डाॅ. अस्मिता सिंह गुप्ता, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह की बेटी के तौर पर इनके साथ एक बड़ी पहचान जुड़ी हुई है, लेकिन अस्मिता इस पहचान से परे भी हैं. अस्मिता एक ऐसी इंडिपेंडेंट वूमन हैं, जिनकी सोच समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की हैं. खासतौर पर वूमेन एंपावरमेंट को लेकर अस्मिता की राय बेबाक है. वह कहती हैं कि हमें किसी ने नहीं रोक रखा हैं, सच है कि हमने खुद को रोक रखा है. यदि महिलाएं एक दूसरे के अधिकारों की खुद रक्षा करने लगें, तो मुझे नहीं लगता कि हमें हमारी आजादी से कोई भी रोक नहीं पाएगा. अस्मिता सिंह छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में मेडिकल कैंप लगाकर लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के साथ-साथ  टोनही प्रताड़ना के मामलों में जनजागरूकता लाए जाने की मुहिम में भी जुटी हैं. लेकिन इस बीच राजनीति में सक्रियता के सवाल पर दो टूक कहती हैं कि उनके परिवार से उनके पिता और भाई राजनीति में सक्रिय हैं. पिता जिस दिन कहेंगे कि राजनीति में आने का अब समय आ गया हैं, तब देखा जाएगा. फिलहाल उनका काम सपोर्ट करने का है. देश में जिस वक्त अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर महिला सशक्तिकरण पर जोर दिए जाने की वकालत की जा रही हैं. उस बीच लल्लूराम डाॅट काॅम ने महिला सशक्तिकरण को एक नया आयाम देने में जुटी डाॅ.अस्मिता सिंह गुप्ता से कई अहम मुद्दों पर चर्चा की है. लल्लूराम डाॅट काॅम संवाददाता रजनी ठाकुर से हुई उनकी बातचीत के प्रमुख अंश –
रजनी ठाकर-  आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस हैं. महिला सशक्तिकरण की हर जगह चर्चा की जाती है. महिला सशक्तिकरण आप की नजर में क्या है ?
डाॅ. अस्मिता सिंह गुप्ता–   ‘ वूमन एंपावरमेंट ‘ यानी महिला सशक्तिकरण. ये शब्द बड़ा पावरफूल है. इसके कई तरह के रूप हैं. कई तरह से इस शब्द को सोच में ढाल सकते हैं. दरअसल महिलाएं हमेशा से ही सशक्त रही हैं. महिला सशक्तिकरण की सोच का हम बार-बार जिक्र इसलिए करते हैं, क्योंकि हम उन्हें उनके अधिकारों को याद दिलाना चाहते हैं. वैदिक काल से देखें, तो भारतीय संस्कृति में महिला सशक्तिकरण जैसे शब्दों की जरूरत ही नहीं पड़ती थी, क्योंकि महिलाएं सक्षम थीं. जब उन्हें जरूरत पड़ती थी, वह अपनी तलवारें भी उठाती थीं. जरूरत पड़ने पर अपनी खुद की रक्षा भी करती थी. हमारी संस्कृति में महिला सशक्तिकरण जैसे शब्द तब आए, जब हम दूसरी सभ्यताओं से प्रभावित हुए. पुरूष प्रधान समाज बनता चला गया. महिला सशक्तिकरण आज एक ऐसी सोच हैं, जहां महिला, दूसरी महिला को ही सशक्त कर सकती है. मैं कहती हूं कि महिला सशक्तिकरण की शुरूआत बाहर से नहीं बल्कि घर से ही होनी चाहिए. एक मां का बेटी से, बेटी का मां से, एक सास का बहू से, बहू का सास के प्रति नजरिया भी महिला सशक्तिकरण हैं. बाहर की लड़ाईयां अलग है, लेकिन सबसे पहले घर से शुरूआत होनी चाहिए. एक महिला को दूसरी महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के साथ यह शुरूआत किए जाने की जरूरत है.
रजनी ठाकुर- मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह की बेटी के तौर पर आपकी पहचान हैं, लेकिन आपकी एक व्यक्तिगत जिंदगी भी हैं. आपकी खुद की नजर में अस्मित सिंह गुप्ता कौन हैं ?
