रायपुर- सुनकर आप चौक जाएंगे कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह बेहद ही जहरीले सांप, बिच्छू, नेवला, गिलहरी के बीच जंगल में रहते हैं. हरियाली से सराबोर ऐसा जंगल दरअसल उनका सीएम हाउस है. विश्व वानिकी दिवस के मौके पर आयोजित कार्यशाला में शरीक हुए डाॅ.रमन सिंह ने कहा कि- मुख्यमंत्री निवास में रहते हुए मुझे इस बात एहसास ही नहीं होता कि मैं शहर के बीच में रहता हूं, मुझे हर पल लगता है कि मैं जंगल में रह रहा हूं. निवास में आज चार सौ से ज्यादा वृक्ष हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि वृक्ष बिना मांगें ही कुछ ना कुछ दे दी देते हैं.
विश्व वानिकी दिवस के मौके पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में “सतत जीविकोपार्जन का आधार-लघु वनोपज का व्यापार” कार्यशाला में शामिल हुए डाॅ.रमन सिंह ने कहा कि – मैं जब सीएम हाउस आया था तब आम के केवल चार पेड़ थे. आज यहां आम के 52 पेड़ है. इनमें से अस्सी फीसदी पेड़ फल दे रहे हैं. इन फलों का हम साल भर उपयोग करते हैं. इतना फल होता है कि कई बार पड़ोसियों को भी बांट देते हैं. रमन ने कहा कि हाउस के भीतर बेल के 52 पेड़ है. ऐसा शानदार बेल है कि गर्मी में जब मैं यात्रा पर जाता हूँ, तो दूसरे किसी पेय की जरूरत ही नहीं पड़ती. लोक सुराज में 44-45 डिग्री तापमान पर घूमता हूँ, लेकिन आज तक मुझे सन स्ट्रोक नहीं हुआ. बेल इतना उपयोगी है कि तीन महीने हम मेहमानों को पिलाते है. यानी खर्च भी बचता है. उन्होंने कहा कि एक पत्रकार ने मुझसे पूछा था कि सीएम हाउस में कितने लोग रहते हैं, मैंने जवाब दिया कि ढाई हजार लोगों के बीच रहता हूं. वह मेरा जवाब सुनकर चौंक गया. मैंने बताया कि हाउस में जो चार-पांस सौ पेड़ हैं, उनमें चार सौ से ज्यादा तोते हैं. कई अलग-अलग प्रजातियों की चिड़ियाएं यहां आती रहती हैं. सांप, बिच्छू, नेवला, गिलहरी भी है. हर दस दिन में कोबरा, अषढ़िया जैसे सांप भी निकलते हैं, लेकिन पिछले 14 सालों में मैंने कभी किसी को नहीं मारा. ये लाइफ का हिस्सा हैं. वह अपना काम कर रहा हैं, मेढक खाकर अपना काम चला रहा है. हमने अनाज नहीं मांगता. हाउस में मैं सुबह सात जब आधे घंटे पैदल चलता हूं, तो रात 12 बजे तक काम करने की एनर्जी आ जाती है. यही प्रकृति का बेहतर बैलेंस है. मुझे यहां रहना अच्छा लगता है.
प्रकृति को हमसे बेहतर आदिवासी समझता है- रमन
मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह ने कहा कि आज देश-दुनिया के सामने वन और पर्यावरण को बचाने की बड़ी चुनौती है. आज इन विषयों पर चर्चा चल रही है कि वनों को कैसे आजीविका के एक बड़े साधन के तौर पर जोड़ा जाए. मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ में सामाजिक वानिकी का प्रयोग सफल रहा है. राज्य में 44 फीसदी वन क्षेत्र मौजूद है, तो इसके पीछे एक बड़ी वजह है यहां का आदिवासी समाज. आदिवासी भाईयों ने राज्य के वनों की रक्षा की है. आदिवासी ही जंगल का असली महत्व समझता है. जंगल से ही आदिवासी की रोजी-रोटी जुड़ी हुई है. जन्म से मृत्यु तक जंगल उनका अभिन्न हिस्सा है. जंगल के बगैर आदिवासी जी नहीं सकता. प्रकृति को हम सबसे बेहतर आदिवासी ही समझता है.
