रायपुर. स्कन्द देव भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र और भगवान गणेश के छोटे भाई हैं. भगवान स्कन्द को मुरुगन, कार्तिकेय और सुब्रहमन्य के नाम से भी जाना जाता है. षष्ठी तिथि भगवान स्कन्द को समर्पित हैं. षष्ठी तिथि जिस दिन पञ्चमी तिथि के साथ मिल जाती है उस दिन स्कन्द षष्ठी के व्रत को करने के लिए प्राथमिकता दी गई है. स्कन्द षष्ठी को कन्द षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है. धरमसिन्धु और निर्णयसिन्धु में वर्णन है कि सूर्योदय और सूर्यास्त के मध्य में जब पञ्चमी तिथि समाप्त होती है या षष्ठी तिथि प्रारंभ होती है तब यह दोनों तिथि आपस में संयुक्त हो जाती है और इस दिन को स्कन्द षष्ठी व्रत के लिए चुना जाता है. इस बार पंचमी तिथि सूर्यास्त के मध्य में समाप्त होकर षष्ठी तिथि आरंभ है. इस बार ये व्रत 5 जुलाई 2022 यानी आज रखा जाएगा.

आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कन्द षष्ठी व्रत मनाया जाता है. स्कन्द षष्ठी के व्रत को लेकर स्कंदपुराण के नारद-नारायण संवाद में संतान प्राप्ति और संतान की पीड़ाओं का शमन करने वाले इस व्रत का विधान बताया गया है. जो लोग भी इस व्रत को करने का सोच रहे हैं उन्हें एक दिन पहले से उपवास करके षष्ठी को ‘कुमार’ अर्थात् कार्तिकेय की पूजा अवश्य करनी चाहिए. स्कंद षष्ठी की उपासना से च्यवन ऋषि को अपनी आंखों की ज्योति वापस मिल गई थी. वहीं, ब्रह्मवैवर्तपुराण में यह उल्लेख किया गया है कि स्कंद षष्ठी की कृपा से प्रियव्रत का मृत शिशु जीवित हो उठता है. भगवान शिव के तेज से उत्पन्न बालक स्कन्द की छह कृतिकाओं ने स्तनपान करा कर उनकी रक्षा की थी. इनके छह मुख हैं और उन्हें ‘कार्तिकेय’ नाम से भी पुकारा जाता है. कार्तिकेय का मात्र दर्शन कर लेने से ब्रह्महत्या जैसे गंभीर पापों से आपको मुक्ति अवश्य मिल सकती है. कहते हैं कि इनकी पूजा – दीपों, वस्त्रों, अलंकरणों, मुर्गों (खिलौनों के रूप में) आदि से जरूर की जानी चाहिए या फिर उनकी पूजा बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सभी शुक्ल षष्ठियों पर अवश्य करें.

आवश्यक सामग्री

भगवान शालिग्राम जी का विग्रह, कार्तिकेय का चित्र, तुलसी का पौधा (गमले में लगा हुआ), तांबे का लोटा, नारियल, पूजा की सामग्री, जैसे- कुंकुम, अक्षत, हल्दी, चंदन अबीर, गुलाल, दीपक, घी, इत्र, पुष्प, दूध, जल, मौसमी फल, मेवा, मौली आसन इत्यादि. यह व्रत विधिपूर्वक करने से सुयोग्य संतान की प्राप्ति होती है. संतान को किसी प्रकार का कष्ट या रोग हो तो यह व्रत संतान को इन सबसे बचाता है.

पूजन विधि

स्कंद षष्ठी के अवसर पर शिव-पार्वती को पूजा जाता है. मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. इसमें स्कंद देव (कार्तिकेय) की स्थापना करके पूजा की जाती है तथा अखंड दीपक जलाए जाते हैं. स्कंद षष्ठी महात्म्य का नित्य पाठ किया जाता है. भगवान को स्नान कराया जाता है, नए वस्त्र पहनाए जाते हैं और उनकी पूजा की जाती है. इस दिन भगवान को भोग लगाते हैं, विशेष कार्य की सिद्धि के लिए इस समय कि गई पूजा-अर्चना विशेष फलदाई होती है. इसमें साधक तंत्र साधना भी करते हैं, इसमें मांस, शराब, प्याज, लहसुन का त्याग करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का संयम रखना आवश्यक होता है.

कथा

भगवान कार्तिकेय की जन्म कथा के विषय में पुराणों में ज्ञात होता है कि जब दैत्यों का अत्याचार ओर आतंक फैल जाता है और देवताओं को पराजय का समाना करना पड़ता है. जिस कारण सभी देवता भगवान ब्रह्मा के पास पहुंचते हैं और अपनी रक्षार्थ उनसे प्रार्थना करते हैं. ब्रह्मा उनके दु:ख को जानकर उनसे कहते हैं कि तारक का अंत भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही संभव है, परंतु सती के अंत के पश्चात् भगवान शिव गहन साधना में लीन हुए रहते हैं. इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास जाते हैं, तब भगवान शिव उनकी पुकार सुनकर पार्वती से विवाह करते हैं. शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिव जी और पार्वती का विवाह हो जाता है. इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म होता है और कार्तिकेय तारकासुर का वध करके देवों को उनका स्थान प्रदान करते हैं.