डाॅ.अस्मिता सिंह गुप्ता- सबसे पहले अस्मिता छत्तीसगढ़ में पैदा हुई एक लड़की है. जो अपनी ग्रोथ कर रही है. जो अपने साथ पूरे प्रदेश को बढ़ाना चाहती हैं. जब हम पैदा हुए तब यह सब नहीं था. मैं कवर्धा में पैदा हुई. मैंने और मेरे भाई ने सरस्वती शिशु मंदिर से पढ़ाई की. उस दौरान हमने जो सीखा, जो संस्कार मिला, यह सब उसकी ही देन है. उन संस्कारों को लेकर ही हमने चलता सीखा है और उन्हीं संस्कारों के जरिए अस्मिता की आइडेंटिटी बनाना चाहूंगी. मुझे अपने डैडी ( डाॅ.रमन सिंह) की बेटी होने से गर्व महसूस होता है. पिता को अच्छा काम करते देखना सुकून देता हैं. इतने बड़े पद पर बैठे देखना मुझे बहुत गौरवान्वित करता हैं. मुझ पर मेरे परिवार की देखभाल की बड़ी जिम्मेदारी भी हैं. इसके साथ-साथ छत्तीसगढ़ भी मेरी अहम जिम्मेदारियों में शामिल है. मैं डाॅक्टर हूं. मेरा पेशा भी मुझे जिम्मेदारी का एहसास कराता है. जब मैंने डाॅक्टरी की पढ़ाई की, उस दौरान यह सीखा की एक डाॅक्टर की पहली जिम्मेदारी हैं, लोगों को जागरूक करना. तकलीफों के पहले लोगों को जागरूक करने की भी मेरी जिम्मेदारी हैं. छत्तीसगढ़ ट्रायबल स्टेट हैं. हेल्थ के प्रति जागरूकता कम है. मैं लोगों को इन हेल्थ के प्रति जागरूक करूं, यह मेरी बड़ी जिम्मेदारी है. मैं घर पर बोलने के लिए बहुत फेमस हूं. कोशिश है कि  अच्छी बातें समाज में करूं और इसके जरिए ही लोगों को जागरूक करूं. मैं बेटी, पत्नि और अपनी जिम्मेदारियों के तीनों रोल को बैलेंस कर कर चलती हूं. मेरा छोटा बच्चा हैं, सास-ससुर और पति के प्रति भी मेरी जिम्मेदारियां हैं. मेरी कोशिश है कि मैं अपने दोनों परिवारों में अपने दायित्वों के बेहतर निर्वहन के साथ-साथ छत्तीसगढ़ की बेटी बनकर अपनी जिम्मेदारियों को निभाती चलूं.
रजनी ठाकुर- अक्सर आप ग्रामीण इलाकों में मेडिकल कैंप लगाती हैं. खासतौर पर वहां की महिलाओं के लिए विशेष तौर पर आपका अभियान चल रहा है. आपका अनुभव कैसा रहा है. छत्तीसगढ़ की महिलाओं के सामने किस तरह की चुनौतियां  हैं, जिसे आपने महसूस किया है ?
डाॅ. अस्मिता सिंह गुप्ता-  छत्तीसगढ़ की मिट्टी में सीधापन है. हम दुनियादारी नहीं जानते. हम अपने में ही खुश रहना जानते हैं. मैं डेंटिस्ट हूं. पढ़ने-लिखने के बाद मुझे महसूस हुआ कि लोगों के बीच जाकर उन्हें जागरूक करूं. मैंने देखा कि बड़े शहरों में लोग डाॅक्टरों के खूब एडवरटाइजमेंट देखते हैं. हम यहां लगातार डाॅक्टरों से इंटरेक्ट करते रहते हैं. शहरों में डाॅक्टरों की संख्या भी बहुत होती है. यही वजह रही कि मेरा रूझान गावों में कैंप लगाने की ओर होता चला गया. मैं हमेशा अपने कैंपों में लोगों से कहती हूं कि मुंह में सरस्वती का वास होता है. हम जब पूजा करते हैं, तो मुंह को साफ रखना चाहिए. कैविटी पर ध्यान देना चाहिए. सफाई मेंटेन करनी चाहिए. जानकारी नहीं होना ही एक बड़ा चैलेंज होता है. जब मरीज की परेशानियों को हम बेहतर ढंग से ना समझ पाए, तो ऐसी स्थिति में सफल डाॅक्टर नहीं होंगे. यही वजह है कि मेरी कोशिश अंदरुनी इलाकों तक पहुंचकर लोगों से मिलकर उन्हें स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करूं. छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में टोनही बताकर महिलाओं को प्रताड़ित किए जाने के मामलों को देखकर बहुत दुख होता रहा है. लिहाजा कोशिश कर रही हूं कि गांवों में जाकर मितानिनों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से मिलकर ऐसी सोच को बदल सकूं. यदि कोई मानसिक रूप से बीमार हैं, तो उसके साथ ट्रीटमेंट होना चाहिए ना कि गलत व्यवहार होना चाहिए. मैं कोशिश करती हूं कि लोगों के बीच एक बेटी बनकर उन्हें इसके प्रति जागरूक कर सकूं.
