शरद पाठक, छिंदवाड़ा। एक तरफ जहां मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव की गहमागहमी जोरों से चल रही है. वहीं छिंदवाड़ा जिले में दो पंचायत ऐसी है, जहां ना चुनाव का शोर होगा. ना कोई मतदान होगा. ना नेताओं का जमावड़ा होगा. ना वोट के लिए मिन्नते की जाएंगी. दरअसल सौंसर ब्लॉक के रोहना ग्राम पंचायत में ग्रामवासियों ने चुनाव का बहिष्कार करने का निर्णय किया है. इसी तरह पांढुर्णा की गुजरखेड़ी ग्राम पंचायत में विकास नहीं होने से ग्रामीणों ने चुनाव बहिष्कार का ऐलान किया है. इस चुनाव में पंच और सरपंच के लिए एक भी फॉर्म जमा नहीं हुआ है. अब तारीख भी निकल चुकी है. इसलिए अब यहां चुनाव होना संभव भी नहीं है.
गांव में एक आदिवासी परिवार, फिर नहीं बदला आरक्षण
रोहना ग्राम पंचायत के ग्रामवासियों का कहना है कि यह गांव एकीकृत आदिवासी परियोजना के अंतर्गत आदिवासी ग्राम घोषित है. इसलिए पिछले 25 सालों से यह पंचायत लगातार आदिवासी सरपंच और पंच चुनने के लिए बाध्य है. रोटेशन का नियम यहां पर लागू नहीं होता है. इस गांव में मात्र एक दो घर आदिवासियों के हैं, बाकी पूरी पंचायत में ज्यादातर ओबीसी वर्ग के लोग हैं या सामान्य वर्ग के निवासी है. आदिवासी सरपंच चुनने की बाध्यता के चलते यहां के निवासी अपनी पसंद का सरपंच नहीं चुन पाते हैं. सरपंच के अतिरिक्त 10 में से 6 वार्ड आदिवासी घोषित है. जिनके लिए पांच प्रत्याशी मिलना भी मुश्किल है, क्योंकि गांव में एकमात्र आदिवासी परिवार है और उसमें कुल 7 सदस्य हैं.
प्रशासन से की शिकायत, फिर भी नहीं हुई सुनवाई
ग्रामवासियों ने इस समस्या को लेकर पहले भी प्रशासन को कई बार ज्ञापन सौंपा है, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. ग्रामवासियों का कहना है कि हमारे गांव में आदिवासी आबादी नहीं होने के कारण इसे एकीकृत योजना से हटाकर सामान्य रूप से रोटेशन पद्धति को लागू किया जाए. ताकि गांव का समुचित विकास हो सके. गांव वालों का कहना है कि अभी तक हमें एकीकृत आदिवासी परियोजना का हिस्सा होने के बावजूद भी योजना का कोई लाभ नहीं मिला है और ना ही हम अपनी बात को जिला प्रशासन के सामने रख पाते हैं. गांव में आज तक मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. ग्रामवासियों की कहीं सुनवाई भी नहीं होती है.
सड़क नहीं तो, वोट नहीं
गुजरखेड़ी ग्राम पंचायत के ग्रामीणों का कहना है कि वे 15 सालों से 5 किलोमीटर की सड़क के लिए मांग कर रहे हैं. सड़क पहले बनी थी लेकिन खराब हो गई. अब मजबूरी है कि लोगों को खराब सड़क में सफर करना पड़ता है. इस बारे में कई बार जनप्रतिनिधि समेत प्रशासन को लिखित आवेदन दिया गया. लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं सुनी आखिरकार मजबूरी में उन्होंने चुनाव के बहिष्कार का फैसला लिया है. इतना ही नहीं उन्होंने कहा है कि अगर हमारे गांव में अब कोई भी जनप्रतिनिधि प्रचार करने आएगा, तो उसे प्रवेश भी नहीं करने दिया जाएगा क्योंकि जब तक रोड नहीं तब तक वोट नहीं यह नारा बुलंद रहेगा. 3 गांवों को मिलाकर गुजरखेड़ी ग्राम पंचायत बनी है. इस ग्राम पंचायत में गुजरखेड़ी, अम्बाडाखुर्द और जूनापानी गांव में कुल 1266 मतदाता है. लेकिन इस बार यहां पर ग्राम पंचायत चुनाव के लिए वोट नहीं डाले जाएंगे, क्योंकि ग्राम पंचायत के सरपंच और पंच के लिए किसी ने भी नामांकन दाखिल नहीं किया है.
अधिकारियों ने क्या कहा ?
इस मामले में जिला प्रशासन का कहना है कि ऐसी ग्राम पंचायतें जहां पर नामांकन दाखिल नहीं हुए हैं उनकी सूची बनाकर निर्वाचन आयोग को भेजी जाएगी. निर्वाचन आयोग इस मामले में जो भी निर्देश करेगा उस हिसाब से कार्रवाई की जाएगी. इस मामले में मुख्य चुनाव आयुक्त बी पी सिंह का कहना है कि पूरे प्रदेश से जब ऐसे पंचायतों की सूची आएगी. वहां पर फिर से चुनाव प्रक्रिया संपन्न कराने की कार्रवाई की जा सकती है या फिर संविधान विशेषज्ञों से राय लेकर इसका हल निकाला जाएगा.
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