते तो मंत्री और डायरेक्टर साहब के बीच तनातनी बढ़ने वाला कांड होते-होते रह गया। दरअसल, मंत्रीजी  ने इस बार फाइल वाया ऊपर से भिजवाई थी। डायरेक्टर साहब भी ठहरे नियम-कायदों के जानकार, फिर ऐसी बात लिख दी कि मंत्रीजी को मन मसोसकर रहना पड़ गया है। वैसे, यह भी बता दें कि मंत्रीजी ने अपनी शिकायत पार्टी संगठन में कर दी है। संरकार में भी सही जगह पर बात पहुंचा दी है। अब मंत्रीजी को आगामी दिनों में होने वाली प्रशासनिक सर्जरी का इंतज़ार हैं। 

कार पलटी, चोट लगी लेकिन पुलिस केस नहीं

एक ऐसा वाकया आपको बताते हैं जिससे आपको याद आएगी फिल्म – ‘नो वन किल्ड जेसिका’। यह घटना भी लगभग वैसी ही है, वारदात हुई, चोट भी पहुंची लेकिन वारदात करने वाले का पता नहीं है। जबकि भोपाल पुलिस कमिश्नर की चुस्त पुलिस पुलिस घटना के फौरन बाद पहुंच चुकी थी। आगे बढ़ने से पहले ये ज़रूर बता दें कि घटना में हत्या जैसा कुछ नहीं है। वारदात कुछ यूं है – भोपाल की वीआईपी रोड पर बीते हफ्ते की एक टैक्सी कोटे की लग्जरी कार तेज रफ्तार की वजह से पलटी खा गई। कार में बैठे चार-पांच युवकों को गंभीर चोट आई। युवाओं की टोली, लग्जरी कार और आधी रात के बाद तेज रफ्तार  के बाद एक्सीडेंट की वजह समझाने की ज़रूरत नहीं है। फौरन पुलिस पहुंची और युवाओं का हाईप्रोफाइल परिवार की जानकारी लगते ही अस्पताल पहुंचाकर तुरंत राहत दी गई। कार का इंश्योरेंस लेने के लिए फिलहाल मामला दर्ज करने की मुहूर्त तलाशा जा रहा है। लेकिन वारदात की स्क्रिप्ट तैयार है। कार में मामूली लोग सवार थे। सीक्रेट हम बता देते हैं कि कार एक मंत्रीजी के बंगले पर सेवा दे रही थी और उसमें साहबज़ादे अपने दोस्तों के साथ सवार थे।

भारी पड़ गए 70 रुपए किलो के संतरे

कारोबारी ने वीआईपी को महंगे रेट बताए तो भी मामा के बुलडोजर का इस्तेमाल किया जा सकता है। भोपाल के 10 नंबर मार्केट से यह परंपरा शुरू की जा चुकी है। ठेले वाले ने संतरों की कीमत 70 रुपए किलो बताई थी। इलाके के प्रभावशाली पूर्व विधायक ने वैसे ही संतरे किसी दूसरे मार्केट से सस्ते में खरीद लिए। कीमत करीब आधी थी। साहब को ये बात इतनी नागवार गुजरी की तुरंत बुलडोजर प्रभारी को फोन घुमा दिया। नतीजे में माफिया के मकानों को ज़मीदोज़ करने वाले बुलडोजर ने पूरे मार्केट के हाथठेले साफ कर दिए। व्यापारियों ने पूर्व विधायक के विरोधी पक्ष से संपर्क साधा लेकिन काम नहीं बना। लेकिन यह बात तेजी से व्यापारियों के बीच फैल रही है कि बढ़ती महंगाई के दौरान सत्तापक्ष के किसी भी नेता को ज्यादा रेट नहीं बताना है, अन्यथा कारोबार से ही हाथ धोना पड़ सकता है। 

निशाने पर नगर निगम कमिश्नर

एक बड़े शहर के नगर निगम कमिश्नर एक मंत्री के निशाने पर आ गए हैं। वजह केवल एक है नाफरमानी। मंत्रीजी एक बार नहीं बल्कि कई दफा नाफरमानी और नज़रअंदाज़ी को झेल चुके है। बातचीत तो बिलकुल बंद है ही, अनबन की खबरें भी अब सार्वजनिक होती जा रही हैं। मालवा का ये महत्वपूर्ण शहर लगातार मंत्रीजी की गैरहाजिरी झेल रहा है। किसी तरह मुख्यमंत्री ने बागडोर अपने हाथ में लेकर तालमेल बैठाने की कोशिश जारी कर रखी है। लेकिन न यह मानने को तैयार और न ही वह। कमिश्नर का काम सरकारी मशीनरी में शामिल पुर्जों की तरह अपनी जिम्मेदारी निभाने का है, सो हो रहा है। ऐसा भी नहीं है कि तनानती के बीच शहर का सब कुछ ठीक चल रहा हो। आलम यह है कि भोपाल से लेकर उस शहर के कई अफसरों का काम इस नगर निगम को लेकर बढ़ गया है।

गले की हड्डी बना जबलपुर का सट्टा किंग 

आईपीएल जब तक चलता रहा एमपी के पुलिस वालों का काम बढ़ गया। जहां-तहां सट्टेबाज़ पकड़े जा रहे थे। नई उम्र के नौजवानों के साथ संभ्रांत घरानों के साहबजादे भी ऑनलाइन दांव लगाते नजर आने लगे थे। जबलपुर इलाके में तो दो बड़ी धरपकड़ में 1 करोड़ से ज्यादा कैश का पता लगा। पुलिस को केवल यही पता नहीं लगा कि ऑनलाइन क्रिकेट सट्टे का बाजार गांव-गांव तक फैल चुका है, बल्कि होश फाख्ता हो गए कि सट्टा किंग किसी गल्फ देश में बैठकर सट्टा चला रहा है और इसी इलाके का रहने वाला है। ये सट्टा किंग पहले सतना में छोटी-मोटी चाय की दुकान चलाता था, जबलपुर में आकर काम बढ़ाया और अब गल्फ देश में पहुंचकर कसीनो का मालिक बन चुका है। वहीं से वह ऑनलाइन क्रिकेट सट्टा खेलने के लिए लिंक उपलब्ध कराता है। मामला पुलिस मुख्यालय पहुंचा दिया गया है। अब मुख्यालय के अधिकारी सिर खुजला रहे हैं।

दुमछल्ला…

एमपी कांग्रेस का मीडिया विभाग फिर सुर्खियों में हैं। कमलनाथ ने इसमें नए लोगों को जोड़ने की कवायद की है। जो लोग बाहर किए गए है, उनकी नाराज़गी स्वाभाविक है। लेकिन जो लोग शामिल किए गए हैं, उनकी नाराजगी के चर्चे शुरू हो गए हैं। एक साहब को अपना कार्यक्षेत्र सीमित कर दिया गया है तो दूसरे एक साहब का दिल इसलिए टूट गया कि वे मौजूदा ओहदे को कमतर आंकते हैं। एक साहब की गैरहाजिरी के चर्चे भी शुरू हो गए हैं। वैसे, नई कमेटी के गठन के बाद कांग्रेस में रूठने-मनाने की रस्म आम हैं।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

Read more- Health Ministry Deploys an Expert Team to Kerala to Take Stock of Zika Virus