रायपुर. दान का शाब्दिक अर्थ है – देने की क्रिया. सभी धर्मों में सुपात्र को दान देना परम् कर्तव्य माना गया है. हिन्दू धर्म में दान की बहुत महिमा बताई गई है. सात्विक, राजस और तामस, इन भेदों से दान तीन प्रकार का कहा गया है. जो दान पवित्र स्थान में और उत्तम समय में ऐसे व्यक्ति को दिया जाता है, जिसने दाता पर किसी प्रकार का उपकार न किया हो वह सात्विक दान है. अपने ऊपर किए हुए किसी प्रकार के उपकार के बदले में अथवा किसी फल की आकांक्षा से अथवा विवशतावश जो दान दिया जाता है वह राजस दान कहा जाता है. अपवित्र स्थान और अनुचित समय में बिना सत्कार के अवज्ञतार्पूक और अयोग्य व्यक्ति को जो दान दिया जाता है, वह तामस दान कहा गया है.

कायिक, वाचिक और मानसिक इन भेदों से पुन दान के तीन भेद गिनाए गए हैं. संकल्पपूर्वक जो सूवर्ण, रजत आदि दान दिया जाता है वह कायिक दान है. अपने निकट किसी भयभीत व्यक्ति के आने पर जौ अभय दान दिया जाता है वह वाचिक दान है. जप और ध्यान प्रभृति का जो अर्पण किया जाता है उसे मानसिक दान कहते हैं.

कीर्तिभवति दानेन तथा आरोग्यम हिंसया त्रिजशुश्रुषया राज्यं द्विजत्वं चाऽपि पुष्कलम.
पानीमस्य प्रदानेन कीर्तिर्भवति शाश्वती अन्नस्य तु प्रदानेन तृप्तयन्ते कामभोगतः..

दान से यश, अहिंसा से आरोग्य तथा ब्राह्मणों की सेवा से राज्य तथा अतिशय ब्रह्मत्व की प्राप्ति होती है. जलदान करने से मनुष्य को अक्षय कीर्ति प्राप्त होती है. अन्नदान करने से मनुष्य को काम और भोग से पूर्ण तृप्ति मिलती है. दानी व्यक्ति को जीवन में अर्थ, काम एवं मोक्ष सभी कुछ प्राप्त होता है. कलयुग में कैसे भी दिया गया दान मोक्षकारक होता है. तुलसी दासजी ने कहा है- प्रगट चार पद धर्म कहि कलिमहि एक प्रधान येन केन विधि दिन्है दान काही कल्याण. दान की महिमा का अन्त नहीं संसार से कर्ण जैसा उदाहरण दानी के रूप में कोई नहीं. दान के बारे में कहा जाता है कि कमाएं नीति से, खर्च करें रीति से, दान करें प्रीति से. गुप्त दान (जिसका जिक्र न किया जाए) को सर्वश्रेष्ठ दान माना गया है. जो दान बिना स्वार्थ के गुप्त रूप से किया जाता है वह बहुत ही पुण्य कारी माना जाता है. इससे व्यक्ति को पापकर्मों का नाश होता है और पुण्य कर्मों में बढ़ोत्तरी होती है. दान करते समय भी कुछ बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है.

नव ग्रहों की शांति के लिए ज्योतिष शास्त्र में अनेक उपाय सुझाए गए हैं जैसे- मंत्र, जाप, हवन, दान, औषधि स्नान, तीर्थ, व्रत, यंत्र-मंत्र, नग आदि. इनमें से दान सबसे सरलतम उपाय है जो जातक को अपनी कुण्डली विश्लेषण के उपरान्त अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए समय-समय पर करते रहना चाहिए. पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार मानव को सुख दुख प्राप्त होते हैं. मानव अनेकों प्रकार की समस्याओं का सामना करता रहता है. पूर्णतः कष्ट निवारण का तो कोई भी सामर्थ्य नहीं रखता है किन्तु उपाय दान आदि से कष्ट कम अवश्य हो जाता है.

अन्नदान, वस्त्रदान, विद्यादान, अभयदान और धनदान, ये सारे दान इंसान को पुण्य का भागी बनाते हैं. किसी भी वस्तु का दान करने से मन को सांसारिक आसक्ति यानी मोह से छुटकारा मिलता है. ज्योतिष के अनुसार अलग -अलग वस्तुओं के दान से अलग-अलग समस्याएं दूर होती हैं. गुप्त दान से भगवान वेणु माधव को ज्ञात होता है कि गुप्त दान किया गया, जिसका फल व्यक्ति के इस जीवन और पर जीवन में भी मिलता है. अतः जीवन में मोक्ष की कामना से गुप्त दान करना चाहिए.