रायपुर. शिक्षा का अधिकार कानून पूरे देश में वर्ष 2009 से लागू है, लेकिन छत्तीसगढ़ में यह कानून वर्ष 2010 से प्रभावशील है. इस नियम से लाखों छात्रों का भविष्य़ अधर में लटकता दिख रहा है. शिक्षा विभाग की लापरवाही से स्टूडेंट संकट में हैं, तो वहीं अधिकारी कटघरे में खड़े नजर आ रहे हैं. इस फरमान ने RTE के तहत पढ़ने वाले छात्रों का भविष्य खतरे में पड़ रहा है. अलग-अलग उम्र के कारण बच्चों की परेशानी बढ़ जाएगी.
इस कानून में कक्षा पहली में प्रवेश के लिए उम्र 6 वर्ष निर्धारित किया गया है, लेकिन छत्तीसगढ़ के शिक्षा विभाग और लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा शिक्षा का अधिकार कानून के अंतर्गत कक्षा पहली में प्रवेश के लिए उम्र 5 वर्ष से लेकर 6 वर्ष 6 माह निर्धारित किया गया है.
यही शिक्षा विभाग और लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा पहली में प्रवेश के लिए उम्र 5 वर्ष 5 माह से लेकर 6 वर्ष 5 माह निर्धारित किया गया है, जिसको लेकर पालको में भ्रम की स्थिति निर्मित हो गई है.
छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिस्टोफर पॉल ने इस मामले को लेकर डीपीआई में उच्च अधिकारीयों से मिलकर कक्षा पहली में प्रवेश के लिए सही उम्र कानून के प्रावधानों के अनुसार निर्धारित करने की मांग की है.
वहीं उच्च अधिकारीयों को यह अवगत कराया गया कि प्रदेश में पालक कक्षा पहली में प्रवेश के लिए निर्धारित अलग-अलग आयु सीमा को लेकर भ्रमित हैं. जानकार बता रहे हैं कि केन्द्रीय कानून में जब कक्षा पहली के लिए उम्र निर्धारित किया गया है तो राज्य को इसमें संशोधन करने का अधिकार नहीं है. यदि शिक्षा का अधिकार कानून में कक्षा पहली की उम्र 6 वर्ष निर्धारित है तो राज्य इसे 5 वर्ष या 5 वर्ष 5 माह नहीं कर सकता है.
कानून के अनुसार तय हो आयु सीमा – पालक संघ
पॉल का कहना है कि लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा आरटीई के अंतर्गत कक्षा पहली में प्रवेश के लिए उम्र 5 वर्ष से लेकर 6 वर्ष 6 माह निर्धारित किया है. वहीं स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा पहली में प्रवेश के लिए उम्र 5 वर्ष 5 माह से लेकर 6 वर्ष 5 माह निर्धारित किया गया है.
सरकारी स्कूलों में कक्षा पहली में प्रवेश पाने के अलग नियम और प्राइवेट स्कूलों में कक्षा पहली में प्रवेश पाने के लिए अलग नियम, यह वस्ताव में तर्कसंगत और न्यायसंगत नहीं है. कानून के तहत जो उम्र निर्धारित की गई है, वही उम्र प्रत्येक स्कूलों में लागू और मान्य होनी चाहिए.
वहीं मामले में प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष राजिव गुप्ता ने कहा कि शिक्षा विभाग को अलग-अलग नियम नहीं बनाना चाहिए. इससे छात्रों का भविष्य संकट में जा सकता है. साथ ही पोर्टल फार्म को रिजेक्ट कर देता है. वहीं गरीब बच्चों को एजमिशन नहीं मिलने से उनका सपना टूट जाता है. विभाग को नियमों में एकरुपता रहना चाहिए.
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