चिपको आंदोलन से जुड़े रहे रमन मैग्सेसे अवार्ड प्राप्त पद्मभूषण चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा कि- पर्यवरण की बिगड़ती स्थिति की वजह से आज हमारा ध्यान वनों की ओर अग्रसर हो रहा है. लेकिन मुख्य बात है कि यह सब कैसे होगा. हमने उन कारणों की ओर ध्यान नहीं दिया है जिसकी वजह से अब तक हम लक्ष्य की ओर नहीं पहुँच पा रहे हैं. मुझे बताया गया कि पिछले साल छत्तीसगढ़ में वनोपज के लिए संग्रहनकर्ताओं को 1600 करोड़ रुपये दिया गया. ये मेरे लिए सुखद आश्चर्य रहा. चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा कि- मैं काफी पहले बस्तर आया था उस वक़्त मैंने देखा को शंखनी-डंकनी नदी का पानी लाल पड़ रहा है. पता चला कि खनन की वजह से ऐसा हो रहा है. उस वक़्त मुझे एक पत्र दिया गया जिसमें कहा गया था कि वनोपज का वास्तविक लाभ स्थानीय लोगों को नहीं मिल रहा है. मैंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा. ईश्वर सिंह राणा ने कहा था हमें भी जीने का अधिकार है. आज जब मुझे पता चला कि वनोपज संग्रहण के लिए ही वनवासियों को 1600 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया. यह सुखद रहा. चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा कि आदिवासियों का अस्त्तित्व जंगलों के साथ जुड़ा हुआ है.
वन विभाग के एसीएस सी के खेतान ने कहा- विश्व के विभिन्न देशों में वनों के महत्व को समझाने के लिए विश्व वानिकी दिवस मनाया जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ के लिए ये दिवस इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रदेश का 44 फीसदी हिस्सा वन है. उन्होंने कहा कि जब मैंने एसीएस वन का पदभार ग्रहण किया तब मैं सीएम के पास गया उन्होंने कहा कि वनांचल में रहने वाले लोगों के जीवन की बेहतरी के लिए छोटे-छोटे अच्छे काम करने हैं. ये मेरे लिए सूत्रवाक्य रहा. छत्तीसगढ़ में लघु वनोपज का वनवासी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन मे महत्वपूर्ण हिस्सा है. तेंदूपत्ता के बोनस के लिए 1900 करोड़ रुपये बोनस दिया गया है. देश के किसी भी राज्य में इतनी बड़ी राशि नहीं दी गई होगी. इस बार के बजट भाषण में सीएम ने घोषणा की है कि हमारे वनवासी बोनस का इंतजार करे उससे पहले संग्रहण की राशि दी जाएगी. 12 से 14 लाख परिवारों को इसका फायदा होगा. खेतान ने कहा कि आज की कार्यशाला का विषय बेहद महत्वपूर्ण है. लघु वनोपज से वनवासी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की क्वालिटी ऑफ लाइफ को बेहतर किया जा सकता है. जीविकोपार्जन को आधार बनाये इसे देखना जरूरी है.
डॉ एस एस नेगी ने कहा कि तीन आयामों को बैलेंस बनाकर छत्तीसगढ़ चल रहा है. संग्रहण से लेकर जीविकोपार्जन तक एक बेहतर बैलेंस छत्तीसगढ़ में बनाया गया है. लघु वनोपज छत्तीसगढ़ से बाहर के देशों में जा रहा है. क्या इसे एक ब्रांड बनाया जा सकता है? इस पर विचार करेंगे. उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन एक बड़ी समस्या है, लेकिन छत्तीसगढ़ में जिस तरह से लघु वनोपज को लोगों की आजीविका से जोड़ दिया है यह भी दूसरे राज्यों को सीखने का अवसर मिलेगा.
फड़ मुंशियों का मानयेद बढ़ाने की हुई घोषणा
कार्यशाला के दौरान मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह ने लंबे समय से प्रस्तावित वन प्रबंधकों का मानदेय बढ़ाने की घोषणा की है. वन प्रबंधकों को मानदेय के रूप में 12 हजार रूपए की राशि दी जाती थी, अब यह बढ़ाकर 15 हजार रूपए कर दिया गया है. लघु वनोपज को लेकर आयोजित इस कार्यशाला में 901 प्राथमिक समितियों के अध्यक्ष, जिला यूनियन के पदाधिकारी, जिलों के अधिकारी, वन विभाग के आला अधिकारी मौजूद रहे. इसमें लघु वनोपज के लिए गांव-गांव में होने वाले प्रचार के लिए ब्रोशर का विमोचन भी किया गया. न्यूनतम समर्थन मूल्य की दर गांव-गांव में बताने के लिए भी ब्रोशर का विमोचन किया गया.
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