संजीव शर्मा, कोंडागांव। आपने अक्सर लोगों को सब्जी के लिए कच्ची लौकी खरीदते देखा होगा, लेकिन हम छत्तीसगढ़ के ऐसे दो भाइयों की कहानी बताएंगे, जो सूखी लौकी बेंचकर अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं. अपना जीवन यापन कर रहे हैं. खराब लौकी को पहले ज्यादा कीमत पर खरीदते हैं, फिर उसको अपनी मेहनत की खूबसूरती लगाकर अच्छी कीमतों में बेचते हैं.

दरअसल, ये दो भाईयों की कहानी छत्तीसगढ़ के कोंडागांव की है, जो सूखी लौकी खरीदकर उसे कलाकृति में बदलते हैं. ये दोनों भाई बस्तर के जनजातीय जीवन का हिस्सा लौकी से आर्कषक कृतियां बनाते हैं. एक भाई का नाम दीपक, दूसरे का जगत और जगत की पत्नी तिलोचनी मिलकर लौकी पर कलाकृति करते हैं. इन्होंने कुछ करने की चाह में शिल्प की एक नई विघा का सृजन कर डाला है.

खेत में खराब हो चुकी लौकी की फसल से दो भाइयों ने देशभर में अब अपनी पहचान बना ली है. शिल्प गढ़ने की कला से अब देशभर में प्रदर्शनी लगा रहे हैं. तुमा शिल्प के लिए दीपक देवांगन को 2009-10 में राज्यस्तरीय पुरूस्कार, जगत देवांगन को 2007 में सुरजकुंड में राष्ट्रीय पुरूस्कार, 2009 में कलामणी अवॉर्ड और उनकी पत्नी तिलोचनी देवांगन को 2019-20 में राज्यस्तरीय पुरूस्कार मिल चुका है.

कोंडागांव के दो भाई दीपक देवांगन और जगत देवांगन लौकी (तुमा शिल्प) के लिए प्रदेश ही नहीं पूरे देश में इनकी पहचान बन चुकी है. तुमा ब्रदर के नाम पर दीपक देवांगन को वर्ष 2009 -10 में छत्तीसगढ़ का राज्य स्तरीय पुरूस्कार मिल चुका है. अब देश का ऐसा कोई महानगर नहीं बचा, जहां इन दो भाईयों की तुमा शिल्प की प्रर्दशनी न लगी हो.

शहर के पलारी में रहने वाले दीपक देवांगन और जगत देवांगन ने बताया कि बाड़ी में बेचने के लिए बहुत सी लौकी लगाई जो बिकी नहीं सूखकर गिर गई. हमने सभी को एकट्ठा किया और उस पर कुछ शिल्प बनाने की कोशिश की, जिससे आज देशभर में पहचान बनी है.

उन्होंने कहा कि सूखी और खराब लौकी से हमारी पहचान तुमा लौकी शिल्प से देश भर में हो जाएगी. हम ग्रामीणों से कच्ची लौकी से अधिक दाम देकर सूखी लौकी खरीदते हैं. कच्ची लौकी जहां 10 से 20 रुपये में बिकती है. वहीं बाड़ी में ही सूखी लौकी 30 से 40 रुपये में ले रहे हैं.

आसान नहीं लौकी पर शिल्प बनाना
इन भाईयों ने बताया कि पहले सूखी लौकी को उतार कर पखवाड़े भर के लिए पानी में डूबाकर रखते हैं. फिर एक सप्ताह सुखाते हैं. उसके बाद उस पर कलाकृति कर पॉलिश से अंतिम टच देते हैं. इसके अलावा लैम्प झुमर, भगवान की मूर्तियां, शो पीस, होम डेकोरेट सामान के अलावा इसी तूमे पर बस्तर की संस्कृति के विभिन्न स्वरूप बनाते हैं.

चित्रकुट में लगाते है स्टॉल
दीपक कोंडागांव में तो जगत देवांगन और उनकी पत्नि तिलोचनी देवांगन अब चित्रकुट में बस गए हैं. उन्होंने बताया कि वहां अक्सर देश भर से पर्यटक आते रहते हैं. उनकी तुमा शिल्प को हाथों हाथ खरीद ले जाते हैं, तो दीपक कोंडागांव के अलावा देशभर के महानगरों में अपनी इस कला के स्टॉल लगाते हैं.

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