Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

एक तवे की रोटी, क्या छोटी और क्या मोटी !

एक कहावत है, एक तवे की रोटी, क्या छोटी और क्या मोटी…मगर यहां मामला थोड़ा अलग हो गया. रोटी की साइज में अंतर आता तो बात समझ आ जाती, लेकिन एक के हिस्से की पूरी रोटी ही गायब हो गई. सो विवाद उठ खड़ा हुआ. हुआ कुछ यूं कि कोल खनन के लिए चर्चित एक जिले से अवैध कोयले से भरे दस ट्रकों का परिवहन हुआ. सुनते हैं कि परिवहन में कोई अड़चन ना खड़ी हो इसलिए जिले की पुलिस से तगड़ी सांठगांठ कर ली गई. मामला तब बिगड़ गया, जब अवैध खनन कर निकाला गया कोयला पड़ोसी जिले में खपा दिया गया. इलाका बदल गया था. इसकी जानकारी उस जिले की पुलिस को जा लगी. उच्च पदस्थ अधिकारी ने आनन-फानन में जांच बिठा दी. बाकायदा एक टीम बनाई गई. जांच टीम ने दायरा लांघते हुए उस जिले तक अपनी आमद दे दी, जहां से खेल शुरू हुआ था. जांच करने पहुंची टीम ने मामले से जुड़े एक शख्स के घर दबिश देकर पूछताछ भी कर ली. बताते हैं कि इसके बाद जो हुआ, संभवत: राज्य में पहली मर्तबा हुआ होगा. जिस शख्स के घर दबिश दी गई थी, उससे आवेदन लेकर पूछताछ करने गई पुलिस टीम के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी गई. यानी एक पुलिस ने पुलिस के खिलाफ ही प्रकरण बना दिया, हालांकि ये एफआईआर नामजद नहीं है. अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज की गई है. चर्चा है कि पुलिस महकमे में इस मामले पर खूब चुटकी ली जा रही है. 

क्या कलेक्टर पर गिरेगी गाज?

एक जिले में बलि चढ़ाने से जुड़े एक मामले में शुरू हुए विवाद ने सरकार को नाराज कर दिया है. सुनते हैं कि नाराजगी का आलम ये है कि किसी ना किसी की प्रशासनिक बलि चढ़नी तय है. चर्चा कहती है कि इस नाराजगी में यदि कलेक्टर पर गाज गिर जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी. दरअसल मामले ने खूब तूल पकड़ा हुआ है. विवाद एक धाम में आदिवासी समाज की परंपरा के तहत दिए जाने वाली बलि से शुरू हुआ था. पिछले दिनों विवाद इतना बढ़ा कि दो पक्षों में जमकर मारपीट हो गई. अब इस विवाद ने बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया है. इसकी आड़ में राजनीतिक मकसद पूरे किए जाने की होड़ मच गई है. जाहिर है सरकार भी विवाद को तूल देना नहीं चाहेगी.

तोहफे में महंगी गाड़ियां !

सुनते हैं कि एक विभाग ने अपना सारा पैसा सरकारी बैंक से निकालकर एक प्राइवेट बैंक में रख दिया गया. यह रकम छोटी-मोटी नहीं, बल्कि सैकड़ों करोड़ की है. होगा कोई नियम कायदा, जिसकी आड़ लेते हुए सरकारी बैंक से पैसा प्राइवेट बैंक ट्रांसफर कर दिया गया. इधर पर्दे के पीछे की असल कहानी दिलचस्प है. प्राइवेट बैंक ने इस विभाग के उच्च पदस्थ अधिकारियों को  महंगी गाड़ियां तोहफे में दी हैं. सुनते हैं कुछ पांच-छह गाड़ियां बैंक की तरफ से भेजी गई हैं. कुछ दूसरी सुविधाएं भी. अब सवाल उठ रहा है कि प्राइवेट बैंक की आखिर इस मेहरबानी की वजह क्या है? जो विभाग के अधिकारियों को संसाधनो से सुपोषित करने की जिम्मेदारी उठा रहा है.

बी फाॅर बीजेपी नहीं बवंडर

राजनीतिक गलियारों में बी फॉर बीजेपी की बजाए लोग अब बी फॉर ‘बवंडर’ कहने लगे हैं. बवंडर कहने की वजह पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह का दिया वह बयान है, जिसमें उन्होंने खुलकर कहा कि ”राज्य में अन्य राजनीतिक दलों की मौजूदगी और वोटों के बंटवारे की वजह से बीजेपी को जीत मिलती रही है. मगर अब चुनावी समीकरण बदल गए हैं, छोटे दलों का प्रभाव नहीं रहा. सरकार बनाने के लिए 51 फीसदी वोट चाहिए होंगे”. ना जाने कौन सी घड़ी रही होगी, जो पूर्व मुख्यमंत्री ने यह बयान दे दिया. इस बयान के बाद से बीजेपी में बवंडर मचना लाजमी था . खुसर-फुसर चल रही है. नेताओं की भौहें तनी हुई है. नेता यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या संगठन की अपनी कोई बखत नहीं थी? क्या कार्यकर्ताओं का पसीना यूं ही जाया होता रहा? डॉक्टर रमन सिंह की इस टिप्पणी के बाद संगठन के एक बड़े नेता ने कहा कि इस बयान से साफ इशारा था कि बीजेपी ने साल 2003 में पहला चुनाव विद्याचरण शुक्ला की अगुवाई वाली एनसीपी के चुनावी मैदान में आने की वजह से जीता. एनसीपी ने तब करीब साढ़े सात फीसदी वोट हासिल किया था. 2008 और 2013 के चुनाव में जीत का सेहरा बीजेपी के सिर ना होकर अजीत जोगी के सिर पहनाया जा रहा है. ऐसे में बीजेपी हैं कहां? नेता यब भी कहते सुने जा रहे हैं कि राज्य में अब कांग्रेस पूरी मजबूती से खड़ी है. अजीत जोगी के गुजर जाने के बाद जेसीसी का हाल सब जानते हैं. आम आदमी पार्टी की रणनीति कितनी कारगर होगी कहना मुश्किल है. तो अन्य राजनीतिक दलों की पीठ की सवारी कर बीजेपी सत्ता पाती रही, वह पीठ कौन किसकी होगी? 

’आप स्क्रिप्ट तैयार !

खुद को पढ़े-लिखो और टेक्नोक्रेट्स की पार्टी कहने वाली आम आदमी पार्टी के लिए छत्तीसगढ़ कितना मुश्किल होगा? इसका एक ही जवाब है बहुत मुश्किल. छत्तीसगढ़ गांवों वाला राज्य है. राजनीतिक दृष्टिकोण से आदिवासी बहुलता वाला राज्य. 29 सीटे आदिवासी वर्ग के लिए आऱक्षित, जाहिर है दिल्ली और पंजाब की रणनीति काम आने से रही, सो पार्टी ने छत्तीसगढ़ के लिए अलग स्क्रिप्ट लिख ली है. बताते हैं कि आदिवासी इलाकों के मुद्दों को उठाकर आम आदमी पार्टी अपनी जमीनी पकड़ बनाने के इरादे से काम कर रही है. बताते हैं कि आम आदमी पार्टी ने इस वक्त आदिवासी वर्ग से जुड़े दो बड़े मुद्दों को चुना है. एक हसदेव अरण्य और दूसरा सिलगेर. इन मुद्दों के बूते आदिवासियो की जमीन पर आम आदमी पार्टी अपनी राजनीति का एक पौधा रोप रही है. देखिए पौधा कब तक तैयार होता है.