रजनी ठाकुर- मुख्यमंत्री बनने के पहले डाॅ.रमन सिंह खुद एक चिकित्सक रहे हैं. क्या डाॅक्टर बनने की प्रेरणा उनसे मिली?
डाॅ. अस्मिता सिंह गुप्ता – जब मैं बहुत छोटी थी तब से डैडी ( डाॅ.रमन सिंह) को अपना प्रेरणास्त्रोत मानती हूं. हर बच्चा बड़ा होकर अपने पापा की तरह बनना चाहता है. बचपन से मैंने डैडी को करीब से देखा हैं. वह सोशली काफी एक्टिव रहे हैं. लोगों की परेशानियों को देखकर उन्हें काफी दर्द होता रहा है. कहीं ना कहीं यह चीज हमारे संस्कारों में भी जुड़ गया. एक बढ़ते बच्चे के मन में उसके पिता का जैसा प्रभाव पड़ता है, ठीक वैसा ही प्रभाव रहा है. वह संस्कार हमारे भीतर भी आ गया. पिता के दिए इस संस्कार के तहत ही चल रहे हैं.
रजनी ठाकुर- डाॅ.रमन सिंह के नक्शे कदम पर आप जिस तरह से चल रही हैं, क्या भविष्य में हम अस्मिता सिंह गुप्ता को राजनीति में देख सकते हैं ?
डाॅ. अस्मिता सिंह गुप्ता- इंट्रेस्ट का तो नहीं पता. मैं खुद को एबिंयस फिमेल भी नहीं कहना चाहती. हम वह करते हैं, जो अपने मां-बाप को देखकर सीखते हैं. राजनीति बहुत ही अलग पड़ाव है. मेरे परिवार में दो व्यक्ति राजनीति कर रहे हैं. उनकी कोशिश रहती है कि राजनीति में रहते हुए सबका भला कर सकें. इन सबके बीच मेरा, मेरी मम्मी ( वीणा सिंह), भाभी ऐश्वर्या का इंपोर्टेंट रोल हैं कि हम उनका सपोर्ट करें. इस सवाल का जवाब मैं नहीं दे सकती. मेरा काम हैं अपने परिवार को सपोर्ट करना. मैं राजनीति में आने के बारे में बहुत ज्यादा सोचती नहीं हूं. मैं आज में जीती हूं. कल पर भरोसा नहीं करती. आगे जैसा होता चला जाएगा, वैसा करती चली जाऊंगी. जब तक डैडी ( डाॅ.रमन सिंह) नहीं कहेंगे, मैं राजनीति में नहीं आऊंगी. जब वह कहेंगे कि अब समय है और अच्छा काम करने आना चाहिए, तब देखा जाएगा. मैं चाहती हूं कि अभी मेरे डैडी और भाई आगे बढ़ें और हम उनका सपोर्ट करते रहें.
रजनी ठाकुर-  कहा जाता है कि एक बेटी अपने पिता के बेहद करीब होती हैं. आप किसके करीब हैं ?
 
डाॅ.अस्मिता सिंह गुप्ता-  हमारे देश में माना जाता है कि बेटियां पिता की तरह और बेटे मां की तरह होते हैं. मेरे और डैडी के बीच पिता- बेटी से ज्यादा एक दोस्त का रिश्ता है. मुझे गुस्सा आता है, तो पिता को बेटी के हक से डांटती भी हूं. जब परिवार के लोग बैठते हैं, तो हर सामान्य परिवार की तरह ही हम बैठते हैं. किसी भी सामान्य परिवार की तरह ही हमारा आपस में एक-दूसरे से व्यवहार होता है. मेरा झुकाव डैडी के प्रति ज्यादा है. डैडी मेहनत भी बहुत करते हैं.
