रायपुर. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव राजेश तिवारी ने भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा है कि भाजपा अपनी आदिवासी विरोधी नीति व जंगल को निजी हाथों में बेचने के लिए किए जा रहे षड्यंत्र से लोगों का ध्यान हटाने एक आदिवासी महिला का इस्तेमाल कर रहे हैं. आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार आदिवासी हतैषी होने का मुखौटा लगाने का प्रयास है.

कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव राजेश तिवारी ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू से सवाल किया है कि क्या वो केंद्र सरकार की आदिवासी नीति का विरोध करेंगी, क्या वे इस सवालों का जवाब मतदान के पूर्व देंगी या पिंजरे की पंछी की तरह शो-पीस बनी रहेंगी. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव राजेश तिवारी ने कहा कि सिर्फ किसी जाति विशेष का होने से उस जाति का भला नहीं होता, बल्कि उस वर्ग के प्रति सोच व उनके विकास के लिए बनने वाली योजनाएं एवं उनका क्रियान्वयन करने वाला व्यक्ति होना चाहिए. भाजपा हमेशा धर्म व जाति की राजनीति करती है. ये एक बार फिर साबित हो रहा है कि भारत के राष्ट्रपति के पद को भी सिर्फ एक जाति के बंधन में बांध दिया है. इसकी जितनी निंदा की जाए कम है.


राष्ट्रपति उम्मीदवार मुर्मू से राष्ट्रीय सचिव ने किए ये सवाल

कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव राजेश तिवारी ने कहा कि अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006, जिसे जन सामान्य की भाषा में वन अधिकार अधिनियम 2006 के रूप में जाना जाता है, एक ऐतिहासिक और सर्वाधिक प्रगतिशील कानून है जिसे गहन संवाद और चर्चा के बाद संसद द्वारा सर्वसम्मति से पारित किया गया था. यह देश के वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी, दलित और अन्य परिवारों को व्यक्तिगत और सामुदायिक दोनों स्तर पर भूमि और आजीविका के अधिकार प्रदान करता है. अगस्त 2009 में इस कानून के अक्षरशः अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए, तत्कालीन पर्यावरण और वन मंत्रालय ने एक परिपत्र जारी किया, जिसमें कहा गया था कि वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत वन भूमि के अन्यत्र उपयोग के लिए किसी भी मंजूरी पर तब तक विचार नहीं किया जाएगा जब तक वन अधिकार अधिनियम 2006 के अंतर्गत प्रदत्त अधिकारों का सर्वप्रथम निपटान नहीं कर लिया जाता है. पारंपरिक रूप से वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी और अन्य समुदायों के हितों के संरक्षण और संवर्धन के लिए यह प्रावधान किया गया था. इस परिपत्र के अनुसार, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वन और पर्यावरण मंजरी पर कोई भी निर्णय लेने से पहले आदिवासी और अन्य समदायों के अधिकारों का निपटान करना जरुरी होगा. परिपत्र में कहा गया है कि इस तरह के किसी भी प्रयोजन को कानून संवत होने के लिए प्रभावित परिवारों की स्वतंत्र, पूर्व और सुविज्ञ सहमति प्राप्त करना बाध्यकारी होगा, क्या वे इससे सहमत हैं ?

कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव राजेश तिवारी ने कहा कि हाल ही में मोदी सरकार द्वारा जारी नियमों के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा अंतिम रुप से वन मंजूरी मिलने के बाद वन अधिकारों के निपटारे की अनुमति दे दी है. जाहिर तौर पर यह प्रावधान कुछ चुनिंदा लोगों के लिए व्यापार को आसान बनाने के नाम पर किया गया है, परंतु यह निर्णय उस विशाल जन समुदाय के लिए जीवन की सुगमता को समाप्त कर देगा, जो आजीविका के लिए वन भूमि पर निर्भर है. यह वन अधिकार अधिनियम 2006 के मूल उद्देश्य और वन भूमि के अन्यत्र उपयोग के प्रस्तावों पर विचार करते समय इसके सार्थक उपयोग के उद्देश्य को नष्ट कर देता है. एक बार वन मंजूरी मिलने के बाद बाकी सब कुछ एक औपचारिकता मात्र बनकर रह जाएगा और लगभग अपरिहार्य रूप से किसी भी दावे को स्वीकार नहीं किया जाएगा और उसका निपटान नहीं किया जाएगा. वन भूमि के अन्यत्र उपयोग की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए राज्य सरकारों पर केंद्र की ओर से और भी अधिक दबाव होगा. क्या इसका वे विरोध करेंगी?

कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव राजेश तिवारी ने कहा कि वन संरक्षण अधिनियम 1980 को, वन अधिकार अधिनियम, 2006 के अनुरूप लागू करना सुनिश्चित करने के संसद द्वारा सौंपे गए उत्तरदायित्व को मोदी सरकार ने तिलांजलि दे दी है. इन नए नियमों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय संबंधी संसद की स्थायी समितियों सहित अन्य संबद्ध हितधारकों से बिना कोई विचार विमर्श और चर्चा किए प्रख्यापित कर दिया गया है. क्या इस कार्यवाही का वे विरोध करेंगी ?

कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव राजेश तिवारी ने कहा कि केंद्र सरकार ने भारतीय वन अधिनियम-1927 में पहले संशोधन का मसौदा तैयार कर सभी राज्यों को विचार के लिए भेजा था. प्रस्तावित वन कानून के तहत जंगल से लकड़ी, घास या मिट्टी लाना, जंगल में पालतू जानवर चराना, सब कुछ वन अपराध है. हालांकि पहले भी ये अपराध की श्रेणी में ही था, लेकिन अब इसकी सजा और सख्त कर दी गई है. पहले लकड़ी लाने पर 500 रुपये जुर्माना देना पड़ता था, नए कानून के मसौदे में इसे बढ़ाकर दस हजार रुपये कर दिया गया. साथ ही दूसरी बार ऐसा करते पकड़े जाने पर ये जुर्माना एक लाख रुपये तक भी हो सकता है. क्या यह उचित है?

कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव राजेश तिवारी ने कहा कि नए वन कानून का ड्राफ्ट वन अधिकारियों के अधिकारों में इजाफा करता है और लोगों को कमजोर करता है. वन अधिकारी और कर्मचारियों को पूरी छूट दी गई है कि यदि कोई जंगल में गया और वन अधिकारी को संदेह हुआ कि वो अपराध कर सकता है तो अधिकारी उस पर गोली चला सकता है, इसके लिए अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं होगी. संविधान में बर्डन ऑफ प्रूफ यानी दोष साबित करने का कार्य आरोप लगाने वाले का होता है, जबकि इस कानून में वन अधिकारी ने आप पर वन कानून तोड़ने का आरोप लगा दिया तो खुद को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी उस व्यक्ति की होगी. इसके साथ ही रेंजर से ऊपर की रैंक के वन अधिकारियों को अर्ध न्यायिक शक्तियां तक दी गई है. आदिवासियों पर गोली चले, क्या इस बात से वे सहमत हैं?

कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव राजेश तिवारी ने कहा कि वन अधिनियम-2019 के ड्राफ्ट में उत्पादक वन नाम से नई श्रेणी बनाई गई है. इस उत्पादक वन को बनाने बढ़ाने के लिए निजी कंपनियों को आमंत्रित किया जा सकता है. एक तरह से इसमें जंगल के निजीकरण का रास्ता तैयार किया गया है. जो समुदाय जंगल पर आश्रित हैं, जिन्होंने इतने वर्षों तक अपने जंगल की देखभाल की है, उनके सारे अधिकार छीन कर उनका अपराधीकरण किया जा रहा है. वहीं दूसरी ओर इस कानून से प्राइवेट पार्टियों के लिए जंगल का रास्ता खुलता है. क्या जंगल को बेचने की नीति का समर्थन करती हैं ?

कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव राजेश तिवारी ने कहा कि प्रदेश में भाजपा की 15 वर्षों तक सरकार थी किंतु छग में पेसा का नियम नहीं बनाया. कांग्रेस की भूपेश बघेल की सरकार में पेसा कानून के नियम बना लिए हैं. पेसा कानून का वे समर्थन करती है कि नहीं?

कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव राजेश तिवारी ने कहा कि भाजपा की रमन सरकार ने छग में वनाधिकार कानून 2006 का क्रियान्वन ना करते हुए 4 लाख से ज्यादा व्यक्तिगत दावे को खारिज कर दिया गया. सामुदायिक व सामुदायिक वन संशाधन अधिकार नहीं दिए गए. साथ ही यह आदेश भी रमन सरकार ने जारी किया था कि छग में सारे दावों का निपटान कर दिया गया है, जबकि वनाधिकार एक सतत प्रक्रिया है, जो हमेशा चलता रहेगा. मोदी सरकार अब इस अधिकार को समाप्त करना चाहती है. क्या आप इसका विरोध कर पाएंगी ?

कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव राजेश तिवारी ने कहा कि रमन सरकार में सबसे ज्यादा आदिवासियों की हत्याएं हुई, बस्तर के 700 से ज्यादा गांव खाली करा दिए गए, आदिवासी भाई दूसरे प्रदेश में शरणार्थी का जीवन जीने को मजबूर हुए, आदिवासियों के घरों को जलाया गया, कांग्रेस के नेताओं की झीरम घाटी में हत्या की गई. क्या आप केंद्र सरकार से इनकी जांच करा कर तत्कालीन सत्ताधीशों को सजा दिलवाएंगी ?

कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव राजेश तिवारी ने कहा कि मोदी के करीबी बड़े उद्योगपतियों को कोल एवं लौह अयस्क का भंडार सौंपा गया है, जिसके कारण बस्तर, सरगुजा व कोरबा में विरोध हो रहा है. क्या आदिवासी भाइयों का साथ देते हुए उसे निरस्त कराने का काम करेंगी ?

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