रजनी ठाकुर- आज भी पूरी तरह से महिलाओं को आजादी नहीं मिल रही. आपके लिए महिलाओं की आजादी के मायने क्या हैं ?
डाॅ. अस्मिता सिंह गुप्ता- हम आजाद अपने मन से होते हैं. औरतों में हिम्मत होती है कि अगर सोच लें और लगता है सही रास्ता है, तो फिर उसे कोई नहीं रोक सकता. आज के जमाने में एक फिमेल ही दूसरी फिमेल को रोकती हैं. जिस दिन फिमेल दूसरी फिमेल का हाथ पकड़कर आगे बढ़ेंगी, मुझे नहीं लगता हमें हमारी आजादी से कोई रोक पाएगा. महिला सशक्तिकरण के लिए यह एक बड़ा कदम होगा. एक फिमेल को दूसरी फिमेल के प्रति रिस्पेक्ट की भावना लाएगी तो देश में अच्छा बदलाव होगा. हमें एक-दूसरे का साथ देना हैं. हमें किसी ने नहीं रोका है. हमने एक-दूसरे को ही रोक रखा है. नया जमाना है, हम पढ़ लिखकर आ रहे हैं. हमें इस सोच को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. मैं पढ़ लिखकर आगे बढ़ रही हूं तो मेरी जिम्मेदारी होनी चाहिए कि 25 दूसरी महिलाओं को प्रेरित करूं.
रजनी ठाकुर- जिंदगी में बहुत से लोग आपसे जुड़े हुए हैं. कई लोगों का प्रभाव आप पर रहा हैं. आज आप जो कुछ भी हैं, जिंदगी में आपने जो भी पाया हैं. उसके लिए सबसे ज्यादा शुक्रिया किसे कहना चाहेंगी ?
डाॅ.अस्मिता सिंह गुप्ता-  इसकी लिस्ट तो बहुत बड़ी है. एक इंसान जब कुछ बनता है, तो एक-दो नहीं बल्कि परिवार के हर सदस्य का कहीं ना कहीं छोटा सा हिस्सा जरूर होता है. मैं ज्वाइंट फैमिली में पली बढ़ी हूं. मेरे दादा ठाकुर विघ्नहरण सिंह जैसी सोच उस जमाने में मैंने नहीं देखी. मेरी दादी जैसी हिम्मती मैंने किसी को नहीं देखा. अब वह दोनों हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन मैं उन्हें हर पल धन्यवाद देती हूं. पैरेंट्स ही हमें बनाते हैं. मैं आधी डैड हूं, तो आधी मम्मी. मैं हमेशा कहती हूं चाहे मैं जो कुछ भी रहूं, आधी डैड और आधी मां की रहूंगी.  इनके अलावा वह सारे लोग जिनके बीच हम पले पढ़े उन सबको मैं धन्यवाद देती हूं. सिखने के लिए किताबें पढ़ना जरूरी नहीं है. केवल भाव को देखकर ही हम बहुत कुछ सीख सकते हैं.
रजनी ठाकुर- बचपन में कई घटनाएं होती हैं. जो हमेशा हमारे साथ होती हैं. ऐसा कोई वाक्या आपको याद आता हैं, जिसे सोचकर चेहरे पर खुशी आ जाती है. ऐसी कोई घटना आपके जेहन में हैं, जिसने आपको एक बड़ी सीख दी हो ?
डाॅ. अस्मिता सिंह गुप्ता- जब हम छोटे थे, उस दौरान घर में डैडी की राजनीति में खूब उतार-चढ़ाव देखा. उस वक्त को बयां कर पाना बेहद मुश्किल है. घर में दुख जैसा माहौल था. मैं और भैया छोटे थे. समझ नहीं पा रहे थे कि हो क्या रहा है. उस वक्त मैंने अपने डैडी ( डाॅ.रमन सिंह) को देखा. बहुत से लोगों को करीब आना और बहुत करीब लोगों को दूर जाते देखा. इसका मुझ पर और मेरे भाई पर काफी असर हुआ. चीजें आती-जाती रहती हैं, लेकिन उनसे बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए. उस वक्त जो भी वाक्या हुआ, वह बहुत कुछ सीखा गया. वह दो छोटे बच्चों के लिए सीख का वक्त था. जब हम हारे हुए थे. उसके बाद जीतना भी बड़ी सीख दे गया. अब जब कभी भी लगता है कि हम गलत रास्ते पर हैं. तो बचपन की वह सीख याद आ जाती है और फिर हम सहीं रास्ते पर आ जाते हैं.
रजनी ठाकुर- डाॅ.रमन सिंह को पिता के तौर पर आपने बेहद करीब से देखा हैं. एक मुख्यमंत्री के तौर पर उन्हें किस तरह से देखती हैं ?
डाॅ. अस्मिता सिंह गुप्ता-  मैंने नहीं देखा कि डैडी ने खुद को कभी मुख्यमंत्री कहा हो. उन्होंने हमेशा अपने आप को जनता का सेवक ही कहा है. यह महसूस भी किया है. घर पर हम ये महसूस नहीं करते वह मुख्यमंत्री हैं. जब वे मुख्यमंत्री बने उन्होंने मुझसे कहा था कि मेरे दो बच्चे हैं उन्हें पढ़ा लिखा लिया हैं और संस्कार दे दिया है. अब तीसरा बच्चा हैं, वह है छत्तीसगढ़. इसे वहीं संस्कार देना है, जो मैंने अपने बच्चों को दिया हैं. मेरे डैडी के लिए छत्तीसगढ़ की धरती एक मां की तरह, एक बच्चे की तरह रही है. यह दिल की भावनाएं हैं.  उनकी यह बातें यह समझा गई कि उनके लिए छत्तीसगढ़ की जनता उनके परिवार की तरह हैं. वह छत्तीसगढ़ की जनता, यहां की धरती को अपना मानते हैं. वह मुख्यमंत्री रहे या ना रहे जिस पोजीशन में होंगे. छत्तीसगढ़ के लिए ऐसा ही काम करते रहेंगे.
रजनी ठाकुर- आपका एक और परिवार हैं, जहां आप एक पत्नि हैं, बहू हैं और मां भी हैं. आपकी अपनी जिम्मेदारियों के बीच डाॅ. पुनीत गुप्ता के साथ आपकी कैसी बांडिंग है ?
डाॅ. अस्मिता सिंह गुप्ता- एक औरत के लिए बड़ा ट्रांजिशन होता है जब अपने मां बाप के घर से अपने सास ससुर के घर पहुंचती हैं. सब कुछ नया होता है. लव मैरिज में बस इतना अंतर होता है कि थोड़ी बात कर लेते हैं. हम दोनों डाॅक्टर हैं. हमारी अंडर स्टैडिंग अच्छी मैच खाती हैं. मेरे ससुर से ज्यादा अच्छा इंसान और डाॅक्टर मैंने नहीं देखा. मेरे सास-ससुर मेरे लिए मां बाप से कम नहीं हैं, बल्कि उनसे ज्यादा ही है. मैं जितनी अपनी सास से खुली हुई हूं, उनके साथ मैं जितनी मस्ती से रही हूं, उतना मम्मी के साथ भी नहीं रहती. आज मेरे भीतर जो जिम्मेदारी हैं, उसमें मेरी पति और सास ससुर की सोच बहुत महत्वपूर्ण है. मैं अपने ससुर से पिता की तरह खुली हुई हूं. मैं उन्हें काल करके कहती हूं कि पापा घर आ जाइए बात करनी है. मै लकी हूं मेरा दोनों परिवार मुझे समान प्यार देता है. मेरे पति डाॅ. पुनीत गुप्ता मुझे बहुत फ्रीडम देते हैं. अपनी सोच व्यक्त करने में, विचार रखने में. इसलिए ही मेरी जिम्मेदारी महिलाओं के प्रति और बढ़ जाती हैं कि उन्हें उनके अधिकार औऱ सम्मान के प्रति जागरूक कर सकूं.
रजनी ठाकुर- अब आपके परिवार में एक नन्हीं सदस्य भी आ गई हैं. कितना बदला है माहौल घर का. छोटी बिटिया खुशी लेकर आती है ?
डाॅ. अस्मिता सिंह गुप्ता-  जब से  वह आई हैं, मैं अपने आप को बहुत पावरफूल महसूस करती हूं. वह अलग हैं. बच्ची का आना इस घर में इतनी खुशियां लाया है कि हम बात करने से भी डरते हैं. लगता हैं इन खुशियों पर किसी की नजर ना लगें. डाॅक्टर और बुआ के तौर पर मैं उसे अपने अंडर रखना चाहती हूं. उसे हम सब छोटी माता कह कर बुलाते हैं. उसे जो मन करता हैं, वह कहते हैं. नाम के लिए थोडा वेट करना होगा.
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